पहाड़ों के बारे में सोचता हूं तो एक सुकून छाने लगता है मानो कह रहा है कि पहाड़ ही तुम्हारी जिंदगी है। मैं हमेशा से बेफ्रिक घूमना चाहता था। ऐसे ही निकल पड़ो और कदमों से जहां नापते रहो। उसी बेफ्रिकी में मैं टिहरी नाप रहा था। टिहरी को मैंने जानता था क्योंकि यहां एक डैम है जो एशिया का सबसे बड़ा बांध है। लेकिन यहां आया तो मुझे कुछ और ही मिल गया। पहाड़ों की गोद में बहती एक स्वर्ग की धारा। एक ठहरा हुआ दृश्य था जिसके देखकर मेरे बोल नहीं फूट रहे थे, आंखें चकाचौंध हो रही थी और मैं आकर्षण से अवाक था। मुझे मोहित किया था दूर तलक फैली टिहरी झील ने।
टिहरी शहर को पैदल नाप लेने के बाद, रात का पहर और सुबह की लालिमा देखने के बाद हम 10 मार्च 2018 को टिहरी झील के लिये निकल पड़े। ये कोई टूरिस्ट पैलेस नहीं था सो यहां मंसूरी, नैनीताल और हरिद्वार जैसी लुटाई नहीं थी। हमारे पास ज्यादा सामान नहीं था सो आराम से बस में जाकर सीट से चिपक गये। बस घनसाली जा रही थी जो कि टिहरी डैम को पार करते हुये जाता है। टिहरी शहर से टिहरी झील की दूरी लगभग 18 किलोमीटर है। लेकिन मेरा दावा है कि उस 18 किलोमीटर के रास्ते में आप बोर नहीं हो सकते हैं।
पहाड़ों के रास्ते में आपको सूखी नहरे सी मिलती हैं लेकिन सभी सूखी थी। जिससे हम अंदाजा लगा रहे थे कि यहां पानी की कितनी कमी है। पहाड़ हमेशा ही अच्छे लगते हैं लेकिन यहां रास्तों के पहाड़ उजाड़ लग रहे थे। पहाड़ पर कुछ चिन्ह् दिख रहे थे जो पानी के गिरने से बन गये थे, जिसे पहाड़ी लोग गदेरों कहते हैं। मुझे इन पहाड़ों से ज्यादा गांव और खेत खूबसूरत लग रहे थे। सर्दियां थी इसलिये छोटे-छोटे बच्चे भी गर्म कपड़ों में नजर आ रहे थे। इन घुमावदार रास्ते से नीचे की ओर चले जा रहे थे। अब पहाड़ चोटीनुमा हो गये थे और हम बौने। यहां नीचे पेड़ों ज्यादा थे जो रास्ते में छांव देने का काम कर रही थी। लेकिन दिमाग में एक बात चल रही थी टिहरी डैम और कितना दूर है।
कुछ ही देर बाद बस वाले ने हमें डैम के बिल्कुल गेट पर उतार दिया। हमारे एक तरफ पहाड़ थे दूसरी तरफ चमकदार झील जिसे हम अभी आंखों में नहीं उतार रहे थे, हम डैम को देखना चाहते थे। हमारे सामने दो गाॅर्ड खड़े थे। हमने उनसे अंदर जाने की बात की तो उन्होंने हमसे इसका अनुमति लेटर मांगा। हमें इसके बारे में जानकारी नहीं थी। उन्होंने हमें टिहरी जाकर जिला प्रशासन से अनुमति लेकर आने को कहा। मैं दुखी सा हो गया और मेरा दोस्त भी।
टिहरी झील जिसे हम अभी तक बड़ी दीवार के कारण नहीं देख पाये थे जब वापस लौटे तो मेरे सामने एक नदी थी। नदी क्या अथाह सागर था। नदी अक्सर नीले रंग की होती है लेकिन टिहरी झील को देखकर लग रहा था कि किसी ने चटक हरा रंग मिला दिया है जिससे पूरी झील हरी होकर चमक रही है।
मैं उस झील को चलते हुये देखते जा रहा था। वो सीन बिल्कुल फिल्म की तरह था। पहाड़ के पीछ़े पहाड़ और उसके पीछे भी पहाड़ और उनके बीच में एक नदी। ऐसा दृश्य दूर तलक था। मुझे निहारने में एक अलग सा सुकून आ रहा था। मैं केदारनाथ जरूर नहीं गया था लेकिन उससे भी सुंदर नजारे को मैं देख रहा था। मैंने आज तक इतना सुंदर कभी नहीं देखा था। मैं कवि होता तो झील को एक कविता में बदल देता।
कुछ देर वहां बिताने के बाद हम वापस पैदल चलने लगे। चलते-चलते हम एक त्रिराहे पर पहुंचे। जहां लिखा था टिहरी परियोजना क्षेत्र में आपका स्वागत है। हम उसके सामने वाले रास्ते पर चलने लगे। हम टिहरी झील का कोना पकड़कर चलने लगे। हमें हर मोड़ एक नई सुंदरता दे रही थी। वैसे ही जैसे किसी छोटे से पौधे से नई कपोल निकलती थी।
हमें टिहरी डैम देखना था लेकिन हमें अंदर जाने की अनुमति नहीं मिली। हमें वहीं एक व्यक्ति ने बताया कि आपको डैम व्यू प्वाइंट से दिखेगा। हमें उसके बारे में नहीं पता था लेकिन बस वाले को पता था हमने उससे कह दिया और उसने हमें पहुंचा दिया। यहां एक जालीदार दीवार थी। उस जालीदार दीवार में कुछ छेद थे और छेद से हम देख भी सकते थे और सहेज भी सकते थे।
हम व्यू प्वाइंट से टिहरी डैम को तो नहीं देख पा रहे थे लेकिन उस डैम का रास्ता दिख रहा था। यहां से सब कुछ छोटा दिख रहा था। मुझे न व्यू प्वाइंट में दिलचस्पी थी और न ही डैम में। मुझे तो पहाड़ और झील देखनी थी। जो मैं सामने से देख रहा था वही अब पहाड़ के बराबर खड़े होकर देख रहा था। दृश्य वाकई सुंदर था। सौंदर्य की पराकाष्ठाको पार करता हुआ। यहां पहाड़ से लेकर, झील सब चमक रहे थे। उस चमक से मेरे चेहरे पर भी चमक आ गई थी।
टिहरी का यह घुमावदार सफर मुझे पसंद आ रहा था। सब तो था यहां सुंदरता, खुश करने के लिये प्रकृति और झील तो मानो कह रही हो राही तेरा यही है ठिकाना। ये ठिकाना सबको पसंद आयेगा, है ही इतना खूबसूरत। लोग प्रकृति देखने मंसूरी और नैनीताल जाते हैं और पाते हैं भीड़। उन लोगों को टिहरी आना चाहिये और मेरी तरह यहां खोते पायेंगे।
टिहरी डैम
टिहरी शहर को पैदल नाप लेने के बाद, रात का पहर और सुबह की लालिमा देखने के बाद हम 10 मार्च 2018 को टिहरी झील के लिये निकल पड़े। ये कोई टूरिस्ट पैलेस नहीं था सो यहां मंसूरी, नैनीताल और हरिद्वार जैसी लुटाई नहीं थी। हमारे पास ज्यादा सामान नहीं था सो आराम से बस में जाकर सीट से चिपक गये। बस घनसाली जा रही थी जो कि टिहरी डैम को पार करते हुये जाता है। टिहरी शहर से टिहरी झील की दूरी लगभग 18 किलोमीटर है। लेकिन मेरा दावा है कि उस 18 किलोमीटर के रास्ते में आप बोर नहीं हो सकते हैं।
इस बस के रास्ते में पहाड़ थे और पहाड़ पर मुझे नलों के पाइप नजर आ रहे थे। मुझे समझ नहीं आया कि ऐसा क्यों है? इस सफर का मेरे दोस्त ने बताया कि गढ़वाल क्षेत्र में पानी की कमी है और टिहरी झील से पानी गांवों तक पहुंचाया जा रहा है।
पहाड़ों के रास्ते में आपको सूखी नहरे सी मिलती हैं लेकिन सभी सूखी थी। जिससे हम अंदाजा लगा रहे थे कि यहां पानी की कितनी कमी है। पहाड़ हमेशा ही अच्छे लगते हैं लेकिन यहां रास्तों के पहाड़ उजाड़ लग रहे थे। पहाड़ पर कुछ चिन्ह् दिख रहे थे जो पानी के गिरने से बन गये थे, जिसे पहाड़ी लोग गदेरों कहते हैं। मुझे इन पहाड़ों से ज्यादा गांव और खेत खूबसूरत लग रहे थे। सर्दियां थी इसलिये छोटे-छोटे बच्चे भी गर्म कपड़ों में नजर आ रहे थे। इन घुमावदार रास्ते से नीचे की ओर चले जा रहे थे। अब पहाड़ चोटीनुमा हो गये थे और हम बौने। यहां नीचे पेड़ों ज्यादा थे जो रास्ते में छांव देने का काम कर रही थी। लेकिन दिमाग में एक बात चल रही थी टिहरी डैम और कितना दूर है।
टिहरी झील
कुछ ही देर बाद बस वाले ने हमें डैम के बिल्कुल गेट पर उतार दिया। हमारे एक तरफ पहाड़ थे दूसरी तरफ चमकदार झील जिसे हम अभी आंखों में नहीं उतार रहे थे, हम डैम को देखना चाहते थे। हमारे सामने दो गाॅर्ड खड़े थे। हमने उनसे अंदर जाने की बात की तो उन्होंने हमसे इसका अनुमति लेटर मांगा। हमें इसके बारे में जानकारी नहीं थी। उन्होंने हमें टिहरी जाकर जिला प्रशासन से अनुमति लेकर आने को कहा। मैं दुखी सा हो गया और मेरा दोस्त भी।
टिहरी झील जिसे हम अभी तक बड़ी दीवार के कारण नहीं देख पाये थे जब वापस लौटे तो मेरे सामने एक नदी थी। नदी क्या अथाह सागर था। नदी अक्सर नीले रंग की होती है लेकिन टिहरी झील को देखकर लग रहा था कि किसी ने चटक हरा रंग मिला दिया है जिससे पूरी झील हरी होकर चमक रही है।
झील को अपने कैमरे में सहेजता पांडे। |
मैं उस झील को चलते हुये देखते जा रहा था। वो सीन बिल्कुल फिल्म की तरह था। पहाड़ के पीछ़े पहाड़ और उसके पीछे भी पहाड़ और उनके बीच में एक नदी। ऐसा दृश्य दूर तलक था। मुझे निहारने में एक अलग सा सुकून आ रहा था। मैं केदारनाथ जरूर नहीं गया था लेकिन उससे भी सुंदर नजारे को मैं देख रहा था। मैंने आज तक इतना सुंदर कभी नहीं देखा था। मैं कवि होता तो झील को एक कविता में बदल देता।
झील के चारों तरफ पहाड़ थे और पहाड़ पर बसे कुछ घर दिख रहे थे। मैं उन लोगों को बड़ा खुशनसीब कह रहा था कि वे जन्नत जैसी जगह में रहते हैं।
कुछ देर वहां बिताने के बाद हम वापस पैदल चलने लगे। चलते-चलते हम एक त्रिराहे पर पहुंचे। जहां लिखा था टिहरी परियोजना क्षेत्र में आपका स्वागत है। हम उसके सामने वाले रास्ते पर चलने लगे। हम टिहरी झील का कोना पकड़कर चलने लगे। हमें हर मोड़ एक नई सुंदरता दे रही थी। वैसे ही जैसे किसी छोटे से पौधे से नई कपोल निकलती थी।
टिहरी व्यू प्वाइंट
हमें टिहरी डैम देखना था लेकिन हमें अंदर जाने की अनुमति नहीं मिली। हमें वहीं एक व्यक्ति ने बताया कि आपको डैम व्यू प्वाइंट से दिखेगा। हमें उसके बारे में नहीं पता था लेकिन बस वाले को पता था हमने उससे कह दिया और उसने हमें पहुंचा दिया। यहां एक जालीदार दीवार थी। उस जालीदार दीवार में कुछ छेद थे और छेद से हम देख भी सकते थे और सहेज भी सकते थे।
ये तस्वीर टिहरी व्यू प्वाइंट पर है। |
हम व्यू प्वाइंट से टिहरी डैम को तो नहीं देख पा रहे थे लेकिन उस डैम का रास्ता दिख रहा था। यहां से सब कुछ छोटा दिख रहा था। मुझे न व्यू प्वाइंट में दिलचस्पी थी और न ही डैम में। मुझे तो पहाड़ और झील देखनी थी। जो मैं सामने से देख रहा था वही अब पहाड़ के बराबर खड़े होकर देख रहा था। दृश्य वाकई सुंदर था। सौंदर्य की पराकाष्ठाको पार करता हुआ। यहां पहाड़ से लेकर, झील सब चमक रहे थे। उस चमक से मेरे चेहरे पर भी चमक आ गई थी।
टिहरी का यह घुमावदार सफर मुझे पसंद आ रहा था। सब तो था यहां सुंदरता, खुश करने के लिये प्रकृति और झील तो मानो कह रही हो राही तेरा यही है ठिकाना। ये ठिकाना सबको पसंद आयेगा, है ही इतना खूबसूरत। लोग प्रकृति देखने मंसूरी और नैनीताल जाते हैं और पाते हैं भीड़। उन लोगों को टिहरी आना चाहिये और मेरी तरह यहां खोते पायेंगे।