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Friday, 14 September 2018

टिहरी झील की सुन्दरता ने मुझे मोहित कर दिया, मतलब स्वर्ग के समान

पहाड़ों के बारे में सोचता हूं तो एक सुकून छाने लगता है मानो कह रहा है कि पहाड़ ही तुम्हारी जिंदगी है। मैं हमेशा से बेफ्रिक घूमना चाहता था। ऐसे ही निकल पड़ो और कदमों से जहां नापते रहो। उसी बेफ्रिकी में मैं टिहरी नाप रहा था। टिहरी को मैंने जानता था क्योंकि यहां एक डैम है जो एशिया का सबसे बड़ा बांध है। लेकिन यहां आया तो मुझे कुछ और ही मिल गया। पहाड़ों की गोद में बहती एक स्वर्ग की धारा। एक ठहरा हुआ दृश्य था जिसके देखकर मेरे बोल नहीं फूट रहे थे, आंखें चकाचौंध हो रही थी और मैं आकर्षण से अवाक था। मुझे मोहित किया था दूर तलक फैली टिहरी झील ने।


टिहरी डैम


टिहरी शहर को पैदल नाप लेने के बाद, रात का पहर और सुबह की लालिमा देखने के बाद हम 10 मार्च 2018 को टिहरी झील के लिये निकल पड़े। ये कोई टूरिस्ट पैलेस नहीं था सो यहां मंसूरी, नैनीताल और हरिद्वार जैसी लुटाई नहीं थी। हमारे पास ज्यादा सामान नहीं था सो आराम से बस में जाकर सीट से चिपक गये। बस घनसाली जा रही थी जो कि टिहरी डैम को पार करते हुये जाता है। टिहरी शहर से टिहरी झील की दूरी लगभग 18 किलोमीटर है। लेकिन मेरा दावा है कि उस 18 किलोमीटर के रास्ते में आप बोर नहीं हो सकते हैं।

इस बस के रास्ते में पहाड़ थे और पहाड़ पर मुझे नलों के पाइप नजर आ रहे थे। मुझे समझ नहीं आया कि ऐसा क्यों है? इस सफर का मेरे दोस्त ने बताया कि गढ़वाल क्षेत्र में पानी की कमी है और टिहरी झील से पानी गांवों तक पहुंचाया जा रहा है।

पहाड़ों के रास्ते में आपको सूखी नहरे सी मिलती हैं लेकिन सभी सूखी थी। जिससे हम अंदाजा लगा रहे थे कि यहां पानी की कितनी कमी है। पहाड़ हमेशा ही अच्छे लगते हैं लेकिन यहां रास्तों के पहाड़ उजाड़ लग रहे थे। पहाड़ पर कुछ चिन्ह् दिख रहे थे जो पानी के गिरने से बन गये थे, जिसे पहाड़ी लोग गदेरों कहते हैं। मुझे इन पहाड़ों से ज्यादा गांव और खेत खूबसूरत लग रहे थे। सर्दियां थी इसलिये छोटे-छोटे बच्चे भी गर्म कपड़ों में नजर आ रहे थे। इन घुमावदार रास्ते से नीचे की ओर चले जा रहे थे। अब पहाड़ चोटीनुमा हो गये थे और हम बौने। यहां नीचे पेड़ों ज्यादा थे जो रास्ते में छांव देने का काम कर रही थी। लेकिन दिमाग में एक बात चल रही थी टिहरी डैम और कितना दूर है।

टिहरी झील


कुछ ही देर बाद बस वाले ने हमें डैम के बिल्कुल गेट पर उतार दिया। हमारे एक तरफ पहाड़ थे दूसरी तरफ चमकदार झील जिसे हम अभी आंखों में नहीं उतार रहे थे, हम डैम को देखना चाहते थे। हमारे सामने दो गाॅर्ड खड़े थे। हमने उनसे अंदर जाने की बात की तो उन्होंने हमसे इसका अनुमति लेटर मांगा। हमें इसके बारे में जानकारी नहीं थी। उन्होंने हमें टिहरी जाकर जिला प्रशासन से अनुमति लेकर आने को कहा। मैं दुखी सा हो गया और मेरा दोस्त भी।

टिहरी झील जिसे हम अभी तक बड़ी दीवार के कारण  नहीं देख पाये थे जब वापस लौटे तो मेरे सामने एक नदी थी। नदी क्या अथाह सागर था। नदी अक्सर नीले रंग की होती है लेकिन टिहरी झील को देखकर लग रहा था कि किसी ने चटक हरा रंग मिला दिया है जिससे पूरी झील हरी होकर चमक रही है।

झील को अपने कैमरे में सहेजता पांडे।

मैं उस झील को चलते हुये देखते जा रहा था। वो सीन बिल्कुल फिल्म की तरह था। पहाड़ के पीछ़े पहाड़ और उसके पीछे भी पहाड़ और उनके बीच में एक नदी। ऐसा दृश्य दूर तलक था। मुझे निहारने में एक अलग सा सुकून आ रहा था। मैं केदारनाथ जरूर नहीं गया था लेकिन उससे भी सुंदर नजारे को मैं देख रहा था। मैंने आज तक इतना सुंदर कभी नहीं देखा था। मैं कवि होता तो झील को एक कविता में बदल देता।

झील के चारों तरफ पहाड़ थे और पहाड़ पर बसे कुछ घर दिख रहे थे। मैं उन लोगों को बड़ा खुशनसीब कह रहा था कि वे जन्नत जैसी जगह में रहते हैं।

कुछ देर वहां बिताने के बाद हम वापस पैदल चलने लगे। चलते-चलते हम एक त्रिराहे पर पहुंचे। जहां लिखा था टिहरी परियोजना क्षेत्र में आपका स्वागत है। हम उसके सामने वाले रास्ते पर चलने लगे। हम टिहरी झील का कोना पकड़कर चलने लगे। हमें हर मोड़ एक नई सुंदरता दे रही थी। वैसे ही जैसे किसी छोटे से पौधे से नई कपोल निकलती थी।

टिहरी व्यू प्वाइंट


हमें टिहरी डैम देखना था लेकिन हमें अंदर जाने की अनुमति नहीं मिली। हमें वहीं एक व्यक्ति ने बताया कि आपको डैम व्यू प्वाइंट से दिखेगा। हमें उसके बारे में नहीं पता था लेकिन बस वाले को पता था हमने उससे कह दिया और उसने हमें पहुंचा दिया। यहां एक जालीदार दीवार थी। उस जालीदार दीवार में कुछ छेद थे और छेद से हम देख भी सकते थे और सहेज भी सकते थे।

ये तस्वीर टिहरी व्यू प्वाइंट पर है।

हम व्यू प्वाइंट से टिहरी डैम को तो नहीं देख पा रहे थे लेकिन उस डैम का रास्ता दिख रहा था। यहां से सब कुछ छोटा दिख रहा था। मुझे न व्यू प्वाइंट में दिलचस्पी थी और न ही डैम में। मुझे तो पहाड़ और झील देखनी थी। जो मैं सामने से देख रहा था वही अब पहाड़ के बराबर खड़े होकर देख रहा था। दृश्य वाकई सुंदर था। सौंदर्य की पराकाष्ठाको पार करता हुआ। यहां पहाड़ से लेकर, झील सब चमक रहे थे। उस चमक से मेरे चेहरे पर भी चमक आ गई थी।

टिहरी का यह घुमावदार सफर मुझे पसंद आ रहा था। सब तो था यहां सुंदरता, खुश करने के लिये प्रकृति और झील तो मानो कह रही हो राही तेरा यही है ठिकाना। ये ठिकाना सबको पसंद आयेगा, है ही इतना खूबसूरत। लोग प्रकृति देखने मंसूरी और नैनीताल जाते हैं और पाते हैं भीड़। उन लोगों को टिहरी आना चाहिये और मेरी तरह यहां खोते पायेंगे।

Friday, 7 September 2018

टिहरी में हवाओं को धकेलकर उड़ जाने जैसा आकर्षण है

घुमावदार रास्ते, कभी चलते-चलते नीचे पहुंच जाते और कभी एक दम ऊंचाई पर। इन घुमावदार रास्तों से गुजरने के बाद जिंदगी सीधी लगने लगती है। मंसूरी को देखने के बाद अब मैं टिहरी पहुंचने वाला था। 9 मार्च 2018 की सुबह-सुबह हम चंबा से टिहरी के लिये निकल पड़े। घुमावदार रास्ते जो पहाड़ों में अक्सर होते ही हैं। पीछे सब छूट रहा था चंबा, अड़बंगी पगडंडियां। कुछ देर बाद हम एक चौराहे पर खड़े थे, नई टिहरी।


टिहरी एक सच्चे में पहाड़ वाला शहर लगता है। कम आबादी का शहर सुंदरता से भरा हुआ है इसको मैंने और मेरे दोस्त ने पैदल ही नापा था। छोटा सा शहर है लेकिन लोग बड़े अच्छे हैं। हमने एक होटल लिया, बहुत ही सस्ता था और बेहद बढ़िया था। कमरे में टी.वी. भी था, टी.वी. चलाया तो कोई गढ़वाली गाना बजने लगा। सामान रखा और हम टिहरी में अजनबी मुसाफिर की तरह निकल पड़े।

टिहरी या नई टिहरी


हम शहर वाले इस शहर को टिहरी के नाम से ही जानते हैं। यहां के स्थानीय लोगों ने बताया कि अब कोई टिहरी शहर नहीं है। जहां हम खड़े हैं वो नई टिहरी है। टिहरी डैम के कारण टिहरी शहर डूब चुका है और सरकार ने वहां के लोगों को एक नये शहर में बसाया जिसका नाम रखा गया नई टिहरी।

नई टिहरी सुंदर और सांस्कृतिक रूप से बसाया गया था। यहां दीवारों पर गढ़वाली संस्कृति दिखती है तो दूसरों की ओर आधुनिकतापन लोगों में भी दिखता है। जिस जगह पर जाओ उसे एक बार नजर फेर कर देख लेना चाहिये, हम भी वही कर रहे थे। यहां हरिद्वार और ऋषिकेश से ज्यादा ठंड थी जो बदन को कपकपी दे रही थी। दिन में ये हाल था तो रात के पहर में अंदाजा लगाया जा सकता था कि क्या हाल होने वाला था?

हम पैदल चलते-चलते कुछ खा लेते जिससे शरीर में एनर्जी बनी रहे। हम पैदल ही पूरा शहर घूम चुके थे। यहां बैंक से लेकर सारी दुकानें थीं। चैराहे पर एक पुस्तक संग्रह भी बना हुआ था, जहां लिखा हुआ था कि आप अपनी पुरानी किताबें यहां रख सकते हैं। जिससे वो किसी और के काम आ सके। टिहरी ऊंचाई पर था तो चारों ओर पहाड़ घेरे हुआ था। हिमालय श्रृंखला सामने ही दिख रही थी। पांडेय और मैं इस सुंदर दृश्य को तस्वीरो में सहेज रहे थे। एक अलग-सी खुशी हो रही थी यहां आकर। मानों हमारे पैरों को जमीं मिल गई हो।

हमें इस शहर की जानकारी नहीं थी लेकिन कभी-कभी बिना जानकारी के घूमना अच्छा होता है, बिल्कुल घुमंतूओं की तरह। हम चक्कर लगा रहे थे और यहां के लोगों से बातचीत कर रहे थे। हर शहर की एक कहानी होती और इसकी भी एक कहानी थी, टिहरी से नई टिहरी बनने तक की।


टिहरी में मेरा घुमंतू साथी।

खामोश रात


हम शहर वालों को आदत होती है रात के पहर में घुमक्कड़ बनना। हम वैसा ही इधर करने की सोच रहे थे। एक होटल पर रात का डिनर किया और उसके बाद जब चैराहे पर पहुंचे तो देखा चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ है। पूरा बाजार बंद था, कुछ ढाबे खुले हुये थे। हमें बड़ा अजीब लग रहा था लेकिन हम दोनों ही रात के पहर में चलने लगे।

रात के पहर में आसमान बड़ा अच्छा लग रहा था। पूरा आसमान चांद और तारों भरा हुआ था। बड़े अरसे के बाद मैं ऐसा देख पा रहा था या फिर कभी मोबाइल से ऊपर सिर उठाने का मन ही नहीं हुआ। आज उठा रहा था तो अच्छा लग रहा था। हम शहर से आगे खुले रास्ते पर आये तो मंत्रमुग्ध हो गये। जो तारे आसमान में थे वे टिहरी के पहाड़ों में भी दिखाई दे रहे थो। मानोें किसी ने पहाड़ों पर आईना रख दिया हो और आसमां और पहाड़ एक हो गये हों।

चांदनी सी चमकती टिहरी।

टिहरी में हम एक शक्तिपीठ के बाबूजी से मिले। वे रात के पहर में हमें शक्तिपीठ ले गये और छत से पूरा पहाड़ के बारे में समझा रहे थे। उन्होंने कहा कि यहां की सुबह बड़ी प्यारी होती है आपको देखना चाहिये। हमें अगली सुबह टिहरी डैम जाना था लेकिन हम ऐसा दृश्य भी नहीं छोड़ना चाहते थे सो हम अगली सुबह आने के लिये मान गये।

खुशनुमा सुबह


अगले दिन कभी जल्दी न उठने वाला मैं बहुत जल्दी उठ गया। मैं ऐसा मौका चूकना नहीं चाहता था। हम जल्दी-जल्दी उठे और तैयार होकर अपने कैमरों और जज्बे के साथ उस छत की ओर बढ़ने लगे, जहां हम कल रात थे। शक्तिपीठ चैराहे से थोड़ा दूर था और सुबह होने वाली थी। हमने जल्दी पहुंचने के लिये दौड़ लगा दी। सुबह की जो ठंडक थी वो अब गर्म हो रही थी। हम जल्दी ही छत पर पहुंच गये।

टिहरी की सुबह

रात के अंधेरे में जो पहाड़ ढके हुये थे वो अब साफ दिख रहे थे। दूर तलक बस पहाड़ और चोटियां। लग रहा था कि हिमालय की गोद में आकर खड़े हो गये हैं। सुबह चहचहा रही थी और उस सुबह में ऐसी जगह आकर हम दोनों ही खुश थे। हम इस दृश्य को तस्वीरों में कैद करने लगे। दूर तलक एक चोटी थी जो बर्फ से ढकी हुई थी। मैंने कभी बर्फ से ढंके पहाड़ नहीं देखे थे, आज देखकर खुशी हो रही थी और दुख भी वो इतने दूर क्यों हैं?

कैमरे में सहेजते उस लालिमयी दृश्य को।
अचानक आसमां में लालिमा छाने लगती थी। पूरा आसमां लाल होने लगता है। अब सूर्य भगवान का आगमन होने वाला था। कुछ ही पलों के बाद दूर तलक की एक चोटी के पीछे से एक गोल चक्क्र वाला लाल फल निकलता है। देखकर मानों सुकून मिल रहा था, जिस लालिमा वाले सूरज को फिल्मों में देखा करता था उसे मैं अपनी आंखों से देख रहा था। कुछ ही देर बाद वो लाल सूरज नहीं दिखता है और उसके प्रकाश से सभी पहाड़ चमकने लगते हैं।

ऐसी जगह पर कौन नहीं आना चाहेगा जहां रात का पहर, दिन, सुबह देखने लायक है। यहां न भीड़भाड़ है और न ही शोरशराबा। ऐसी जगह तो मन मोहने वाली होती हैं।
टिहरी की सुंदरता वहां घूमने में है।