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Friday, 8 October 2021

खजुराहो 3: इस शहर में मंदिरों के अलावा भी बहुत कुछ है, कुदरत की खूबसूरती

अब कुछ भी अच्छा होता है तो उस पर विश्वास करना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। मेरी अब तक की खजुराहो यात्रा लाजवाब रही थी। बीते दिन मैंने इस शहर से कई खूबसूरत और ऐतहासिक जगहें देखीं। इसके अलावा बेहिसाब अनुभव बटोरे। अगले दिन मेरी आंख जल्दी खुल गई लेकिन मैं उठा नहीं। मैंने रात को उठने को समय फिक्स किया था, अब बस उस वक्त का आने का इंतजार करने लगा। मैं कुछ देर ऐसे ही लेटा रहा लेकिन ज्यादा देर नहीं। मैं उठा और बालकनी में जाकर बैठ गया। बालकनी के बाहर हरे-भरे पेड़ दिखाई दे रहे थे और उन पर पड़ती धूप खूबसूरत बना रही थी। कुछ देर बाद मैं तैयार था आज के खजुराहो के सफर के लिए।


मेरे पास स्कूटी थी और खजुराहो से 25 किमी. दूर एक वाटरफाॅल को देखने जाना था, रानेह फाॅल्स। मैं कुछ देर बाद स्कूटी दनदनाता हुआ बढ़ा जा रहा था। सुबह ही ठंडी-ठंडी हवा चेहरे और पैर में लग रही थी। हाथ और कान को मैंने अच्छे-से ढंका हुआ था। लगभग चार किमी. के बाद एक बोर्ड आया जिसमें रानेह फाॅल के लिए दायीं और जाने के लिए कहा गया था। मैं दाहिनी ओर बढ़ गया। कुछ देर बाद मैं गांवों से होकर गुजरने लगा। सभी लोग अपने काम में लगे हुए थे। कुछ लोग कहीं जा रहे थे तो कुछ धूप ले रहे थे। रोड किनारे बसे छोटे-छोटे गांव, हरे-भरे खेत-खलिहान और उनके पीछे दूर तलक पहाड़। ये शानदार नजारा था जिसको देखने के लिए बार-बार रूक रहा था।

खूबसूरत रानेह फाॅल

रानेह फॉल के रास्ते।
रानेह फाॅल्स सुबह 9 बजे खुलता और शाम 5 बजे बंद होता है। अभी 9 बजने में समय था इसलिए मैं आराम-आराम से बढ़ रहा था। रानेह फाॅल जाने के लिए खजुराहो से पब्लिक टांसपोर्ट नहीं चलता है इसलिए आप खजुराहो से टैक्सी बुक कर सकते हैं जो बहुत महंगी होती है और दूसरा आप मेरी तरह स्कूटी रेट पर ले सकते हैं। जिसमें वाटरफाॅल तो देख ही पाएंगे, साथ में आपकी रोड टिप भी हो जाएगी। धूप थी लेकिन सर्द हवा की वजह से ठंड लग रही थी। आराम-आराम से बढ़ते हुए मैं 9 बजे रानेह फाॅल के टिकट काउंटर पर पहुंच गया।

केन घड़ियाल सैंक्चुरी का गेट।
यहां लिखा था कि रनेह फाॅल केन घड़ियाल सैंक्चुरी में है। अगर आप दोपहिया गाड़ी से हैं तो टिकट 200 रुपए का है चाहे आप अकेले हों या दो लोग। वहीं ऑटो रिक्शा का 400 रुपए और अधिकतम 3 लोग जा सकते हैं और चार पहिया वाहन का 600 रुपए है जिसमें अधिकतम 6 लोग जा सकते हैं। पैदल व्यक्ति का सिर्फ 50 रुपए लगेगा। इसके अलावा अगर आप पैदल और बाइक से नहीं हैं तो आपको गाइड करना अनिवार्य है जिसके आपको अलग से 100 रुपए देने होंगे। मेरे पास बाइक थी तो उसके 200 रुपए लगे और इस जगह के बारे में अच्छे से जानने के लिए एक गाइड कर लिया। गाइड भइया का नाम था पुष्पेन्द्र जो पास के नारायणपुर गांव के हैं। कुछ देर बाद सैंक्चुरी के बड़े-से गेट से हम अंदर हो लिए।

बिन पानी सब सून

हमारे गाइड।
कुछ देर बाद हम एक जगह पर रूके जहां पर मैंने टिकट दिखाया और गाॅर्ड ने एंटी कर ली। वहीं दायीं तरफ कुछ काॅटेज बने हुए थे। गाइड ने बताया कि सरकार ने लोगों के लिए रूकने की व्यवस्था की है जिसका एक रात का किराया 1800 रुपए है। मेरे हिसाब से ये कुछ ज्यादा ही महंगा था। टिकट काउंटर से रनेह फाॅल की दूरी 3 किमी. है और घड़ियाल प्वाइंट की दूरी 8 किमी. है। हम कुछ देर हमें बड़े-बड़े पत्थर दिखाई देने लगे, पार्किंग में गाड़ी पार्क की और वाटरफाॅल को देखने के लिए निकल पड़े। ये वाटरफाॅल बुधवार को दोपहर के बाद बंद रहता है, बाकी दिन सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक खुला रहता है।


कुछ सीढ़ियां उतरने के बाद मैं उस वाटरफाॅल के सामने था जिसको इंटरनेट पर देखा था लेकिन यहां से कुछ ज्यादा ही दूर था। दूर-दूर तक पहाड़, जंगल और बिन पानी का वाटरफाॅल दिख रहा था। वाटरफाॅल की कुएंनुमा चट्टान में पानी तो था लेकिन इतना ज्यादा नहीं कि झरने के पानी के गिरने की आवाज सुनाई दे। वाटरफाॅल से धीरे-धीरे पानी नीचे गिर रहा था। मैंने इंटरनेट पर पड़ा था कि इस झरने का नाम महाराजा राणे के नाम पर पड़ा। वहीं गाइड भइया ने बताया कि पहले इसका नाम स्नेह वाटरफाॅल था लेकिन अब ये सिर्फ रैन मानसून सीजन में रहता है इसलिए इसका रनेह वाटरफाॅल हो गया।

मिनी नियाग्रा वाटरफाॅल


गाइड भइया ने बताया कि मानसून में सभी चट्टानें पानी से भर जाती हैं और हर जगह से वाटरफाॅल चलते हैं। उस समय यहां चट्टानें नहीं दिखाई देती हैं। इस समय चारों तरफ कैनियन दिखाई दे रही थीं। गाइड ने बताया कि ये वाॅल्केनो वाला इलाका है। पहला प्वाइंट देखने के बाद हम आगे के प्वाइंट पर बढ़ गए। गाइड ने बताया कि लाखों साल पहले यहां पर एक ज्वालामुखी फटा था जिससे ये कैनियन बना। इन चट्टानों को पांच प्रकार के अलग-अलग रंगों में देखा जा सकता है। गाइड ने बताया कि लगभग 110 मीटर उंचा ये वाल्केनो है जो 50 मीटर पानी के नीचे है और 60 मीटर पानी के उपर है। इसमें पांच अलग-अलग प्रकार के पत्थर हैं। जिसमें गुलाबी रंग का ग्रेनाइट है। इसके अलावा बेसाल्ट, क्वार्टज, डोनामाइट और जैस पर पत्थर हैं।


नीचे घाटी में हरे रंग का पानी दिखाई दे रहा था जो केन नदी का पानी था जो 30 मीटर चीचे थी। केन नदी आगे जाकर बांदा में यमुना नदी में मिल जाती है और यमुना का संगम इलाहाबाद में होता है। केन नदी का पुराना नाम कर्णावती भी है। 5 किमी. लंबी कैनियन देखने लायक है। मानसून में यहां जगह-जगह से वाटरफाॅल चलते हैं लेकिन अभी सिर्फ दो जगहों से वाटरफाॅल चल रहे थे। एक को तो हमने साफ-साफ देखा। दूसरा 60 मीटर उंचा वाटरफाॅल हमें थोड़ा-सा वाटरफाॅल दिखाई दे रहा था। पहाड़ पीछे होने की वजह से उसे हम नहीं देख पाए लेकिन उसकी आवाज सुनाई दे रही थी। गाइड ने बताया कि पहले लोग वहां जा सकते थे लेकिन 2003 में एक कपल की नदी में गिरने से मौत हो गई थी। ऐसी ही कुछ और हादसे जिसके बाद लोगों का वहां जाना बंद कर दिया गया। कुछ और प्वाइंट से कैनियन को देखने के बाद हम घड़ियाल प्वाइंट के लिए बढ़ गए।

केन नदी और दूरबीन का तामझाम

केन घड़ियाल सैंक्चुरी
रनेह फाॅल से घड़ियाल प्वाइंट की दूरी 5 किमी. है। मैंने स्कूटी की चाबी गाइड भईया को दे दी। अब पुष्पेन्द्र भइया गाड़ी चला रहे थे और इस जंगल के बारे में बता रहे थे। रास्ता पूरी तरह से कच्चा था लेकिन गाड़ी चलने लायक रास्ता बना हुआ था। गाइड ने बताया कि बरसात के मौसम में यहां लोगों के लिए आना बंद कर दिया जाता है। उस समय आप सिर्फ रनेह फाॅल की देख सकते हैं। चारों तरफ सागौन के पेड़ लगे हुए थे। उन्होंने बताया कि यहां से लकड़िया ले जाना मना है। तभी कुछ औरतें लकड़ियां बीनती हुई दिखाई दीं। गाइड ने उनको झिड़की देते हुए कहा, कितनी बार कहा कि रोड किनारे मत आया करो। यहां लोगों के बीच तालमेल साफ दिखाई दे रहा था।

कुछ देर बाद कुछ हिरण दिखाई दिए। इतने पास से पहली बार मैंने हिरण देखे। उसके जंगली सुअर और सियार भी दिखाई दिया। पास में कुछ नीलगायें भी दिखाई दीं। गाइड ने बताया कि जिन नीलगायों के सींग होते हैं वो नर होते हैं और जिनके सींघ नहीं होते हैं वो फीमेल। कुछ पेड़ों पर गिद्ध बैठे हुए दिखाइ्र दिए। अब गिद्ध कम ही दिखाई देते हैं लेकिन यहां दिखाई दे रहे थे। कुछ देर बाद हम उस जगह पर पहुंच गए जहां किस्मत अच्छी रही तो घड़ियाल और मगरमच्छ को देखा जा सकता था।

केन नदी। 
गाड़ी को पार्क किया और देखने निकल पड़े घड़ियाल। दूर-दूर तक केन नदी और हरा-भरा जंगल दिखाई दे रहा था। मैंने चारों तरफ देखा लेकिन कहीं पर भी घड़ियाल नहीं दिखाई दिया। तभी गाइड भइया ने बताया कि वहां पत्थर पर एक घड़ियाल है लेकिन मुझे नहीं दिखाई दे रहा था। वो दूरबीन लाए फिर मुझ देखने को कहा। दूरबीन से साफ-याफ घड़ियाल धूप लेता हुआ दिखाई दे रहा था। इसके बाद मैंने एक मगरमच्छ और एक घड़ियाल का बच्चा भी देखा। वो बहुत दूर थे लेकिन दूरबीन से सब साफ-साफ दिखाई दे रहा था। पुष्पेन्द्र भइया ने बताया कि यहां मगरमच्छ पहले से घड़ियाल को दूसरी जगहों से लाया गया। कुछ देर देखने के बाद हम वापस चल पड़े। रास्ते में मुझे एक दीवार दिखाई दी। जिस पर गोंडवाना दीवार लिखा था जो 500 साल पहले आदिवासियों ने बनवाई थी। हम उस दीवार को पार करके कैनियन का शानदार व्यू देखा। उसके बाद हम सैंक्चुरी से बाहर आ गए।

पांडव वाटरफाॅल का सफर


अभी 11 भी नहीं बजे थे तो मेरे पास दो विकल्प थे पहला, खजुराहो का सफर खत्म करके वापस लौटा जाए। दूसरा, पांडव वाटरफाॅल को देखने जाया जाए। पांडव वाटरफाॅल खजुराहो से 35 किमी. की दूरी पर है। अब अगर मैं वापस खजुराहो जाता तो पांडव वाटरफाॅल की दूरी मेरे लिए 60 किमी. हो जाती। इसका बढ़िया समाधान बताया मेरे गाइड भइया ने। गाइड भइया ने बताया कि रनेह वाटरफाॅल से दायीं तरफ जाने वाला रास्ता आगे हाइवे पर मिलता है। वहां से सिर्फ 10 किमी. की दूरी पर पांडव वाटरफाॅल है। पांडव वाटरफाॅल के सफर से खजुराहो का सफर मेरे लिए एक दिन बढ़ गया था। मैं उसी रनेह फाॅल के बगल से गये रास्ते पर बढ़ गया।

रास्ता पूरी तरह से कच्चा और पत्थरों वाला था जिस वजह से मैं स्कूटी बिल्कुल आराम से चला रहा था। रास्ते में कई जगह मैं रूका और फिर आसपास के नजारे को देखने के बाद बढ़ पड़ता। लगभग 4 किमी. की दूरी के बाद कच्चा रास्ता खत्म हो गया और पक्का सड़क शुरू हो गई। यहां से लगभग 12 किमी. दूर हाइवे था। अच्छी रोड की वजह से गाड़ी की स्पीड तेज हो गई। आसपास वही बुंदेलखंड के गांव के नजारे दिख रहे थे। चारों तरफ हरे-भरे खेत और लोग अपनी गाय-भैंसों को चराने के लिए जा रहे थे। कुछ दूर आगे चला तो एक व्यक्ति मिला जो हाइवे तक जाना चाहते थे, मैंने उनको बिठाया और आगे बढ़ गया।


सफर में अनजान लोगों से मिलना और बातें करना सबसे अच्छी चीज होती है। उन्होंने बताया कि इस इलाके में बोर जमीन से पानी निकालना सफल नहीं है। 10 में से सिर्फ 1 ही बोर सक्सेस होती है। उस शख्स ने बताया कि यहां के कुओं में बहुत पानी है, लोग यहां पर पानी के लिए कुए बहुत खुदवाते हैं। जिस वजह यहां खेती अच्छी हो रही है, आसपास खेतों में हरियाली देखकर इसका अंदाजा भी लग रहा था। कुछ देर बाद मैं हाइवे पर पहुंच गया। हाइवे किनारे इस गांव का नाम टौरिया टेक है।

सफर में लाजवाब समोसे

मैंने सुबह से कुछ नहीं खाया था। पास में ही एक दुकान थी जिस पर गर्म-गर्म समोसे बन रहे थे। रायते के साथ दो समोसे खाए, वो इतने अच्छे लगे कि दो और खा गया। फिर से सफर शुरू हो गया। मैंने उसी दुकान वाले से पूछा तो उसने पन्ना की ओर जाने को कहा। यहां से पांडव फाॅल 10 किमी. की दूरी पर है। मैं नेशनल हाइवे 39 पर पन्ना की ओर चल पड़ा। गाड़ी बहुत तेजी से आगे बढ़ रही थी। रास्ते में पुल मिला जो केन नदी पर बना हुआ था। पहाड़ और हरे-भरे जंगलों के बीच केन नदी बेहद खूबसूरत लग रही थी। कुछ मिनट यहां ठहरकर मैं आगे बढ़ गया।

पांडव केव और वाटरफॉल का गेट।
अकेले सफर करने की अपनी आजादी होती है, जो करना है, जैसे करना है सब अपने मन पर रहता है। उस समय आप सब कुछ भूलकर सिर्फ घूमने पर ध्यान लगाते हैं। कुछ आगे बढ़ा तो एक छोटा-सा कस्बा मिला, मडला। यहां से 700 मीटर दूर केन नदी का नजारा दिखाई देता है लेकिन मुझे पांडव वाटरफाॅल जाना था। पांडव वाटरफाॅल के पहले घाटी मिलती है। घाटी के चारों तरफ हरियाली ही हरियाली है। वहीं पूरी घाटी में मोड़ ही मोड़ है बिल्कुल पहाड़ के रास्ते जैसी, जो इस सफर को और भी खूबसूरत बना देती है। थोड़ी देर बाद पन्ना टाइगर रिजर्व का गेट आया। वहां पूछा तो पता चला कि थोड़ी आगे की पन्ना फाॅल है। कुछ दूरी के बाद पन्ना फाॅल और गुफाएं का गेट आ गया।

पांडव फाॅल और गुफाएं

झरने तक का रास्ता।
प्रवेश द्वार से पांडव फाॅल की दूरी 500 मीटर है। टिकट काउंटर पर पता चला कि अगर आप गाड़ी के साथ जाते हैं तो 100 रुपए देने होंगे और पैदल जाने पर सिर्फ 25 रुपए लगेंगे। गाड़ी को पार्किंग में लगाकर पैदल फाॅल को देखने के लिए निकल पड़ा। रास्ते में चारों तरफ हरे-भरे पेड़, पीली सूखी घास और चारों तरफ पहाड़ी हैं। ये वाटरफाॅल बुधवार को दोपहर के बाद बंद रहता है, बाकी दिन सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक वाटरफाॅल खुला रहता है। कुछ देर बाद मैं वाटरफाॅल की पार्किंग में पहुंचा। पार्किंग में चन्द्रशेखर आजाद की एक मूर्ति है। इस मूर्ति पर लिखा है कि 4 सितंबर 1929 को यहां चन्द्रशेखर आजाद ने अपने साथियों के साथ मीटिंग की थी। आगे बढ़ा तो उस जगह पहुंच गया, जहां से 294 सीढ़ियां उतरनी थीं।


कुछ सीढ़ी उतरने पर वाटरफाॅल और नीचे बना तालाब दिखाई दिया। झरने का हाल रनेह फाॅल की तरह ही था। यहां के वाटरफाॅल में पानी कम था लेकिन तालाब में पानी होने की वजह से ये सुंदर लग रहा था। थोड़ी देर बाद मैं पांडव गुफा को देख रहा था। यहां बहुत सारी छोटी-छोटी गुफाएं बनी थीं जिसके उपर एक मंदिर भी था लेकिन उपर जाना मना था। गुफाएं की दीवारों और छतों में दरारें दिख रही थीं। शायद इसी वजह से उपर जाना अब मना है। माना जाता है पांडवों ने इसी जगह पर अपने वनवास के समय पर तपस्या की थी। उपर पहाड़ी से पानी धीरे-धीरे झिर रहा था जो गुफाओं पर गिर रहा था। इस वजह से यहां ठंडक महसूस हो रही थी।

वहीं पानी में मछलियां दिख रहीं थीं। मछलियों को पकड़ना और तालाब में नहाना मना है। यहां बहुत सारे लोग थे लेकिन किसी के भी चेहरे पर मास्क नहीं था जो मुझे गलत लगा। इसके अलावा जो भी यहां आ रहा था अलग-अलग पोज में अपनी फोटों खिंचवा रहा था। कोई भी इस जगह को सही से देखने और समझने की कोशिश नहीं कर रहा था। इसके बावजूद ये जगह बेहतरीन थी। लगभग घंटे भर यहां रहने के बाद मैं वापस लौट चला। पार्किंग के पास में टाॅयलेट बनी हुई है जो बाहर से बहुत अच्छी लग रही थी लेकिन अंदर से व्यवस्था खराब थी। टाॅयलेट गंदगी से भरी हुई थी और नल में पानी भी नहीं आ रहा था। कुछ देर बाद मैं पांडव वाटरफाॅल के गेट के बाहर था।

वापस खजुराहो


मैं खजुराहो जा ही रहा था, तभी एक गाइड ने मलाड तक साथ चलने को कहा, मैंने उसे बैठा लिया। उसी ने मुझे बताया कि हम लोग रजिस्टर्ड गाइड हैं सिर्फ भारत में केरल ही वो जगह है जहां सरकारी गाइड हैं। मलाड में गाइड को छोड़कर मैं केन नदी को देखने निकल पड़ा। केन नदी का शानदार नजारा यहां से साफ-साफ दिखाई दे रहा था। घाट के तरफ पानी भरा हुआ था और दूसरी तरफ सिर्फ पत्थर ही पत्थर दिख रहे थे। घाट पर कुछ लोग नदी में नहा रहे थे और कुछ औरतें कपड़े धो रही थीं। कुछ देर यहां ठहरने के बाद मैं वापस खजुराहो के लिए निकल पड़ा।

खजुराहो में आखिरी शाम।
शाम के 5 बजे मैं खजुराहो पहुंचा और बाइक को दुकान वाले का दे दिया। अब मेरे पास कुछ घंटे थे और मैं खजुराहो मंदिर का लाइट और साउंड शो देखना चाहता था लेकिन वो बहुत महंगा था इसलिए मैंने वो नहीं देखा। अब मैं अकेले सड़क पर पैदल चल रहा था। यूं अकेले चलने पर मेरे चेहरे पर खुशी थी। ये खुशी दो दिनों में बहुत कुछ नया पाने की थी, नये लोगों से मिलने और अनुभव बटोरने की थी। अब ये शहर मेरे लिए नया नहीं था, मैं यहां की गलियां, जगहों और कुछ लोगों को जानता था। मैं इस शहर के अंत में टहल रहा था। अब मुझे इस रात के बाद यहां से निकलना था। दो दिनों तक ये शहर मेरा हिस्सा बन गया था और ये शहर मेरा। अब मुझे किसी और नई जगह पर चलना है, उस जगह को देखना-समझना है बिल्कुल इस ऐतहासिक शहर की तरह।