दीपावली हमारा ऐसा पर्व है जो हमारे अंदर खुशियां भर देता है। इस दिन हर गली, चौक, मोहल्ला जगमग रहते हैं। दीपावली ऐसा पर्व है जिसे हर कोई खास बनाना चाहता है इसलिये तो हम इन खुशियों को बांटते हैं, दोस्तों के साथ, परिवार के साथ। दीपावली हर जगह अलग-अलग तरीके से मनाई जाती है। शहरों में एक ही तरह की होती है, पटाखों वानी। लेकिन दीपावली तो दीपों का पर्व है इस दिन तो बस दीप जलने चाहिये मन के भी और घर के भी।
अगर दीपों वाली दीपावली देखनी है, परिवार वाली दीपावली देखनी है तो बुंदेलखंड के गांवों में आना चाहिये। यहां दीपावली ऐसे मनाई जाती है जैसे कोई जलसा हो। शहर में रहने वाले लोग सोचते हैं कि रात में पूजा करना ही दीवाली है। लेकिन दीपावली तो सूरज के पहर से ही शुरू हो जाती है। वो बात अलग है कि शहर में बसावट के कारण अपनी मौलिक परंपरा को भूलते जा रहे हैं। लेकिन बुंदेलखंड के गांव आज भी उन्हीं परंपराओं में जगमग होकर दीपावली मनाते हैं।
दशहरे के साथ बुंदेलखंड में दीपावली की तैयारियां शुरू होने लगती हैं। चूने, मिट्टी से बने घरों की मरम्मत करके उनको साफ किया जाता है। हर हाल में सफाई दीपावली से पहले हो जाती है। अगर गांव में किसी की सफाई रह जाती है तो एक-दूसरे की मदद करके पूरा किया जाता है।
दीपावली के दिन सुबह होते ही गांव का जुलाहा गांव के हर घर में जाता है। चाहे किसी भी धर्म का हो। जुलाहा दीपक जलाने के लिए रूई दे जाता है। इसी प्रकार कुम्हार दीपक दे जाता है। शाम के समय लुहार घर-घर जाता है और दरवाजे की चौखट पर कील गाड़ता है। ये लोग इस काम के बदले पैसे नहीं लेते, उनको घर की महिला नाज(अन्न) देकर, उनके पैर पड़कर आशीर्वाद लेती हैं। ये परंपरा बुंदेलखंड गांव में आज भी है और इसका महत्व भी है।
इन परंपरा को इन गांवों में आज भी जिंदा रखा गया है क्योंकि इसे बड़े-बूढ़ों को सम्मान भी मिलता है। ऐसा करना बुंदेलखंड के गांव में शुभ माना जाता है।
सूरज के ढलते ही गांव में पूजा की शुरूआत हो जाती है क्योंकि ये पूजा भी बहुत देर तक चलती है। इसमें सबसे पहले गाय की पूजा की जाती है। गाय के सींघों को हल्दी और घी से मड़ा जाता है और उनमें रस्सीनुमा मुड़कर बांधा जाता है। उसके बाद गाय को नमक खिलाया जाता है जो सबसे मुश्किल काम होता है। गाय के मुंह में हाथ डालकर नमक खिलाते हैं, सिर पर हल्दी चावल लगाकर उनका आशीर्वाद लेते हैं।
रात को होती है लक्ष्मी पूजन। जिसमें पूरा परिवार एक जगह इकट्ठा होता है और पूजा की सभी गतिविधियों में शामिल रहता है। लक्ष्मी पूजन घर का सबसे वृद्ध व्यक्ति करता है। पूजा करने के बाद सभी अपने से बड़ों का आशीर्वाद लेते हैं।
इसके बाद दीपकों को घर के हर कोने में रखा जाता है, हर कमरे में, यहां तक कि बाथरूम में भी। गांव में जहां-जहां परिवार की जगह होती है, सभी जगह दीपकों को रखा जाता है। जहां कूड़ा फेंकते हैं, अपने पूर्वजों की श्मशान स्थली पर, कुआं, तालाब पर। घर के सभी कोनों को इस दिन दीपक से रोशन किया जाता है। शायद इसलिए इसको दीपों का त्यौहार कहते हैं।
पूजा करने के बाद गांव के नौजवान पटाखे से आतिशबाजी करते है, जब तक घर की महिलायें सामूहिक भोजन की तैयारियां करती हैं। उसके बाद सभी लोग मिलकर एक साथ खुशी-खुशी खाना खाते हैं। ये बुंदेलखंड की दीपावली के दिन की परंपरा है। इसके कुछ दिनों तक ऐसी ही परंपराएं चलती रहती हैं। जिसमें गांव के लोगों की आपसी सहकारिता की झलक मिलती है।
बुंदेलखंड में गोवर्धन पूजा को लेकर दो अलग-अलग मान्यताएं हैं। पहली मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने जमघट के दिन अपनी उंगली में गोवर्धन पर्वत उठा कर गोकुलवासियों की रक्षा की थी। तभी से पशुओं के गोबर का पर्वत बनाकर एक पखवाड़ा तक पूजा की जाने लगी।
दूसरी मान्यता है कि पशुओं का गोबर किसान का सबसे बड़ा धन है, इसलिए किसान गोबर की पूजा करता है। गोवर्धन पर्वत में इस्तेमाल किए गए गोबर को एक पखवाड़ा बाद हर किसान अपने खेत में फेंककर अच्छी फसल की मन्नत मांगते हैं।
जो शहर जाते हैं वे फिर कभी गांव की उन मेड़ो की ओर लौट नहीं पाते हैं। लेकिन उन्हें खींचता है वो गांव जहां उनका एक कच्चा-पक्का घर है। उनको भी याद आते होंगे अपने गांव के दिन। जिसको शहर से हमेशा अच्छा ही कहा जाता है। उन लोगों को अब लौटना चाहिए क्योंकि दीपावली आ गई है और गांव बुला रहा है।
‘‘घरों को जोड़ने वाले ये रस्ते भले ही कच्चे हों,
पर यहां दिलों का जोड़ पक्का है,
इसलिए तेरे शहर से बुंदेलखंड के ये गांव अच्छे हैं।’’
अगर दीपों वाली दीपावली देखनी है, परिवार वाली दीपावली देखनी है तो बुंदेलखंड के गांवों में आना चाहिये। यहां दीपावली ऐसे मनाई जाती है जैसे कोई जलसा हो। शहर में रहने वाले लोग सोचते हैं कि रात में पूजा करना ही दीवाली है। लेकिन दीपावली तो सूरज के पहर से ही शुरू हो जाती है। वो बात अलग है कि शहर में बसावट के कारण अपनी मौलिक परंपरा को भूलते जा रहे हैं। लेकिन बुंदेलखंड के गांव आज भी उन्हीं परंपराओं में जगमग होकर दीपावली मनाते हैं।
दशहरे से तैयारी
दशहरे के साथ बुंदेलखंड में दीपावली की तैयारियां शुरू होने लगती हैं। चूने, मिट्टी से बने घरों की मरम्मत करके उनको साफ किया जाता है। हर हाल में सफाई दीपावली से पहले हो जाती है। अगर गांव में किसी की सफाई रह जाती है तो एक-दूसरे की मदद करके पूरा किया जाता है।
दीपावली में बुंदेलखंड के गांवों में रौनक रहती है। जो नौजवान रोजगार के लिए साल भर शहर में रहते हैं। वे दीपावली को जरूर आते हैं। उन्हीं लोगों के साथ गांव चौक चौबंद होने लगते हैं। घर में हंसी के पटाखे छूटने लगते हैं।
दीपवाली का दिन
दीपावली के दिन सुबह होते ही गांव का जुलाहा गांव के हर घर में जाता है। चाहे किसी भी धर्म का हो। जुलाहा दीपक जलाने के लिए रूई दे जाता है। इसी प्रकार कुम्हार दीपक दे जाता है। शाम के समय लुहार घर-घर जाता है और दरवाजे की चौखट पर कील गाड़ता है। ये लोग इस काम के बदले पैसे नहीं लेते, उनको घर की महिला नाज(अन्न) देकर, उनके पैर पड़कर आशीर्वाद लेती हैं। ये परंपरा बुंदेलखंड गांव में आज भी है और इसका महत्व भी है।
इन परंपरा को इन गांवों में आज भी जिंदा रखा गया है क्योंकि इसे बड़े-बूढ़ों को सम्मान भी मिलता है। ऐसा करना बुंदेलखंड के गांव में शुभ माना जाता है।
गौ-पूजन
सूरज के ढलते ही गांव में पूजा की शुरूआत हो जाती है क्योंकि ये पूजा भी बहुत देर तक चलती है। इसमें सबसे पहले गाय की पूजा की जाती है। गाय के सींघों को हल्दी और घी से मड़ा जाता है और उनमें रस्सीनुमा मुड़कर बांधा जाता है। उसके बाद गाय को नमक खिलाया जाता है जो सबसे मुश्किल काम होता है। गाय के मुंह में हाथ डालकर नमक खिलाते हैं, सिर पर हल्दी चावल लगाकर उनका आशीर्वाद लेते हैं।
लक्ष्मी-पूजन
रात को होती है लक्ष्मी पूजन। जिसमें पूरा परिवार एक जगह इकट्ठा होता है और पूजा की सभी गतिविधियों में शामिल रहता है। लक्ष्मी पूजन घर का सबसे वृद्ध व्यक्ति करता है। पूजा करने के बाद सभी अपने से बड़ों का आशीर्वाद लेते हैं।
इसके बाद दीपकों को घर के हर कोने में रखा जाता है, हर कमरे में, यहां तक कि बाथरूम में भी। गांव में जहां-जहां परिवार की जगह होती है, सभी जगह दीपकों को रखा जाता है। जहां कूड़ा फेंकते हैं, अपने पूर्वजों की श्मशान स्थली पर, कुआं, तालाब पर। घर के सभी कोनों को इस दिन दीपक से रोशन किया जाता है। शायद इसलिए इसको दीपों का त्यौहार कहते हैं।
पूजा करने के बाद गांव के नौजवान पटाखे से आतिशबाजी करते है, जब तक घर की महिलायें सामूहिक भोजन की तैयारियां करती हैं। उसके बाद सभी लोग मिलकर एक साथ खुशी-खुशी खाना खाते हैं। ये बुंदेलखंड की दीपावली के दिन की परंपरा है। इसके कुछ दिनों तक ऐसी ही परंपराएं चलती रहती हैं। जिसमें गांव के लोगों की आपसी सहकारिता की झलक मिलती है।
गोधन पूजा
बुंदेलखंड में गोवर्धन पूजा को लेकर दो अलग-अलग मान्यताएं हैं। पहली मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने जमघट के दिन अपनी उंगली में गोवर्धन पर्वत उठा कर गोकुलवासियों की रक्षा की थी। तभी से पशुओं के गोबर का पर्वत बनाकर एक पखवाड़ा तक पूजा की जाने लगी।
दूसरी मान्यता है कि पशुओं का गोबर किसान का सबसे बड़ा धन है, इसलिए किसान गोबर की पूजा करता है। गोवर्धन पर्वत में इस्तेमाल किए गए गोबर को एक पखवाड़ा बाद हर किसान अपने खेत में फेंककर अच्छी फसल की मन्नत मांगते हैं।
जो शहर जाते हैं वे फिर कभी गांव की उन मेड़ो की ओर लौट नहीं पाते हैं। लेकिन उन्हें खींचता है वो गांव जहां उनका एक कच्चा-पक्का घर है। उनको भी याद आते होंगे अपने गांव के दिन। जिसको शहर से हमेशा अच्छा ही कहा जाता है। उन लोगों को अब लौटना चाहिए क्योंकि दीपावली आ गई है और गांव बुला रहा है।
‘‘घरों को जोड़ने वाले ये रस्ते भले ही कच्चे हों,
पर यहां दिलों का जोड़ पक्का है,
इसलिए तेरे शहर से बुंदेलखंड के ये गांव अच्छे हैं।’’
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