आज पूरे देश में में दशहरा धूमधाम से मनाया जा रहा है। कहीं रावण को जला रहे हैं, कहीं पूजा की जा रही है और कहीं पीटा जा रहा है। अलग-अलग जगह की अपनी-अपनी मान्यताएं हैं। ऐसे में मुझे अपने बुंदेलखंड याद रहा है, अपना घर और अपना गांव याद आ रहा है। जो दशहरा पर दिवाली की तरह सज जाता है। बुंदेलखंड तो हमेशा से परंपरा को निभाते आ रहा है। आज भी बुंदेलखंड में गांव की संस्कृति देखी जा सकती है और ये सब देखकर मुझे देखकर गर्व होता है कि मैं उसी बुंदेलखंड धरा से हूं। उसी बुंदेलखंड में दशहरा को सिर्फ रावण जलाकर नहीं मनाते। हम उस दिन खुशियां आपस में बांटते हैं।
पान जिसमें रसता और मिठास का गुण पाया जाता है। वो पान दशहरा पर हम मिठास के रूप् में खाते हैं। उस पान को पाने का भी एक तरीका है। ये नहीं कि दुकान पर गये और खरीदकर खा लिये। उस दिन हम प्यार के रूप में सबको खिलाते हैं। बुंदेलखंड की इस पान की संस्कृति पर विस्तार से बात करते हैं।
दशहरा के कुछ दिन पहले ही गांव के लोग बाजार जाकर पान लगाने का पूरा सामान खरीद लेते हैं। दशहरे के दिन पहले रावण दहन होता है उसके बाद घर में पूजा होती है। पूजा में बाजार से लाये हुये पान में एक पान लगाकर भगवान को चढ़ाते हैं और फिर अपनी पोटली लाकर घर के बाहर बैठ जाते हैं।
पान की दुकान पर जो सुपाड़ी, कत्था मिलता है, वही सामान होता है। पूजा करने के बाद लोग एक-दूसरे के यहां जाते हैं और दशहरा की बधाई विशेष संबोधन ‘दशहरा की राम-राम’ से करते हैं। इसके बाद सामने वाला उत्तर देता है और एक मीठा पान लगाकर उसे दे देता है। पूरे गांव में, सभी के घर के बाहर ऐसी दुकानें लगा होता है। मुझे याद है जब मैं छोटा था तो पूरे गांव के घर-घर घूमकर इतना पान खाया था कि अगली सुबह मेरा मुंह दर्द कर रहा था और गाल सुपाड़ी से छिल गया था।
घर के बड़े यह दुकान लगाते हैं तो वे ध्यान रखते हैं कि किसे कौन-सा पान खिलाना है। जो बड़े लोग होते हैं उनको चूना लगा पान लगाया जाता है और हम जैसे बच्चों को सादा पान दिया जाता था। तब हम बड़े गुस्से उनको देखते थे कि हमारे साथ ऐसा पक्षपात क्यों?
इसके बाद शाम को रावण के दहन के बाद पूजा होती है। पूजा के बाद लोग एक-दूसरे के सम्मान के लिए पान खिलाते हैं। दशहरा में इस पान का बुंदेलखंड में बहुत महत्व है। पहले राजदरबार में अतिथि के स्वागत के लिए पान खिलाने का ही चलन था। आज के दिन मुझे वो पान बड़ा याद आ रहा है। हमें दशहरा के दिन रावण को जलाने की खुशी नहीं होती थी जितनी घर-घर जाकर ‘दशहरा की राम-राम’ कहकर पान खान की। आज दशहरे पर मैं रावण को जलते हुए तो देख लूंगा लेकिन वो गांव का पान कहां से आएगा जो बिना कहे ही मेरे मुंह में ठूंस दिया जाता था। उस पान की टीस एक बुंदेलखंड का ही व्यक्ति ही समझ सकता है। जैसे कि इस समय मैं।
पान
पान जिसमें रसता और मिठास का गुण पाया जाता है। वो पान दशहरा पर हम मिठास के रूप् में खाते हैं। उस पान को पाने का भी एक तरीका है। ये नहीं कि दुकान पर गये और खरीदकर खा लिये। उस दिन हम प्यार के रूप में सबको खिलाते हैं। बुंदेलखंड की इस पान की संस्कृति पर विस्तार से बात करते हैं।
दशहरा के कुछ दिन पहले ही गांव के लोग बाजार जाकर पान लगाने का पूरा सामान खरीद लेते हैं। दशहरे के दिन पहले रावण दहन होता है उसके बाद घर में पूजा होती है। पूजा में बाजार से लाये हुये पान में एक पान लगाकर भगवान को चढ़ाते हैं और फिर अपनी पोटली लाकर घर के बाहर बैठ जाते हैं।
पान की दुकान पर जो सुपाड़ी, कत्था मिलता है, वही सामान होता है। पूजा करने के बाद लोग एक-दूसरे के यहां जाते हैं और दशहरा की बधाई विशेष संबोधन ‘दशहरा की राम-राम’ से करते हैं। इसके बाद सामने वाला उत्तर देता है और एक मीठा पान लगाकर उसे दे देता है। पूरे गांव में, सभी के घर के बाहर ऐसी दुकानें लगा होता है। मुझे याद है जब मैं छोटा था तो पूरे गांव के घर-घर घूमकर इतना पान खाया था कि अगली सुबह मेरा मुंह दर्द कर रहा था और गाल सुपाड़ी से छिल गया था।
रावण दहन भी होता है। |
बुंदेलखंड के दशहरे की दिन की शुरूआत की अलग ढंग से होती है। सुबह-सुबह कुछ शुभ देखने की एक परंपरा रहती है। मछुआरे एक डिब्बे में मछली को पानी में डालकर घर-घर जाकर दिखाते हैं और गांव वाले उनको कुछ अंश देते हैं जो उनकी अजीविका भी होती है। कहा जाता है कि इस दिन मछली के दर्शन करने से आपका साल अच्छा बना रहता है।
इसके बाद शाम को रावण के दहन के बाद पूजा होती है। पूजा के बाद लोग एक-दूसरे के सम्मान के लिए पान खिलाते हैं। दशहरा में इस पान का बुंदेलखंड में बहुत महत्व है। पहले राजदरबार में अतिथि के स्वागत के लिए पान खिलाने का ही चलन था। आज के दिन मुझे वो पान बड़ा याद आ रहा है। हमें दशहरा के दिन रावण को जलाने की खुशी नहीं होती थी जितनी घर-घर जाकर ‘दशहरा की राम-राम’ कहकर पान खान की। आज दशहरे पर मैं रावण को जलते हुए तो देख लूंगा लेकिन वो गांव का पान कहां से आएगा जो बिना कहे ही मेरे मुंह में ठूंस दिया जाता था। उस पान की टीस एक बुंदेलखंड का ही व्यक्ति ही समझ सकता है। जैसे कि इस समय मैं।