Saturday, 21 January 2023

पलाचक वैली: मेरी कल्पना से भी खूबसूरत है हिमाचल प्रदेश की ये जगह

हर कोई लगातार घूमने की चाहत रखता है कि लेकिन सबको ना ही मौक़ा मिलता है और ना ही सभी के पास समय होता है। ख़ुशक़िस्मत लोग होते हैं जो लगातार घूमने को अपना मक़सद बना लेते हैं। मैं लगातार तो नहीं घूमता लेकिन कोशिश करता हूँ कि महीन में एक नई जगह को एक्सप्लोर किया जाए। घुमक्कड़ी जबसे मेरी ज़िंदगी में आई है, मेरी ज़िंदगी ख़ूबसूरत बन गई है। मुझे पहाड़ों में जाना पसंद हैं और ट्रेकिंग को तो मैं एक चुनौती की तरह देखता हूँ। हिमाचल प्रदेश में मैंने एक ऐसा ही शानदार ट्रेक किया, जिसकी खूबसूरती को बयां करना बेहद मुश्किल है, पलाचक वैली।

हम एक दिन पहले रात को राजगुंधा गाँव पहुँच चुके थे। राजगुंधा तक का सफ़र काफ़ी कठिन और रोमांचक रहा। रात को तो अंधेरे की वजह से राजगुंधा को देख नहीं पाए थे लेकिन सुबह के उजाले में राजगुंधा की ख़ूबसूरती देखने को मिली। ऊँचे और खूबसूरत पहाड़ों से घिरी ये छोटी-सी जगह किसी जन्नत से कम नहीं है। अपने टेंट से निकलकर कुछ देर पगडंडियों पर चला और काफ़ी देर तक सूरज को उगते हुए देखा। कीबोर्ड वाली ज़िंदगी में कभी-कभार ही सूर्योदय को उगते हुए देखने को मिलता है। जब सूर्योदय पहाड़ी जगह पर देखने को मिले तो वो अनुभव और भी शानदार हो जाता है। इसके बाद मैं तैयार हुआ और फिर पराँठे का नाश्ता किया। इसी बीच आगे का प्लान भी बन रहा था। पहले प्लान बना कि हम ट्रेक नहीं करेंगे सीधे बिलिंग के लिए निकलेंगे लेकिन नाश्ता ख़त्म होते-होते पलाचक वैली ट्रेक करने का तय हो गया।

ट्रेक के लिए तैयार

पलाचक वैली का कोई ट्रेक नहीं है बल्कि थमसर पास ट्रेक का ही भाग है। थमसर पास के ट्रेक में पलाचक जगह मिलती है। पलाचक का ट्रेक बहुत लंबा नहीं है लगभग 7-8 किमी. का ट्रेक है। हमें ऐसा बताया गया कि बहुत ज़्यादा कठिन भी नहीं है। एक दिन पहले यहाँ काफ़ी बारिश हुई थी तो फिसलने का ज़रूर डर था लेकिन तेज़ धूप की वजह से हम पलाचक जाने के लिए तैयार हो गए। कुछ देर में हम पैदल-पैदल आगे बढ़ चले। राजगुंधा में राजमा काफ़ी होता है। लोगों के घरों पर राजमा दिखाई दे रहा था और कुछ लोग एक गाड़ी पर बोरियाँ चढ़ा रहे थे। शायद ये बोरियाँ बाज़ार में बेचने के लिए जा रही होंगी। गाँव से एक रास्ता ऊपर की ओर बढ़ गया। हम उसी रास्ते से आगे बढ़ने लगे। अभी तक रास्ता साधारण था लेकिन अब छोटे-छोटे पत्थर शुरू हो गए थे और बीच-बीच में पानी भी भरा हुआ था।

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कुछ देर खुले रास्ते में चलने के बाद हम पेड़ों के बीच गए। हमारे एक तरफ़ ऊँचे पहाड़ थे और दूसरी तरफ़ पेड़ ही पेड़ नज़र रहे थे हालाँकि रास्ता अब आसान लगने लगा था। ये रास्ता जंगलों से इतना घिरा हुआ था कि धूप हम तक नहीं पा रही थी। कुछ देर बाद हम फिर से एक खुले रास्ते पर गए। यहाँ से हमें राजगुंधा और उह्ल नदी दिखाई दे रही थी। ये खूबसूरत नजारा किसी को भी आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर सकता है और हमारा तो थकना भी अभी शुरू नहीं हुआ था। रास्ते में अचानक एक ऐसा पेंच आया जो ऊबड़-खाबड़ था। इसको सबने पार तो कर लिया लेकिन अब कुछ लोग आगे जाना चाहते थे और कुछ लोग ट्रेक नहीं करना चाहते थे। काफ़ी चर्चा के बाद ये तय हुआ कि जो लोग ट्रेक करना चाहते हैं वो आगे चलें और बाक़ी लोग वापस चलें जाएँ। हम राजगुंधा से 7 लोग ट्रेक के लिए निकले थे लेकिन अब 4 लोग ही आगे जा रहे हैं।

पगडंडी और नजारा

खुले रास्ते से बढ़ते हुए हम ऐसी जगह पर पहुँच गए जहां से पहाड़ का एक अद्भुत नजारा दिखाई दिया। पहाड़ों में जैसे-जैसे ऊँचाई वाली जगह पर जाते हैं तो लोग कम देखने को मिलते हैं लेकिन नज़ारे सुंदर होते जाते हैं। कहते हैं ना जहां मनुष्य कम होगा वहाँ प्रकृति का सबसे सुंदर स्वरूप देखने को मिलेगा। यहाँ हम कुछ देर रूके और फिर से आगे बढ़ चले। रास्ते में एक जगह कुछ खच्चर भी मिले। पहाड़ों में ऐसी जगहों पर गाड़ी तो नहीं सकतीं तो सामान ले जाने के लिए खच्चर ही एक माध्यम होता है। कई जगहों पर तो खच्चर पर बैठकर अपनी मंज़िल तक पहुँचते हैं। आगे बढ़ने पर सामने से पहाड़ी भेड़ें आती हुई दिखाई दीं। ये भेड़ें 50-100 की संख्या में नहीं बल्कि कई हज़ार में थीं। शायद चरवाहे इनको कुछ महीनों पहले चराने के लिए ले गए थे और अब वापस लौट रहे हैं। ट्रेक के दौरान ऐसे नज़ारे सफ़र को और शानदार बना देते हैं।


रास्ते में कुछ छोटे-छोटे झरने भी मिल रहे थे जिनको पार करके आगे बढ़ते जा रहे थे। बारिश में ऐसे झरनों को पार करना काफ़ी मुश्किल होता है लेकिन मौसम तो हमारे साथ था। रास्ता चढ़ाई वाला नहीं मिल रहा था लेकिन छोटे-छोटे पत्थर और फिसल की वजह से थोड़ा जोखिम था। मैंने इससे पहले तुंगनाथ, फूलों की घाटी, हेमकुंड साहिब, कुंजापुरी, नैना देवी पीक और केदारकंठा का ट्रेक किया है। मुझे ट्रेकिंग का थोड़ा-थोड़ा अनुभव है तो ये रास्ता मुझे ज़्यादा कठिन नहीं लग रहा था। काफ़ी घने जंगलों से होकर हम फिर से एक खुली जगह पर पहुँच गए। यहाँ से हमें कुछ घर दिखाई दिए। वही पलाचक है और मुझे वहीं जाना था। देखकर लग रहा था कि हम कुछ ही मिनटों में वहाँ पहुँच जाएँगे लेकिन ऐसा नहीं होने वाला था।

पलाचक वैली

हम जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे थे नदी हमारे पास आती जा रही थी। नदी काफ़ी तेज़ चल रही थी। पहाड़ों के बीच नदी का बहना सबसे सुंदर दृश्यों में से एक है। मैं घटों नदी किनारे बैठ सकता हूँ। मुझे याद है कि नदी किनारे बैठने के चक्कर में घांघरिया ट्रेक में रात कर ली थी। इस बार हमारे पास समय थोड़ा कम था तो मैं ऐसा कुछ करने के मूड में नहीं था। कुछ देर में एक लकड़ी का पुल आया जिससे हम नदी पार करने वाले थे। ये लकड़ी के पुल देखने में बहुत अच्छे लगते हैं लेकिन इनमें ख़तरा भी काफ़ी रहता है। इस नदी को पार करने के बाद मैं उस जगह पहुँचा, जहां एक घर बना हुआ था। इस घर में कुछ लोग थे। बात करने पर पता चला कि वो यहाँ खेती करते हैं सर्दियों में यहाँ से चले जाते हैं। घर के पास में कुछ महिलाएँ एक खेती में मटर काट रही थीं।

नदी के किनारे

हम अपनी मंज़िल पर पहुँच चुके थे। अब हमें यहाँ कुछ देर रूकना था और फिर वापस लौटना था। कुछ लोग हमारे इंतज़ार में राजगुंधा में थे। हमारे लौटने के बाद हमें वापस बिर के लिए निकलना था। इस घर में खाने के लिए मैगी बन सकती थी तो मेरे साथियों ने अपने लिए मैगी खाने का तय किया। मेरा ऐसा कोई मन नहीं था और ना ही भूख लगी थी। मैं मैगी और उस घर से दूर नदी किनारे गया। नदी हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती है। मैं नदी किनारे एक पत्थर पर बैठ गया। पानी में पैर डालने का एक अलग ही मज़ा है लेकिन पानी काफ़ी ठंडा था इसलिए वापस निकालना पड़ा। पहाड़, जंगल और नदी हर जगह ही होती है, नजारा भी अलग ही होता है लेकिन सबसे अलग होता एक नया एहसास। पहाड़ स्थिर होना सिखाते हैं और नदी आगे बढ़ने की सीख देती है।

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मैं वापस पहुँचा तो मैगी बन चुकी थी और खाने वाले खाना शुरू कर चुके थे। मैंने भी उसमें से एक चम्मच स्वाद लिया। तभी मुझे याद आया कि मैं राजगुंधा से एक पराँठा लाया था। बाकी लोग मैगी खा रहे थे और मैं पराँठा। कुछ देर बाद हम वापस राजगुंधा की तरफ़ निकल पड़े। उसी रास्ते से कुछ घंटों बाद हम राजगुंधा पहुँच गए। पहले कुछ खाया और फुर बिर चलने के लिए तैयार हो गए। हम बिर से बरोट होते हुए राजगुंधा आए थे लेकिन अब बिर दूसरे रास्ते से जाने वाले थे। राजगुंधा से सीधा एक रास्ता बिलिंग के लिए जाता है। हम उसी रास्ते से आगे बढ़ चले। रास्ता काफ़ी कठिन था। कुछ ही किलोमीटर पहुँचने में हम काफ़ी समय लग गया। हमने रास्ते में घना कोहरा, मिट्टी और पत्थरों वाले रास्तों का सामना किया। पहले हम बिलिंग पहुँचे और फिर बिर।


 जब मैं दिल्ली से चला था तो मैंने सोचा नहीं था कि इस सफ़र में इतना रोमांच देखने को मिलेगा। पहले एक कठिन रास्ते से राजगुंधा पहुंचा और फिर एक ट्रेक किया। उसके बाद फिर बिर आने के लिए दुर्गम रास्ता चुना। हम अब बिर चुके थे। भारत की एक बेहद मशहूर जगह, जहां हर कोई पैराग्लाइडिंग के लिए आता है। इस जगह पर अभी हमें कुछ और अनुभवों को समेटना था।


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हिमाचल प्रदेश के बिर से राजगुंधा वैली का यात्रा

 मुझे पहाड़ वाक़ई में बहुत पसंद हैं। मुझे नये-नये पहाड़ी शहरों और गाँवों में जाना अच्छा लगता है। एक नई जगह को देखना का एक अलग ही एहसास होता है। ऐसा लगता की आपने एक नया मुक़ाम हासिल कर लिया हो। मैं एक बार फिर से हिमाचल प्रदेश के एक नई जगह पर जाने के लिए तैयार था। कुछ ही महीने पहले मैंने शिमला से स्पीति वैली की एक लंबी यात्रा की थी। अब मैं हिमाचल प्रदेश के बिर बिलिंग की यात्रा पर जा रहा था। पहले मुझे लगता था कि बिर बिलिंग एक ही जगह है लेकिन असल में बिर और बिलिंग दो अलग-अलग जगहें हैं। दिल्ली में कुछ वक़्त बिताने और मजनू टीला की गलियों में खोने के बाद हम शाम को दिल्ली से बिर के लिए निकल पड़े।

हिमाचल प्रदेश के बिर जाने के लिए आप सरकारी और वॉल्वो बस दोनों ले सकते हैं। रोडवेज़ बस समय ज़्यादा लगाती है इसलिए मैंने वॉल्वो बस से जाने का तय किया। बस मजनू टीला से चल पड़ी। कुछ ही देर में बस दिल्ली को पार करते हुए आगे बढ़ गई। रात के अंधेरे में नज़ारे कम आती-जाती हुई गाड़ियाँ ज़्यादा दिखाई देती हैं। बस रात के 11 बजे एक ढाबे पर रूकी। यहाँ मैंने छोले-भटूरे से पेट भरा। थोड़ी देर में बस फिर से चल पड़ी। मुझे कब नींद आ गई पता ही नहीं चला। सुबह 6 बजे मेरी नींद खुली तो देखा कि बस पहाड़ी रास्तों पर बढ़ती जा रही थी। पता नहीं क्यों मुझे अच्छा नहीं लग रहा था? वाल्वो बस में उल्टी के लिए पॉलीथिन दी जाती हैं। मेरी सीट पर भी कई सारी थीं। मैंने एक बार उल्टी करनी शुरू की तो फिर तो कारवां बढ़ता जा रहा था। बस एक पेट्रोल पंप पर टायर बदलने के लिए रूकी तो मैं बाहर निकल गया।

बिर तो आ गए

कुछ देर में बस चल पड़ी लेकिन मेरी उल्टी का सिलसिला ख़त्म नहीं हुआ। मैं जल्दी से जल्दी बिर पहुँचना चाहता था। काफ़ी देर बाद बस बिर की तिब्बती कॉलोनी में रुकी। बस से उतरने के बाद मैं कुछ देर बाहर बैठा रहा। दिल्ली की मेरी एक दोस्त बिर में कुछ महीनों से यहीं रुकी हुई थी और एक दोस्त घूमने के लिए आई थी। बिर में उसके कमरे तक पैदल चलने लगे। पहली नज़र में बिर मुझे एक छोटी-सी जगह लगी। जहां छोटी-छोटी दुकानें दिखाई दे रहीं थीं। कुछ होटल भी रास्ते में मिले। कुछ देर में हम अपने दोस्तों के कमरे पर बैठे थे। बातों ही बातों में आगे जाने के प्लान के बारे में बात हुई। मैं तो यही सोचकर आया था कि पहले बिर घूमा जाएगा और फिर धर्मशाला की तरफ़ निकल जाएँगे लेकिन दोस्तों के साथ प्लान बदलने का भी अलग मज़ा है।

अब हम कुछ ही देर में राजगुंधा के लिए निकलने वाले थे। राजगुंधा जाने वाले हम 7 लोग हो चुके थे। हमने 3 स्कूटी किराए पर ले लीं और एक के पास ख़ुद की गाड़ी है। राजगुंधा जाने के दो रास्ते हैं, पहला बिलिंग होते हुए राजगुंधा जाएँ जो क़रीब 30 किमी. पड़ेगा लेकिन रास्ता बेहद ख़राब है। दूसरा लंबा रास्ता बरोट होते हुए है। हमारे पास पूरा दिन तो हमने उसी लंबे रास्ते से जाने का तय किया। कुछ ही देर में हम सबके पास स्कूटी थी और हम पहाड़ी रास्तों से बढ़ते जा रहे था। मुझे पहाड़ों में स्कूटी चलाने में बहुत मज़ा आता है। हमने एक ढाबे पर खाना भी खाया और फिर से चल पड़े। दोपहर के दो बजे हम बरोट पहुँच गए। बरोट के बारे में काफ़ी सुना था लेकिन पहली बार देख रहा था। बरोट तो बिर से भी छोटी जगह है लेकिन बेहद खूबसूरत है। बिर में उह्ल नदी बहती है जो इस जगह को और सुंदर बनाती है। कुछ लोगों को यहाँ खाना खाना था इसलिए मैं नदी किनारे चला गया। क़रीब घंटे हम बरोट में रहे। बरोट ऐसी जगह है जहां कुछ दिन गुज़ारने चाहिए।

असली परीक्षा तो अब

बरोट से हमें अब राजगुंधा जाना था। बरोट से राजगुंधा क़रीब 26 किमी. है। हम बरोट से राजगुंधा की तरफ़ चल पड़े। अब तक हम आसान रास्ते से चलते आ रहे थे और हम ऐसा सोच भी रहे थे कि आगे भी ऐसा ही रास्ता होगा। हम अपनी स्पीड से बढ़ते जा रहे थे। कुछ देर चलने पर बारिश अचानक शुरू हो गई। हम ऐसी ख़ाली जगह पर थे जहां छुपने का ठिकाना नहीं थी। हम एक पेड़ के नीचे रूक गए लेकिन हमारा भींगना जारी रहा। साथ ही लैंडस्लाइड का भी ख़तरा था। पीछे एक शेल्टर बना हुआ था लेकिन वहाँ जाने का मतलब है पूरा भीग जाएँगे। फिर भी हम भीगते हुए उस जगह पर पहुँच गए। हमारे कुछ साथी पहले से वहाँ थे। अब हमें बारिश रूकने का इंतज़ार करना था। भींगने की वजह से ठंड भी काफ़ी लग रही थी।

कुछ देर बाद बारिश रूक गई। हमने आगे चलने का तय किया क्योंकि शाम हो रही थी और हमें अपनी मंज़िल तक पहुँचना था। कुछ देर बाद हम एक गाँव दिखाई दिया। हमें लगा कि अब हम पहुँच गए लेकिन अभी तो काफ़ी चलना था। हम बढ़ते जा रहे थे लेकिन हमारी मंज़िल नहीं आई थी। फिर एक ऐसा रास्ता आया कि लगा कि इसे पार करना तो मुश्किल है। हमें कच्चे रास्ते से ऊपर चढ़ना था। रास्ता पूरा ऊबड़-खाबड़ था और बारिश होने की वजह से फिसलन भी हो गई थी। ये चढ़ाई काफ़ी लंबी थी। इस चढ़ाई को हमने बहुत मुश्किल से चढ़ा। इस रास्ते पर दो लोग गिर भी गए थे। जब हम अपनी मंज़िल पर पहुँचे तो अंधेरा हो चुका था और हम थककर चूर हो गए थे।

हमारे लिए एक कमरे में आग की व्यवस्था की गई। कपड़े बदलकर हम आग के पास बैठ गए। उसके बाद बातों का सिलसिला शुरू हुआ। बिर से राजगुंधा की इस रोमांचक यात्रा को याद करके एक-दूसरे पर हंस रहे थे। राजगुंधा तक की यात्रा वाक़ई में रोमांचक थी। ऐसे रोमांच रोज़-रोज नहीं आते हैं लेकिन हमारी इस यात्रा में अभी तो रोमांच की शुरूआत हुई थी। खाना खाने और कुछ मस्ती धमाल करने के बाद मैं एक टेंट पर जाकर लेट गया। कुछ ही देर में नींद की आग़ोश में चला गया। राजगुंधा में अभी तो एक और शानदार सफ़र बाक़ी था।

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