यात्रा का पिछला भाग यहां पढ़ें।
यात्रा कमाल की होती है। जब हम घूम रहे होते हैं तो सिर्फ उस जगह के बारे में सोचते रहते हैं। मैं भी होटल के कमरे में बैठकर इस नए शहर को कैसे देखा जाए? इस बारे में सोच रहा था। कुछ देर बाद मैंने तय कर लिया था कि खजुराहो में सबसे पहले क्या देखना है? मैंने अपना सामान होटल में ही छोड़ा और निकल पड़ा बुंदेलखंड के इस ऐतहासिक शहर को देखने। कुछ देर बाद मैं खजुराहो के पश्चिमी समूहों के मंदिरों को देखने के लिए गेट पर पहुंच गया था। मैंने सुना था कि खजुराहो के मंदिरों में सेक्स की मूर्तियां बनी हुई हैं। मेरे जेहन में चल रहा था कि क्या मंदिरों की दीवारों पर सिर्फ सेक्स वाली मूर्तियां हैं?
मंदिर का टिकट काउंटर बंद था उसकी जगह पर ऑनलाइन टिकट लेना था। टिकट काउंटर के उपर पर लगे बोर्ड में लिखा था कि भारतीयों के प्रति व्यक्ति 40 रुपए और बच्चों के लिए फ्री एंट्री है। विदेशी नागरिकों को मंदिरों को देखने के लिए 600 रुपए देने पड़ेंगे। वहीं सार्क देश के लोगों को भी 40 रुपए ही देने होंगे। अगर आपको कैमरे से मंदिरों की वीडियोग्राफी करनी है तो उसके लिए 25 रुपए अलग से देने होंगे।
कोरोना की वजह से टिकट काउंटर बंद था। पास में ही एक और बोर्ड लगा था जिसमें क्यूआर कोड था। पेटीएम से स्कैन करके टिकट बुक की जा सकती है। अगर आपके पास पेटीएम नहीं है तो आर्कोलोजी सर्वे ऑफ इंडिया की वेबसाइट पर जाकर टिकट बुक कर सकते हैं। मैंने भी वेबसाइट पर जाकर टिकट बुक की, टिकट के 35 रुपए लिए। अच्छी बात ये है कि एक जगह टिकट ले लो, म्यूजियम से लेकर वही टिकट हर जगह चलेगा। आपको अलग से टिकट नहीं लेना पड़ेगा।
वेस्टर्न ग्रुप मंदिरों की सैर
मंदिर के गेट अंदर एंटी ली और टिकट चेक कराया तो पहली नजर में दूर-दूर तक बड़े मंदिर दिखाई दिए। देखकर लग रहा था कि किसी कलाकार ने इस मंदिरों को तराशकर बनाया है। हर मंदिर दूर से एक जैसे ही लग रहे थे लेकिन सबकी अलग खासियत। अंदर घुसते ही सबसे पहले एक बोर्ड मिला जिस पर खजुराहो के बारे में लिखा था। मुझे उस बोर्ड को पढ़कर ही पता चला कि बुंदेलखंड को प्राचीन समय में वत्स और फिर जेजाकभुक्ति के नाम से जाना जाता था। चंदेल राजाओं ने खजुराहो में 85 मंदिर बनवाए थे लेकिन अब सिर्फ 22 ही बचे हैं।
मैं सबसे पहले वराह मंदिर गया। वराह मंदिर एक ऊंचे चबूतरे पर आयाताकार बना हुआ है। ये मंदिर 14 खंभों पर खड़ा हुआ है और ये पिरामिड शैली में बना हुआ है। मंदिर में भगवान विष्णु के वराह रूप की 2.6 मीटर लंबी मूर्ति बनी हुई है। इसकी खास बात ये है कि पूरी मूर्ति में अनगिनत देवी-देवताओं की छोटी-छोटी प्रतिमाएं बनी हुई हैं। मूर्ति की नीचे एक सांप बनाया गया है। मंदिर की छज्जा पर बेहतरीन नक्काशी है जो इसे और भी खूबसूरत बनाती है। वराह मंदिर को देखने के बाद इसके ठीक सामने बना लक्ष्मण मंदिर को देखने के लिए बढ़ गया। लक्ष्मण मंदिर को 930 ईस्वी में राजा यशोवर्मन ने बनवाया था। इस मंदिर का नाम तो लक्ष्मण है लेकिन ये भगवान विष्णु का मंदिर है।
ऊंचे चबूतरे पर बना लक्ष्मण मंदिर पंचायतन शैली का संधार मंदिर है। पहले मैंने मंदिर को देखने के लिए गया। पश्चिमी ज्यादातर मंदिर अंदर से एक जैसे हैं। सभी में मुख, मंडप, महापंडम, अंतराल और गर्भगृह हैं। मंदिर में घुसते ही सबसे पहले एक बड़ा-या गलियारा मिलता है जिसके छज्जे पर शानदार नक्काशी है। इसके बाद अंदर जाने पर उंचे चबूतरे वाला भाग मिला, जिसके चारों तरफ लंबे-लंबे चार खंभे थे। कहा जाता है कि इस जगह पर धार्मिक नृत्य हुआ करते थ। यहां भी छज्जे पर बेहतरीन नक्काशी है। मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति दिखाई दी। मंदिर के अंदर भी चारों तरफ छोटी-छोटी मूर्तियां बनी हुई हैं।
मंदिर ही मंदिर
ये सभी मंदिर बालू के पत्थर के बने हुए हैं जो केन नदी से लाए गए थे। मंदिरों की दीवारों पर नृत्य करती हुए प्रतिमा, भगवान गणेश और विष्णु की भी मूर्ति है। इसके अलावा सेक्स करती हुई मूर्तियां हैं। जो कहते हैं कि ये सेक्स करती हुई मंदिर में क्यों हैं? तो उनको पता होना चाहिए कि ये मंदिर उस समय बनाए गए थे जब अभिव्यक्ति का माध्यम सिर्फ शिल्प कला ही थी। शायद इसी वजह से सेक्स करती हुईं प्रतिमाएं बहुत सारी हैं लेकिन ऐसा नहीं है कि इन मंदिरों में सिर्फ सेक्स की ही मूर्तियां है। यहां योग करती हुई मूर्तियां है, धार्मिक अनुष्ठान, शिकार, कल्चर और लोगों का जनजीवन कैसा था? ये सब इन मूर्तियों को देखकर समझ आता है।
लक्ष्मण मंदिर को देखने के बाद मैं आगे बढ़ चला। ये मंदिर एक बहुत बड़ी जगहें पर हैं जहां चारों तरफ हरे-भरे पेड़ और घास है जो इस जगह को और भी खूबसूरत बना देता है। जिस मंदिर को देखने वाला था, वो कंदारिया महादेव मंदिर है। ये इन सभी मंदिरों से सबसे बड़ा और खूबसूरत है। इस मंदिर को 1065 ईस्वी में राजा विद्याधर ने बनवाया था। ये मंदिर अंदर से लक्ष्मण मंदिर की तरह ही था बस इसमें भगवान शिव विराजमान है। मंदिर में एक बड़ी-सी शिवलिंग है जो संगमरमर की बनी हुई है। ये मंदिर रथ शैली का बना हुआ है। दूर से देखने पर ये मंदिर रथ की तरह दिखाई देता है। ये मंदिर 117 फीट ऊंचा, 117 फुट लंबा और 66 फीट चौड़ा है। मंदिर में कुछ गाइड लोगों को मंदिर की खासियत बता रहे थे। वो बता रहे थे कि लोग यहां आते हैं और सभी मंदिरों को जल्दी-जल्दी देखकर, कुछ फोटो खींचकर 15 मिनट में वापस चले जाते हैं। मुझे उनकी ये बात सही भी लगी। मंदिर के दोनों तरफ शेर की मूर्ति बनी हुई है।
इस मंदिर की दीवारों पर भी कई देवी-देवताओं की मूर्तियां बनी हुई हैं। इस मंदिर में उस समय के जनजीवन को दिखातीं छोटी-छोटी प्रतिमाएं बनी हुई हैं। इसके अलावा कुछ बड़ी मूर्तियां भी हैं। जिसमें कुछ सेक्स को दिखाती हुई प्रतिमाएं हैं। एक मूर्ति में तो महिला के जांघ पर बिच्छू दिखाया गया है। ऐसी ही बहुत सारी मूर्तियां इस मंदिर पर हैं। इसके बाद मैंने जगदंबी मंदिर देखा। जगदंबी मंदिर निरन्धार शैली का बना हुआ है। इस मंदिर के तीन शिखर हैं, ये मंदिर बहुत ज्यादा बड़ा नहीं है लेकिन खूबसूरत है। इस मंदिर को गंडदेव वर्मन ने बनवाया था। मूलरूप से ये भगवान विष्णु का ही मंदिर है। 1880 में छतरपुर के महाराजा ने मनियागढ़ से मूर्ति इस मंदिर में स्थापित की। तब से ये मंदिर जगदंबी मंदिर हो गया।
क्यों टूटी हुई हैं मूर्तियां?
पश्चिमी समूह की ज्यादातर मूर्तियां टूटी हुई हैं। किसी का हाथ नहीं है, किसी की मूर्ति का पैर नहीं है। ये सिर्फ एक मंदिरों में नहीं है, सभी मंदिरों का यही हाल है। ऐसा इसलिए है क्योंकि मुस्लिम शासकों ने बार-बार इन मंदिरों को तोड़ा। जिससे आज भी उन हमलों की गवाही देती हैं ये क्षतिग्रस्त मूर्तियां। जगदंबी मंदिर को देखने के बाद चित्रगुप्त मंदिर की ओर बढ़ा। 11वीं शताब्दी में चित्रगुप्त मंदिर को गण्ढदेव बर्मन ने बनवाया था। खजुराहो में बने मंदिरों में केवल यही इकलौता सूर्य मंदिर है। मंदिर के अंदर सूर्य देवता की मूर्ति और पास में चित्रगुप्त की खंडित मूर्ति है। इस मंदिर में परिक्रमा करने की जगह नहीं है जो बाकी मंदिरों से अलग है।
इस मंदिर की दीवारों पर भी मूर्तियां बनी हुई हैं। जिसमें भगवान विष्णु को एक मूर्ति में 11 सिरों का दिखाया गया है। इस मंदिर के बाद पार्वती मंदिर को देखा। ये मंदिर विश्वनाथ मंदिर का ही एक भाग है। मंदिर में पार्वती की मूर्ति है। इसके अलावा मंदिर मुखमंडप पूरी तरह से नष्ट हो चुका है। नंदी मंडप और विश्वनाथ मंदिर को देखने के बाद मैं बाहर निकल आया। लगभग 2-3 घंटों तक पश्चिमी मंदिरों को देखने के बाद बाकी मंदिरों की तैयारी कर ली। जैन मंदिर मेरी अगली लिस्ट में था लेकिन लोगों ने बताया कि 3-4 किमी. दूर है। वहां ऑटो कोई नहीं जाएगी बुक करनी पड़ेगी। जिससे मैंने म्यूजियम को देखने का प्लान बनाया।
खजुराहो में आदिवासी म्यूजियम
पश्चिमी मंदिर से 200 मीटर की दूरी पर आदिवर्त टाइबल एंड फोल्क आर्ट म्यूजियम है। मैं उस ओर चल दिया। म्यूजियम के गेट के अंदर घुसते ही समझ आ गया कि ये आदिवासी म्यूजियम है। म्यूजियम में कोई नहीं था, रिसेप्शन पर भी कोई नहीं था, अंदर का गेट भी बंद था। वहीं सैनिटाइर की बोतल रखी थी, मैंने सैनिटाइजर से हाथ साफ किया तब तक गाॅर्ड आ गए। उन्होने एंट्री करवाई और म्यूजियम का गेट खोल दिया। ये म्यूजियम दो कमरों में हैं। जिसमें बस्तर से लेकर पूरे देश की आदिवासी इलाकों के सामान रखे हुए हैं, जिनके साथ उनके नाम भी लिखे हुए है। जिससे सबको उन सामानों के बारे में पता चल सके।
आदिवासी इलाकों की खूबसूरत पेटिंग, देवी-देवीताओं की मूर्तियां और न जाने क्या-क्या इस म्यूजियम है? लगभग पौना घंटा इस म्यूजियम में रहने के बाद मैं शहर के दूसरे म्यूजियम को देखने के लिए निकल पड़ा। पुरातत्व संग्रहालय, आदिवासी म्यूजियम से 100 मीटर की दूरी पर है। अंदर एक गार्ड मिला जिसने टिकट मांगा। गार्ड ने बताया कि अंदर फोटो और वाीडियोग्राफी करना मना है। मैंने फिर फोटो के बारे में सोचा ही नहीं। इस म्यूजिय में देश भर की प्राचीन दुर्लभ मूर्तियां रखी हुई हैं। इस म्यूजियम को जी डार्टिन ने बनवाया था। बाद में आजादी के बाद 1967 में ये पुरातत्व संग्रहालय हो गया।
खजुराहों में बाइक
इस संग्रहालय में भगवान विष्णु, ब्रम्हा, गणेश, जैन और भगवान शिव की कई मूर्तियां है। इस म्यूजियम में कई कक्ष हैं। इसके अलावा बरामदे और आंगन में भी मूर्तियां हैं। लगभग आधा-पौना घंटा इस म्यूजियम को देखने के बाद मैं बाहर निकल आया। अब सवाल था क्या किया जाए? सामन मुझे ठेला दिखा, जिस पर कुछ खाने को मिल रहा था। मैंने वहां पर अप्पे खाये, ये मेरे लिए कुछ नया था। उससे मैंने रेंट पर साइकिल लेने की दुकान पूछी तो उसने पता बता दिया। मैं वहां गया तो पता चला कि अभी उसके पास कोई साइकिल नहीं है। उसने बताया कि थोड़े आगे चलने पर एक और दुकान है। मैं वहां गया तो साइकिल के लिए स्कूटी ले ली, वो भी दो दिन के लिए। किराये पर स्कूटी लेने के 600 रुपए दिए और उसी से देखने चल पड़ा जैन मंदिर देखने।
कई घंटे शहर में बिताने के बाद शहर आपको अपना-सा लगने लगता है। इन नई जगहों पर भटक तो जाते हैं लेकिन यहां भटकना बुरा नहीं लगता है। मैं कुछ देर बाद जैन मंदिर में था। जैन मंदिर के सभी मंदिरों की दीवारें पीले रंग की थी सिर्फ दो मंदिरों को छोड़कर। इन दो मंदिरों की बनावट ठीक वैसे ही है जैसी पश्चिमी मंदिर समूहों की है। जिसमें से एक पाश्र्वनाथ मंदिर है। ये खजुराहो के सबसे भव्य मंदिरों में से एक है। शाम होने वाली थी, मंदिर के शिखर में धूप पड़ने से ये और भी सुंदर लग रहा था। इस मंदिर के पीछे एक और इस शैली का मंदिर बना हुआ है।
जैन मंदिर आप कभी भी आ सकते हैं इसकी कोई टाइमिंग नहीं है। पश्चिमी समूह मंदिर शाम 5 बजे बंद हो जाता है, उसके बाद शाम साढ़े बजे इंग्लिश अंग्रेजी में लाइट और साउंड शो होता और साढ़ सात बजे से हिन्दी में होता है। जिसका टिकट 250 रुपए का होता है, अंधेरा हो चुका था। मैंने होटल जाना ही बेहतर समझा, कुछ देर बाद मैं अपने होटल के कमरे में था। कुछ देर बाद मैं बिस्तर में लेटा हुआ था। मैं पूरे दिन के बारे में सोचने लगा। मैंने सोचा कि ये शहर व्यस्त है या यहां के लोग फिर समझ आया कि सब अपने में मस्त है। वो अपने काम में व्यस्त हैं और मैं घूमने में मस्त हूं। इसके बावजूद मैं उनसे कहना चाहता हूं कि आपका शहर वाकई कमाल है।