Friday, 4 February 2022

सिरपुर: इस छोटी सी जगह ने मेरी छत्तीसगढ़ की यात्रा को यादगार बना दिया

कुछ जगहें ऐसी होती हैं जो पहली नजर में ही भा जाती हैं। एक यात्री के तौर पर मैं किसी जगहों को लेकर पहले से कोई धारणा नहीं बनाता हं लेकिन देखने के बाद उस जगह के बारे में विचार जरूर करता हूं। कभी-कभी घूमने से ज्यादा उस जगह पर बिताये अनुभवों के बारे में सोचने से अच्छा महसूस होता है। छत्तीसगढ़ की जितनी भी जगहों को मैंने देखा है। उनमें से सिरपुर की यात्रा ने सबसे ज्यादा छाप छोड़ी है।

छत्तीसगढ़ के राजिम और चंपारण को देखने के बाद मैं वापस भिलाई आ गया था। मुझे कुछ दिनों में वापस अपने घर लौटना था। मैं चाहता था कि उससे पहले सिरपुर जरूर जाऊं। सिरपुर के बारे में मुझे एक दोस्त ने बताया था। मैंने इंटरनेट पर सिरपुर के बारे में पता किया तो देखने लायक जगह लगी। तब से मेरे दिमाग में सिरपुर की यात्रा का प्लान चलने लगा। रायपुर में मेरा एक दोस्त रहता था, उससे बात की तो वो भी चलने को तैयार हो गया।

लोकल ट्रेन

लोकल ट्रेन से रायपुर5 जनवरी 2022। यही वो तारीख थी जब मुझे भिलाई से रायपुर जाना था। भिलाई से रायपुर जाने के कई साधन थे लेकिन मैं ट्रेन से जाना चाहता था। भिलाई में 3-4 रेलवे स्टेशन हैं। जहां मैं रूका हुआ था, वहां से भिलाई नगर रेलवे स्टेशन पास में था। अगली सुबह 7 बजे मैं भिलाई नगर रेलवे स्टेशन पर था। पूरा स्टेशन कोहरे से ढंका हुआ था। कोहरे की वजह से रेलवे स्टेशन खूबसूरत लग रहा था। कुछ देर बाद लोकल ट्रेन आ गई और दो मिनट बाद चल भी पड़ी।

इससे पहले मैं बंगाल की लोकल ट्रेन में बैठा था। शायद सुबह होने की वजह से ट्रेन में भीड़ कम थी। ट्रेन अपनी गति से चली जा रही थी और मैं बाहर के नजारे को देख रहा था। मैंने रायपुर के अपने दोस्त तेज को कॉल लगाया लेकिन उसका फोन स्विच ऑफ आ रहा था। मैं फिर कॉल लगाया, फिर वही जवाब मिला। मैं परेशान हो गया कि कॉल क्यों नहीं लग रहा है? व्हॉटसएप पर भी मैसेज और कॉल किया लेकिन बात नहीं हुई।

आगे कैसे जाऊंगा?

रायपुर।
तेज से बात होने की वजह से मैंने सिरपुर जाने के लिए दूसरे साधन के बारे में सोचा नहीं था। तेज से बात नहीं हो पा रही थी इसलिए मैंने इंटरनेट पर बस के बारे में पता किया लेकिन कुछ खास मिला नहीं। ट्रेन महासमुंद तक जा रही थी लेकिन वो दिन में थी। मैं तेज को बार-बार कॉल लगाये जा रहा था। मैंने सोच लिया था कि रायपुर पहुंचने के बाद भी अगर तेज का कॉल स्विच ऑफ आया तो बस अड्डा चला जाऊंगा।

भिलाई से रायपुर पहुंचने में 1 घंटे का समय लगा। रेलवे स्टेशन से बाहर आकर मैंने परेशान मन से तेज को कॉल लगाया और इस बार मुझे घंटी सुनाई दे रही थी। घंटी की आवाज सुनकर अलग ही खुशी मिली। तेज से बात हुई और उसने कुछ देर इंतजार करने को बोला। कुछ देर बाद तेज की मोटरसाइकिल पर हम दोनों रायपुर की सड़कों पर थे। तेज मुझे रायपुर के बारे में बता रहा था और मुझे 2018 की छत्तीसगढ़ की यात्रा याद आ रही थी। कुछ देर बाद में तेज के ऑफिस में था।

रायपुर से दूर

सिरपुर के रास्ते में।
तेज ने कुछ दिन पहले ही अपना नया दफ्तर खोला था। तेज के ऑफिस को देखने और बाकी काम में 1 घंटे का समय लग गया। कुछ देर बाद हम रायपुर से दूर एक सफर पर चल पड़े। रायपुर से निकलने में ही काफी समय लग गया। जब हम हाईवे पर आये तो तेज हवा से बातें करने लगा। तेज मोटरसाइकिल तेज चला रहा था और मेरे बाल खराब हो रहे थे।

हाईवे के किनारे वाले नजारों को देखते हुए हम बढ़े जा रहे थे। कुछ देर बाद हम आरंग पहुंच गये। हमने सुबह से कुछ नहीं खाया था इसलिए एक दुकान पर रूके। यहां हमने दुकान वाले को समोसा और कचौड़ी के लिए बोल दिया। तेज ने बताया कि आरंग एक ऐतहासिक जगह है। भगवान कृष्ण ने ऋषि का वेश धारण करके यहां के राजा से अपने शेर के लिए उनके बेटे का मांस मांगा था। राजा ने अपने बेटे का सिर काटकर शेर के आगे डाल दिया था। जिसके बाद भगवान कृष्ण ने उनके बेटे का जिंदा कर दिया था। समोसा और कचौड़ी के लाजवाब स्वाद ने इस सफर को और भी शानदार बना दिया।


सिरपुर

कुछ देर बाद हम फिर से अपनी मंजिल की ओर बढ़े जा रहे था। रास्ते में एक पुल मिला। पुल के दोनों तरफ दूर तक महानदी दिखाई दे रही थी हालांकि नदी में पानी बहुत ज्यादा नहीं था। कुछ देर बाद हमने हाईवे को छोड़कर गांवों वाला रास्ता पकड़ लिया। सड़क के दोनों तरफ खूबसूरत जंगल भी मिल रहा था जो वाकई में सुंदर लग रहा था। काफी देर बाद हमें सिरपुर का बोर्ड दिखाई दिया। कुछ ही मिनटों बाद हम सिरपुर के चौराहे पर खड़े थे।

सिरपुर का चौराहा।
पहली नजर में सिरपुर बिल्कुल छोटी-सी जगह लगा। ऐसा लगा कि कोई सिरपुर कोई गांव हो। आगे बढ़े तो समझ में भी आ गया कि सिरपुर एक गांव ही है। हम दायीं तरफ चल पड़े। सड़क के दोनों तरफ कई पुरातत्विक साईट दिखाईं दे रही थीं। जहां सिरपुर खत्म हुआ, हमने उसके सबसे पास वाली जगह को देखने को पक्का किया।

लक्ष्मण मंदिर

लक्ष्मण मंदिर।
हम सबसे पहले लक्ष्मण मंदिर को देखने जा रहे थे। मंदिर परिसर के बायीं तरफ टिकट घर था। 25 रुपए का टिकट लेने के बाद आगे बढ़े तो तेज को अपने गांव का दोस्त मिल गया। वो इसी जगह पर काम करता है। कुछ देर बातें करने के बाद हम मंदिर को देखने के लिए बढ़ गए। ईंटों से बने इस लक्ष्मण मंदिर को महान पाण्डु वंशीय शासक हर्षगुप्त की पत्नी वासटा ने अपने पति की याद में 6वीं शताब्दी में बनवाया था। इस मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति है।नागर शैली में बनाया गया यह मंदिर भारत का पहला ऐसा मंदिर माना जाता है, जिसका निर्माण लाल ईंटों से हुआ था। लक्ष्मण मंदिर की विशेषता है कि इस मंदिर में ईंटों पर नक्काशी करके कलाकृतियाँ निर्मित की गई हैं, जो बेहद खूबसूरत है। 12वीं शताब्दी में सिरपुर में आए विनाशकारी भूकंप में पूरा श्रीपुर नष्ट हो गया था लेकिन यह लक्ष्मण मंदिर जस का तस रहा।

हमारे गाइड।
हमें यहां एक गाइड मिले जो काफी बुजुर्ग मिले। उन्होंने बताया कि वो आधिकारिक रूप से प्रशिक्षित गाइड नहीं है लेकिन उनके पिताजी गाइड थे। उन्होंने बताया कि ये मंदिर जंगल में छिपा हुआ था। पहले यहां सिर्फ जंगल हुआ करता था। मंदिर में ताला लगा रहता है । उन्होंने बताया कि एक बार मंदिर की मूर्तियां चोरी हो गईं थी इसलिए अब ताला लगा रहा था। मंदिर की दीवारों पर खूबसूरत नक्काशी थी।

म्यूजियम

संग्रहालय।
लक्ष्मण मंदिर परिसर में म्यूजियम भी है। गाइड अंकल ने बताया कि इस म्यूजियम की मूर्तियां खुदाई में मिली थीं। संग्रहालय में बहुत सारी मूर्ति थी। महात्मा बुद्ध, महावीर स्वामी, विष्णु, शिव समेत अनगिनत देवी-देवताओं की मूर्ति इस म्यूजियम में देखने को मिलीं। दो बड़े-बड़े कमरे में ऐसे ही मूर्तियां रखी हुई थी। एक कमरे में कई शिवलिंग रखे हुए थे। लक्ष्मण मंदिर परिसर काफी बड़ा है। मंदिर परिसर में चारों तरफ हरियाली ही हरियाली थी। 

राम मंदिर

राम मंदिर।
कुछ देर में हम लक्ष्मण मंदिर परिसर के बाहर थे। सिरपुर चौराहे की तरफ बढ़े तो हमें एक और पुरातात्विक जगह दिखी। बाहर बोर्ड पर राम मंदिर लिखा हुआ था। अच्छी बात ये थी कि अब हमें किसी और जगह को टिकट नहीं लेना था। इस मंदिर को 7वीं शताब्दी में बनवाया गया था लेकिन हमें मंदिर की जगह सिर्फ खंडहर देखने को मिला। 2003-04 की खुदाई में ये मंदिर मिला था। राम मंदिर का चबूतरा बना हुआ था लेकिन दीवारें टूटी हुई थी। राम मंदिर को देखकर हम आगे बढ़ गये।

राम मंदिर के पास में ही बौद्ध विहार है। इस जगह पर बौद्ध धर्म से संबंधित कई जगहें हैं। कुछ देर में हम बौद्ध विहार में थे। इन जगहों को देखकर लग रहा था कि हम अतीत के गलियारे में गोते लगा रहे हैं। कभी-कभी हमें अपना इतिहास हैरान कर देता है। मैं इतिहास का विद्धार्थी नहीं रहा हूं लेकिन शुरू से ही इतिहास में दिलचस्पी रही है। मुझे इतिहास की किताबें भी पसंद हैं और ऐसी जगहों पर आना भी अच्छा लगता है।

बुद्ध विहार

बुद्ध विहार।
बुद्ध विहार में प्रवेश करते ही सामने टीन की चद्दर के नीचे कुछ संरचनाएं बनी हुईं थीं। ये संरचना छतिग्रस्त तो थी लेकिन काफी कुछ बना हुआ भी था। बुद्ध विहार के इस गेट पर बहुत सारी मूर्तियां उकेरी गईं थीं। गेट के अंदर सामने महात्मा बुद्ध की बड़ी-सी मूर्ति रखी हुई थी। बीच में बहुत सारे खंभे बने हुए थे जो टूटे हुए थे। जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां कभी मंदिर हुआ करता होगा। बुद्ध विहार का आर्किटेक्चर काफी अच्छा है। खंभों पर बनी नक्काशी तो कमाल की है।

बुद्ध विहार में इसी प्रकार की 4 संरचनाएं हमने देखीं। टीन की चद्दर के नीचे वाली संरचना को छोड़ दें तो बाकी संरचनाएं ज्यादा ही क्षतिग्रस्त हैं। एक संरचना में तो सिर्फ छोटे-छोटे कमरें हैं। इन दोनों से दूर एक संरचना में बुद्ध की बड़ी-सी मूर्ति है और सामने छोटे-छोटे खंभे दिखाई देते थे। ऐसी जगहों को देखकर अंदाजा ही लगाया जा सकता है कि यहां क्या हुआ करता होगा? हालांकि नोटिस बोर्ड पर इस जगह के बारे में काफी जानकारी मिलती है।ईसा पूर्व छठवीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेनसांग सिरपुर आए थे। उन्होंने अपने यात्रा वृत्तांत में सिरपुर का वर्णन करते हुए लिखा है कि 'दक्षिण कोसल की राजधानी में सौ संघाराम थे। इस क्षेत्र का राजा हिंदू था और यहां सभी धर्मों का सम्मान किया जाता था। यहां सोने-चांदी के गहने बनाने के सांचे, अस्पताल, बंदरगाह आदि के अवशेष मिले हैं।

2003 में खुदाई के दौरान ये बुद्भ स्थल सबके सामने आया था। बौद्ध विहार सिरपुर के राम मंदिर के पास में ही है। सिरपुर के बौद्ध स्थल को दुनिया के सबसे बड़े बौद्ध स्थल के रूप में जाना जाता है। इस बौद्ध विहार का निर्माण छठवीं शताब्दी में सोमवंशी शासक तीवरदेव के समय में हुआ था। इसे तीवरदेव बौद्ध बिहार के नाम से जाना जाता है। इस बौद्ध बिहार में कई संरचनाएं और मूर्तियां हैं। बुद्ध विहार में प्रवेश करते ही सामने टीन की चद्दर के नीचे कुछ संरचनाएं बनी हुईं थीं। ये संरचना छतिग्रस्त तो थी लेकिन काफी कुछ बना हुआ भी था। बुद्ध विहार के इस गेट पर बहुत सारी मूर्तियां उकेरी गईं थीं। गेट के अंदर सामने महात्मा बुद्ध की बड़ी-सी मूर्ति रखी हुई थी। बीच में बहुत सारे खंभे बने हुए थे जो टूटे हुए थे। जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां कभी मंदिर हुआ करता होगा। बुद्ध विहार का आर्किटेक्चर काफी अच्छा है। खंभों पर बनी नक्काशी तो कमाल की है।

गंधेश्वर महादेव मंदिर

नदी किनारे बना मंदिर।
तेज का बचपन इसी जगह पर बीता है इसलिए वो इस जगह को अच्छे से जानता है। वो मुझे इस जगह के बारे में बता रहा था। बौद्ध विहार के बाद हम नदी किनारे एक पेड़ के नीचे रुके। उस जगह के बारे में और सामने बनी यज्ञशाला के बारे में कुछ किस्से सुनाये। थोड़ी देर बाद हम दोनों गंधेश्वर महादेव मंदिर के गेट पर थे। अंदर घुसे तो प्रसाद लेने की कुछ दुकानें लगीं थीं। मैं घूमते समय मंदिर को भी घुमक्कड़ की नजर से ही देखता हूं। अगर अनिवार्य न हो तो मैं प्रसाद नहीं लेता हूं। वैसा ही कुछ मैंने यहां किया।

महानदी के तट पर भगवान शिव का एक प्राचीन मंदिर निर्मित है, जिसे गंधेश्वर महादेव का मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर का निर्माण सिरपुर के पुराने मंदिरों और बौद्ध विहार की अवशेष सामग्री को एकत्रित कर किया गया है। मंदिर में विभिन्न कलात्मक मूर्तियां बुद्ध, नटराज, शिव, बराह, गरूड़, नारायण, महिषासुर की मूर्तियां देखने योग्य है।महानदी तट से बिल्कुल लगे इस मंदिर का निर्माण 8 वीं शताब्दी में बालार्जुन के समय में बाणासुर ने कराया था। गंधेश्वर महादेव मंदिर में स्थित शिवलिंग 4 फीट लंबा है। मंदिर के खंभे पर शानदार नक्काशी की गई है।

राजिम समूह मंदिर की तरह गंधेश्वर महादेव मंदिर बाहर से पूरा सफेद था। मंदिर के खंभे लाल बलुआ के पत्थर के बने हुए थे। मंदिर के खंभों पर नक्काशी भी बेहद शानदार थी। मंदिर के सामने एक छोटा-सा मंदिर था। वहीं मंदिर के पास में कई देवी-देवताओं की मूर्ति बनी हुई थी। मंदिर के पीछे नदी थी। नदी में पानी कम था लेकिन नजारा खूबसूरत था। नदी के इस किनारे पर दो लोग खड़े थे और बीच नदी में एक लड़का और लड़की चल रहे थे। थोड़ी देर बाद वो नदी के एक कोने पर पहुंच गये। इस ओर खड़े दो लोग चिल्लाकर उनको पुकार रहे थे लेकिन शायद सुन नहीं रहे थे या आवाज नहीं पहुंच रही थी। कुछ देर बाद वो दोनों फिर से नदी में थे।

सुरंग टीला

सुरंग टीला।
मंदिर के पास में ही एक दो छोटे-छोटे मंदिर बने हुए हैं। अब हमें अपने सफर के आखिरी स्थान पर जाना था। थोड़ी देर बाद हम उस जगह के बाहर खड़े थे। गेट के अंदर उस जगह के बारे में थोड़ी जानकारी दी थी। जिसके अनुसार इस जगह को सुरंग टीला के नाम से जाना जाता है। 2006 की खुदाई में इस जगह के बारे में पता चला। आगे बढ़े तो एक छोटी-सी संरचना बनी हुई थी। बाकी जगहों की तरह ये संरचना भी क्षतिग्रस्त थी लेकिन खंभों पर बारीक नक्काशी देखने को मिली।

सिरपुर में चाट।
इसी संरचना के सामने एक बड़ा-सा मंदिर है। जिसके लिए काफी सीढ़िया भी बनी हुई हैं। शुरू की सीढ़िया तेढ़ी बनी हुई हैं। मंदिर के ऊपर से ये जगह और भी शानदार लग रही थी। इस मंदिर में तीन गर्भागृह हैं। एक में भगवान गणेश की मूर्ति है और बाकी में शिवलिंग हैं। गर्भागृह के बाहर कुछ मूर्तियां बनी हुई है। मंदिर में खूब सारे खंभे खड़े हुए हैं जिनमें बारीक नक्काशी और मूर्तियां उकेरी गई हैं। सुरंग टीला का आर्किटेक्चर शानदार है। मेरे लिए सुरंग टीला सिरपुर की सबसे शानदार जगहों में से एक है।

सुरंग टीला को देखने के बाद हमें वापस जाना था लेकिन आरंग के बाद से कुछ खाया नहीं था इसलिए भूख लग आई थी। हमने पास में ही खड़े ठेले पर चाट खाई और रायपुर के लिए वापस लौट चले। कुछ जगहें पहली नजर में ही खुशनुमा लगने लगती हैं और कुछ जगहें धीरे-धीरे अपनी छाप छोड़ती है। सिरपुर को जैसे-जैसे देखता गया और भी खूबसूरत लगता गया। अब सिरपुर के बारे में सोचता हूं तो एक शानदार सफर की याद आती है। ऐसे सफर पर मैं बार-बार जाना चाहता हूं।

Saturday, 15 January 2022

छत्तीसगढ़ का चंपारण: सफर तो अच्छा था, मंजिल ने थोड़ा निराश किया

राजिम वाकई में छत्तीसगढ़ की एक खूबसूरत जगह है। राजिम मुझे कुछ-कुछ खजुराहो की तरह लगा। वैसे ही प्राचीन मंदिर जिनको दूर से ही देखकर दिल खुश हो जाता। राजिम को देखने के बाद अब हमारा लक्ष्य था, चंपारण। कुछ देर बाद मैं अभनपुर की ओर जा रहा था। गाड़ी चलाते हुए मुझे लगा कि गाड़ी में कुछ गड़बड़ हो गई है लेकिन मैंने उसे अनदेखा किया। पेट्रोल पंप पर मैंने देखा कि पहिए में एक कील घुस गई थी। कील निकाली तो पहिए से हवा निकलने लगी। किस्मत से सामने ही गाड़ी रिपेयरिंग की दुकान थी। कुछ देर में गाड़ी और मैं दोनों चंपारण जाने के लिए तैयार थे।

अभनपुर पहुँचने के बाद मैं चंपारण की तरफ चल पड़ा। रास्ते में खेत, जंगल और नहर मिल रही थी। इस रास्ते पर भीड़ नहीं थी जो मेरे सफर को खूबसूरत बना रहा था। आगे बढ़ा तो एक चौराहा आया जहाँ मुझे एक ठेला दिखाई दिया। पहले मैंने वहाँ भेल का स्वाद लिया और फिर गुपचुप। इस जगह से चंपारण 15 किमी. दूर था। मैं फिर से चंपारण के रस्ते पर था। कुछ देर मैं गांवो वाले रास्ते पर था। कुछ देर बाद मैं चंपारण में था।

चंपारण चलें

मैंने सोचा था कि चंपारण में लोग कम और देखने को कम लोग होंगे लेकिन ऐसा नहीं था। यहाँ बड़ा सा मंदिर दिखाई दिया जिसको देखकर ही मन खराब हो गया। मंदिर बहुत खूबसूरत था मतलब महल जैसा। इस मंदिर को देखकर लग रहा था कि कुछ ज्यादा ही सजावट कर दी है। चंपारण महाप्रभु वल्लभाचार्य की जन्मस्थली के लिए जाना जाता है। महाप्रभु वल्लभाचार्य ने पूरे भारत की पैदल यात्रा की। वो जहाँ पर भी रुके, वहाँ पर बैठक बनाई गई। चंपारण में भी दो बैठकें हैं। चंपारण का महाप्रभुजी प्राकट्य बैठक जी मंदिर बेहद खूबसूरत है। इस मंदिर को देखकर लगेगा कि आप किसी महल में आ गये हों। मुझे प्राचीन मंदिर पसंद हैं जिनके बारे में जानकर अच्छा लगता है। मंदिर के पूरे परिसर को देखने के बाद मैं बाहर आ गया।

चंपारण आया था तो लग रहा था कि किसी ऐसी जगह पर जाना चाहिए जो मुझे अच्छी लगे। तभी मुझे एक बोर्ड दिखाई दिया। जिस पर डिपरेश्वर मंदिर की दूरी 5 किमी. दिखा रहा था। मैंने स्थानीय लोगों से वहाँ जाने का रास्ता बता दिया और मैं निकल पड़ा। मैं फिर से गांवों और खेतों को देखते हुए बढ़ रहा था। कुछ देर बाद मैं मंदिर के सामने था। चंपारण से 5 किमी. दूर सेमरा गांव में महानदी के किनारे हनुमान जी का मंदिर स्थित है। इस मंदिर में हनुमान जी की मूर्ति है। इसके अलावा भगवान शिव की भी मूर्ति भी रखी हुई है। नदी किनारे बना ये मंदिर वाकई खूबसूरत है। आप घंटों नदी किनारे बैठक दूर तलक दिखनी वाली हरियाली, मछली पकड़ते मछुआरों और नदी मे नहाते हुए लोगों को निहार सकते हैं।

नदी किनारे 

हनुमान जी के मंदिर में इतना कुछ खास नहीं था लेकिन मंदिर के पीछे महानदी का नजारा था। नदी के पास गया तो देखा कि कुछ लोग वहाँ बैठे हैं और दो बच्चे नदी में नहा रहे हैं। उन बच्चों को देखकर मुझे अपना बचपन याद आ गया। जब दोस्तों के सुबह-सुबह नदी में नहाने जाते थे और घंटों नहाते रहते थे। मैं वहीं बैठ गया। नदी के दूर तलक दो नावें दिख रहीं थीं जिसमें बैठे लोग मछली पकड़ने के लिए जाल फेंक रहे थे। मैं इस जगह पर लगभग 1 घंटे बैठा रहा।

यहाँ से अब सीधा भिलाई के लिए निकलना था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। तभी वहाँ बैठे लोग आपस में बात कर रहे थे कि यहाँ से कुछ ही दूरी पर हनुमानजी की बहुत बड़ी मूर्ति है। मुझे इस जगह के बारे में पता नहीं था लेकिन अब पता चल गया था तो जाने का मन हो गया। मैं जल्दी से उठा और चल पड़ा। रास्ते में मिले एक बच्चे ने मंदिर जाने का रास्ता बताया। लगभग 5 किमी. बाद मैं उस जगह पर पहुँच गया। 

वाकई महानदी के तट पर हनुमानजी की बहुत बड़ी मूर्ति थी। इस जगह को रामोदर वीर हनुमान जी टीला के नाम से जाना जाता है। 185 फुट ऊंची हनुमान जी की मूर्ति महानदी के गाय घाट पर स्थित है। इस जगह पर सबसे खूबसूरत नजारा है नदी का। नदी के बीच से महासमुंद के लिए एक छोटा सा पुल भी बना है। इस खूबसूरत नजारे को देखने के बाद मैं फिर से चल पड़ा अपने सफर के लिए। अभी छत्तीसगढ़ की और जगहों को इस भागदौड़ भरी जिंदगी में देखना था।

राजिम की यात्रा के बारे में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।


छत्तीसगढ़ का प्रयाग कहे जाने वाला राजिम वाकई में देखने लायक है

मेरे ख्याल में छत्तीसगढ़ अपने देश के सबसे खूबसूरत राज्यों में से एक है। ये मैंने अपनी बस्तर की यात्रा के दौरान जाना। पहाड़, जंगल, नदी और झरने सब कुछ तो है यहाँ। ये दुर्भाग्य है कि कम लोग ही छत्तीसगढ़ जाने का मन बनाते हैं। मैंने बस्तर को तो कुछ कुछ देखा था लेकिन छत्तीसगढ़ के बाकी संभाग मेरे लिए अनदेखे थे। मैं जाने के बारे में सोचता था लेकिन जा नहीं पाया। इस बार मेरी किस्मत अच्छी थी मेरे खास रिश्तेदार भिलाई पहुँच गए। मैंने भी जल्द प्लान बनाया और भिलाई पहुँच गया।

कुछ दिन दुर्ग भिलाई को देखने की कोशिश की। दुर्ग भिलाई आपस में ऐसे जुड़े हैं जैसे दिल्ली और नोएडा। मेरे दिमाग में कुछ जगहें थीं जिनको एक्सप्लोर करना था। नये साल के 1 दिन पहले मैंने राजिम जाने के बारे में सोचा। अगले दिन सुबह उठा, तैयार हुआ। जहाँ ठहरा था उनकी स्कूटी भी मुझे मिल गई। मैं राजिम की रोड ट्रिप के लिए निकल पड़ा।

मेरे लिए मुश्किल ये था कि मुझे राजिम जाने का रास्ता पता नहीं था। स्थानीय लोगों से बात करने पर रास्ता पता चल गया। थोड़ी ही आगे चला तो देखा कि एक कार और ट्रक की आपस में टक्कर हुई थी। मुझे ये दुर्घटना अपने लिए चेतावनी जैसी लगी। कुछ दूर आगे चला तो एक व्यक्ति ने लिफ्ट मांगी। मैंने भी कंपनी के लिए बैठा लिया।

अकेले क्यों?

भिलाई में सड़क दुर्घटना।

उन्होंने ही बताया कि जिस रास्ते से मैं जा रहा हूं उस रास्ते का हालत अच्छी नहीं है। उस व्यक्ति ने मुझे हाईवे से जाने को कहा। मैं भी हाईवे से ही जाने के पक्ष में था। बात करने पर पता चला कि वो रायपुर की एक कंपनी में काम करते हैं और उनका परिवार दुर्ग में रहता है। वो छुट्टियों में घर आते रहते हैं। मैंने उनको बताया कि घूमने जा रहा हूं तो उनका सवाल था अकेले? पहली बार ये सवाल मुझसे नहीं पूछा जा रहा था। मेरे समाज में ये धारणा है कि घूमना समय की बर्बादी है और अगर घूमना ही तो है कुछ लोगों के साथ जाओ। अकेले घूमने में क्या मजा आएगा?

मैंने उनको बड़े आराम से कहा कि मुझे अकेले घूमना ज्यादा पसंद है। उन्होंने बताया कि घूमना उन्हें भी पसंद है लेकिन परिवार की जिम्मेदारी की वजह से घूमना नहीं हो पाता है। रास्ते में खारून नदी मिली। मेरे साथ बैठे भाई ने बताया कि खारून नदी महानदी की सहायक नदी है। उन्होंने ही बताया कि राजिम में महानदी है। अब तक हम पचपैड़ी नाका पहुँच चुके थे। उनको यहीं पर उतरना था। उनको यहाँ छोड़कर आगे बढ़ गया।

अभनपुर 


मुझे अब इतना पता था कि पहले अभनपुर आएगा, उसके बाद राजिम। अब मैं अकेला अभनपुर के रास्ते पर बढ़ता जा रहा था। रास्ते में लोगों से पूछता भी जा रहा था। ये हाईवे काफी चल रहा था। गाड़ियों की आवाजाही बहुत ज्यादा थी। रास्ते में एक दुकान पर रूका। मैंने यहाँ बड़ा-चटनी खाया और फिर आगे बढ़ गया। कुछ देर बाद अभनपुर पहुँच गया।

अभनपुर से आगे निकला तो देखा एक जगह से चंपारण जाने का रास्ता है। मुझे चंपारण भी जाना था लेकिन मुझे नहीं पता था कि चंपारण राजिम के पास में ही है। मैंने मन ही मन में समय गणित लगाया और चंपारण जाने का मन बना लिया। कुछ देर बाद मैं राजिम पहुँच गया। राजिम की सबसे फेमस जगह है, राजीव लोचन मंदिर। राजीव लोचन मंदिर के लिए आगे बढ़ा तो रास्ते में पुल मिला। ये पुल महानदी पर बना हुआ था।

राजिम के मंदिर

इस पुल पर कुछ देर ठहरने के बाद हम अपनी मंजिल की ओर बढ़ गये। आगे मंदिर मिला और हमने अपनी गाड़ी पार्किंग में लगा दी। जैसे ही गेट के अंदर घुसे तो राजिम मंदिर समूह के बारे में एक बोर्ड लगा था। जिस पर इस जगह की पूरी जानकारी दी गई थी। इस मंदिर के भीतर दो अभिलेख हैं। पहले अभिलेख में विष्णु के मंदिर के बारे में जानकारी है। दूसरा अभिलेख राजिम के रामलोचन मंदिर के निर्माण के बारे में है। 

राजीव लोचन मंदिर।

राजिम छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में स्थित है और राजधानी रायपुर से 50 किमी. की दूरी पर है। राजिम तीन नदियों महानदी, पैरी और सौंदुर के संगम पर बसा हुआ है। त्रिवेणी संगम होने की वजह से राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग भी कहा जाता है। यहाँ पर हर साल माघ पूर्णिमा को कुंभ मेला लगता है जो शिवरात्रि तक चलता है। बोर्ड को पढ़कर आगे बढ़ा तो पहली नजर में खूब सारे मंदिर दिखे जो बाहर से सफेद दिखाई दे रहे थे। इन मंदिरों को देखकर खजुराहों के मंदिर जेहन में आ गए। कुछ कुछ मंदिर वैसे ही बने हुए थे। मंदिरों की दीवारों पर नक्काशी कमाल की थी। खंभों पर भी किसी दूसरी भाषा में उकेरा हुआ था। 

इस जगह का सबसे लोकप्रिय मंदिर है, राजीव लोचन। इस मंदिर में काफी भीड़ थी। सातवीं शताब्दी में बना ये मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। मंदिर के गर्भ गृह में विष्णु भगवान की काले पत्थर की मूर्ति स्थापित है। पूरे मंदिर में बारीक नक्काशी देखने को मिली। बाहर से मंदिर सफेद मारबल का बना हुआ है। इस मंदिर में भगवान विष्णु के अलावा कई देवी-देवताओं की मूर्ति हैं। मंदिर की परिक्रमा करके मैं बाहर निकल आया।

रामचन्द्र मंदिर


राजीव लोचन मंदिर के बाद रामचन्द्र मंदिर को देखने निकल पड़ा। राजिम मंदिर समूह में राजीव लोचन मंदिर के ठीक सामने रामचन्द्र मंदिर हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 400 साल पहले गोविंद लाल ने करवाया था। गोविंद लाल को रायपुर का बैंकर कहा जाता है। मंदिर के खंभों और दीवारों पर सुंदर और बेहद शानदार नक्काशी देखने को मिलती है। इस मंदिर में कई प्राचीन मूर्तियां भी स्थापित हैं।

इसी मंदिर समूह में कुछ हरियाली वाली जगह भी थी। जहाँ कुछ लोग खाना खा रहे थे। इस मंदिर को देखने के बाद नदी की ओर बढ़ा तो दो मंदिर और दिखाई दे। एक मंदिर का नाम तो बढ़ा दिलचस्प था, मामा भांजा मंदिर। इस मंदिर के बारे में यहाँ कुछ नहीं लिखा हुआ था। दीवार पर लिखा था, कुलेश्वर नाथ के मामा के मंदिर। राजीव लोचन के बाद राजिम का दूसरा सबसे फेमस मंदिर है कुलेश्वर मंदिर। 

कुलेश्वर मंदिर

कुलेश्वर नाथ मंदिर।

कुलेश्वर मंदिर नदी के उस पार था। मंदिर दूर से दिखाई दे रहा था। नदी में ज्यादा पानी नहीं था इसलिए लोग पैदल नदी पार करके मंदिर जा रहे थे। मैं भी पैदल ही जाने का सोच रहा था लेकिन गाड़ी के लिए फिर से यहीं आना पड़ता। मैं वाया रोड कुलेश्वर मंदिर की ओर निकल गया। गाड़ी से कुलेश्वर मंदिर पहुँचने के लिए लंबा रास्ता लेना पड़ा। इस मंदिर में काफी भीड़ थी। दूर से मंदिर अच्छा लग रहा था। मंदिर पेड़ के नीचे एक बड़े चबूतरे पर बना हुआ था।

मंदिर में कुलेश्वर नाथ के अलावा कई देवी देवताओं की मूर्ति थी। इस मंदिर में एक शिलालेख भी है जो 8वीं और 9वीं शताब्दी का है। बड़े से चबूतरे पर पेड़ के नीचे स्थित ये मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर के गर्भ में भगवान शिव की शिवलिंग है। कहा जाता है कि वनवास के दौरान राम, लक्ष्मण और सीता यहाँ पर आए थे। उन्होंने ही इस मंदिर की स्थापना की थी। इस मंदिर में भगवान गणेश, विष्णु, गंगा और यमुना जी की मूर्ति भी हैं। इस प्राचीन मंदिर को देखने के बाद मुझे चंपारण निकलना था। मुझे उस समय पता नहीं था कि राजिम से ही चंपारण का रास्ता है और मैं अभनपुर के लिए निकल पड़ा।  छत्तीसगढ़ का सफर अभी पूरा नहीं हुआ था। अभी तक शानदार मंदिर और खूबसूरत ऐतहासिक जगहों से मुलाकात करनी थी।

आगे की यात्रा के बारे में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।