मेरी बातों को जंगल के शेर-बाघ तो समझ लेते हैं लेकिन लोग नहीं समझ पाते हैं।’’ ये दर्द वही बयां कर सकता है, जिसको जंगल से प्यार हो। ऐसे ही एक शख्सयित हैं जिन्हें लोग ‘जंगली’ कहकर पुकारते हैं। लेकिन वे इसको बुरा नहीं मानते, बल्कि इसको एक सम्मान के साथ धारण करते हैं। कहते हैं कि जंगल को नष्ट करना तो आसान है लेकिन उसको बनाना बहुत ही मुश्किल काम है। ऐसा ही कुछ काम किया है उत्तराखण्ड के ग्रीन एंबेसडर जगत सिंह ‘जंगली’ जी ने।
हर वर्ष हम पर्यावरण और वन बचाओ पर कितने ही सेमिनार, संगोष्ठियां आयोजित की जाती हैं। उस दिन तो सभी अपने दर्द को सांझा करके चले जाते हैं, लेकिन उसके बाद क्या? उनका काम सिर्फ एक दिन लेक्चर देने तक ही था क्या? राजनेता भी जन-जन तक संदेश पहुँचाते है, लाखों पेड़ भी उनके द्वारा रोपित किये जाते हैं और संकल्प लेते हैं कि इन सभी पेड़ों की रक्षा हम करेंगे। पर्यावरण बचाने में अपना योगदान दे सकेंगे। लेकिन वे पेड़ कभी नहीं बन पाते हैं, उनको तोड़के फेंक दिया जाता है। हां, इतना जरूर है कि वह राजनीति दल इसे अपने चुनावी प्रचार-प्रसार में जरूर जिक्र करता है कि हमने इतने पेड़ लगाकर वल्र्ड रिकाॅर्ड बनाया और पर्यावरण को स्वच्छ करने में योगउान कर रहे है। जैसा कि हाल ही में उत्तर प्रदेश में सपा शासन ने किया था। लेकिन समाज में कुछ ऐसे भी व्यक्ति होते हैं जिनको पेड़ लगाने के लिए किसी वन दिवस की आवश्यकता नहीं होती है, उनके लिए हर दिन पर्यावरण को बचाने का दिन होता है। ऐसे ही पर्यावरण प्रेमी हैं जगत सिंह ‘जंगली’ जी।
मैं यहां एक ऐसे व्यक्ति की बात कर रहा हूँ जिसने कभी हारना नहीं सीखा। जो बिना लोभ के समाज के लिए कार्य करता रहा। जिस उम्र में हम नौकरी के लिए पागलों की तरह दौड़ कर रहे हैं, उस आयु में उन्होंने नौकरी छोड़कर गांव में आकर जंगल बसाने की सोची। सोचिए वो कैसा विचार होगा? ऐसे विचार आने वालों को तो लोग पागल ही कहेंगे, जगत सिंह को भी लोगो ने ऐसा ही किया लेकिन आज दुनिया उनके कार्य को सलाम कर रही है। जगत सिंहजी जब नौकरी से छुट्टियों में अपने गांव आए तो उनको पहाड़ों में एक महिला की चोट के बारे में सुना तो उनके दिल में एक टीस बैठ गई कि गांवों से जंगल दूर होने के कारण महिलाओं को चूल्हा जलाने के लिए लकड़ी और पशुओं के लिए चारा लेने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। ऐसा देखकर जगत सिंह जंगली जी ने अपने गांव, कोटमल्ला में एक जंगल बनाने की ठान लिया। उसी वक्त जगतजी ने 24 वर्ष की आयु से एक ऐसा जंगल बनाने में लग गए जो प्रकृति के लिए अनुकूल हो। जगत सिंह जंगली ने 2 हेक्टेयर ही भूमि पर ऐसा वन खड़ा किया है जो पूरे देश के लिए एक ऐसे माॅडल के रूप में उभरा है जो कई और जगह पर इसको लागू किया जा रहा है। जगत सिंह जंगली का मानना है कि पहाड़ के आस-पास अगर मिश्रित वन होंगे तो गांव के लोगों को चारे-लकड़ी लाने में परेशानी नहीं होगी, उन्होंने सूखी पत्तियों में गोबर डालकर जैविक खाद का भी निर्माण किया है। उन्होंने ऊबड़-खाबड़ पथरीली को ही हरा-भरा नहीं किया, बल्कि पर्यावरण और इस क्षेत्र के जाने-माने वैज्ञानिकों की सोच बदल डाली। जगतजी ने अपने 40 सालों में अब तक 60 प्रकार के प्रजातियों के 40,000 पेड़ों को लगाया और 40 प्रकार की घासों को लगाया।
उत्तराखण्ड के जंगलों में हमेशा यही शिकायत रहती है कि यहां पर आग बहुत लगती है । क्योंकि उत्तराखण्ड के जंगलों में चीड़ के पेड़ बहुत हैं जो आग बहुत जल्दी पकड़ती है। जब पूरे उत्तराखण्ड के जंगल आग से धधक रहे थे, तब सिर्फ जगत सिंह जी का ही एकमात्र जंगल था जहां आग नहीं थी। जगत सिंह ने अपने जंगल को एक मिश्रित जंगल के रूप में बनाया है जहां हर प्रकार के पेड़ हैं। यहां पर हमें जैतून, ब्रह्मकमल, बुरांश, अश्वगंधा और एलोवेरा जैसे पेड़ मिलते हैं, जो जंगल के लिए उपयोगी भी हैं और ये आग के प्रतिकूल भी होते हैं, जो जल्दी आग नहीं पकड़ते। जगत सिंह जंगली का यह भी कहना है कि उत्तराखण्ड के जंगलों में गार-गदेरे भी नदियों में एक प्रकार से सहायक नदी के रूप में कार्य करते हैं। हम सोचते हैं कि नदियों में पानी ग्लेशियर के माध्यम से आता है लेकिन जगत सिंह जी का कहना है कि ग्लेशियर हमेशा नहीं पिघलते, नदियों में पानी को बढ़ाने के लिए गार-गदेरे भी अपनी भूमिका निभाते हैं। गार-गदेरों पर कोई ध्यान नहीं देता है जबकि हमें नदियों को बचाने के लिए गार-गदेरों को भी बचाना पड़ेगा।
जगत सिंह जंगली जी का कहना है कि पहाड़ों में मिश्रित वनों के लगाने से जंगल से मृदा अपरदन को तो बचाया ही था, साथ साथ इसने नदी के जल स्रोत को भी बढ़ाने में सहायता की है। जगत सिंह को ऐसे कार्यों के लिए अब तक छोटे-बड़े 36 अवाॅर्ड मिल चुके हैं, लेकिन वह अपना सबसे बड़ा अवाॅर्ड ‘जंगली’ की उपाधि को मानते हैं जो उन्हें एक छोटे स्कूल में मिली थी। जगत सिंह जी का कहना है कि वह अपने काम से खुश हैं, उनके अपने काम पर आज खुशी होती है कि उनके इस माॅडल को आज हर कोई अपना रहा है। अलग-अलग विश्वविद्यालय के बच्चे और शोधार्थी उनके पास इस जंगल को देखने आते हैं। जगत सिंह ‘जंगली’ जी का कहना है कि हमने तो देश को जलवायु परिवर्तन का समाधान दे दिया है। लेकिन अब हमारी सरकार का काम है वह पर्यावरण के लिए एक ठोस नीति बनाए और उसको सही से लागू करे। क्योंकि हमारी राजनीति की एक ऐसी विडंबना है कि हमारी सरकार एक तो सोचती बहुत है और दूसरी यह नीति तो जल्दी बना देती से लेकिन इसको ठोस तरीके से कैसे करवाया जाए? ऐसा कम ही देखने को मिलता है।
जंगली जी का मानना है कि अगर सरकार इस मिश्रित वन के माॅडल को उत्तराखण्ड सहित पूरे देश में लागू करे तो पर्यावरण संरक्षण के साथ वनों को और अधिक उत्पादक बनाने में एक क्रांतिकारी कदम होगा। जगतजी का मानना है कि जंगल हमें स्वरोजगार करनेद का माध्यम देता है लेकिन हम स्वयं इसे ठुकरा देते हैं। उनका कहना है कि आज का मनुष्य बीमारियों से घिरा हुआ है, जबकि बूढ़े-पुराने लोग अधिक उम्र होने पर भी पूर्ण तरीके से स्वस्थ रहते हैं क्योंकि वे लोग प्रकृति-जंगल से जुड़े हुए हैंै। उन्हें कोई आवश्यकता नहीं है महँगी-महँगी दवाईयों की, उन्हें तो जंगल की घास मिल जाएं उसी से ठीक हो जाते हैं। इसलिए आज हमें भी जंगली जैसे बनने की आवश्यकता है जो एक बार ठान लें तो करक ही दम लेते हैं। हमने कागजी कार्य तो बहुत देख लिए लेकिन जमीन पर जो कार्य उतार सके उसे ही जंगली जैसी उपाधि दी जाती हैं। हमें इस माॅडल को ऐसे फैलाना है जो सिर्फ किताबों में ना रह जाए बल्कि यह लोगों के द्वारा कार्यों में शुमार हो जाए। इसके लिए हमें एक सोच की आवश्यकता है, जो हमें हौसला देती है, कार्य को अंजाम तक पहुँचाने तक दृढ़ शक्ति देती है। जंगली जी ने हम सबको बता दिया कि प्रकृति से बड़ा कोई शिक्षक नहींे। इसलिए हमें प्रकृति से दूर नहीं, प्रकृति से जुड़े रहना चाहिए।
हर वर्ष हम पर्यावरण और वन बचाओ पर कितने ही सेमिनार, संगोष्ठियां आयोजित की जाती हैं। उस दिन तो सभी अपने दर्द को सांझा करके चले जाते हैं, लेकिन उसके बाद क्या? उनका काम सिर्फ एक दिन लेक्चर देने तक ही था क्या? राजनेता भी जन-जन तक संदेश पहुँचाते है, लाखों पेड़ भी उनके द्वारा रोपित किये जाते हैं और संकल्प लेते हैं कि इन सभी पेड़ों की रक्षा हम करेंगे। पर्यावरण बचाने में अपना योगदान दे सकेंगे। लेकिन वे पेड़ कभी नहीं बन पाते हैं, उनको तोड़के फेंक दिया जाता है। हां, इतना जरूर है कि वह राजनीति दल इसे अपने चुनावी प्रचार-प्रसार में जरूर जिक्र करता है कि हमने इतने पेड़ लगाकर वल्र्ड रिकाॅर्ड बनाया और पर्यावरण को स्वच्छ करने में योगउान कर रहे है। जैसा कि हाल ही में उत्तर प्रदेश में सपा शासन ने किया था। लेकिन समाज में कुछ ऐसे भी व्यक्ति होते हैं जिनको पेड़ लगाने के लिए किसी वन दिवस की आवश्यकता नहीं होती है, उनके लिए हर दिन पर्यावरण को बचाने का दिन होता है। ऐसे ही पर्यावरण प्रेमी हैं जगत सिंह ‘जंगली’ जी।
मैं यहां एक ऐसे व्यक्ति की बात कर रहा हूँ जिसने कभी हारना नहीं सीखा। जो बिना लोभ के समाज के लिए कार्य करता रहा। जिस उम्र में हम नौकरी के लिए पागलों की तरह दौड़ कर रहे हैं, उस आयु में उन्होंने नौकरी छोड़कर गांव में आकर जंगल बसाने की सोची। सोचिए वो कैसा विचार होगा? ऐसे विचार आने वालों को तो लोग पागल ही कहेंगे, जगत सिंह को भी लोगो ने ऐसा ही किया लेकिन आज दुनिया उनके कार्य को सलाम कर रही है। जगत सिंहजी जब नौकरी से छुट्टियों में अपने गांव आए तो उनको पहाड़ों में एक महिला की चोट के बारे में सुना तो उनके दिल में एक टीस बैठ गई कि गांवों से जंगल दूर होने के कारण महिलाओं को चूल्हा जलाने के लिए लकड़ी और पशुओं के लिए चारा लेने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। ऐसा देखकर जगत सिंह जंगली जी ने अपने गांव, कोटमल्ला में एक जंगल बनाने की ठान लिया। उसी वक्त जगतजी ने 24 वर्ष की आयु से एक ऐसा जंगल बनाने में लग गए जो प्रकृति के लिए अनुकूल हो। जगत सिंह जंगली ने 2 हेक्टेयर ही भूमि पर ऐसा वन खड़ा किया है जो पूरे देश के लिए एक ऐसे माॅडल के रूप में उभरा है जो कई और जगह पर इसको लागू किया जा रहा है। जगत सिंह जंगली का मानना है कि पहाड़ के आस-पास अगर मिश्रित वन होंगे तो गांव के लोगों को चारे-लकड़ी लाने में परेशानी नहीं होगी, उन्होंने सूखी पत्तियों में गोबर डालकर जैविक खाद का भी निर्माण किया है। उन्होंने ऊबड़-खाबड़ पथरीली को ही हरा-भरा नहीं किया, बल्कि पर्यावरण और इस क्षेत्र के जाने-माने वैज्ञानिकों की सोच बदल डाली। जगतजी ने अपने 40 सालों में अब तक 60 प्रकार के प्रजातियों के 40,000 पेड़ों को लगाया और 40 प्रकार की घासों को लगाया।
उत्तराखण्ड के जंगलों में हमेशा यही शिकायत रहती है कि यहां पर आग बहुत लगती है । क्योंकि उत्तराखण्ड के जंगलों में चीड़ के पेड़ बहुत हैं जो आग बहुत जल्दी पकड़ती है। जब पूरे उत्तराखण्ड के जंगल आग से धधक रहे थे, तब सिर्फ जगत सिंह जी का ही एकमात्र जंगल था जहां आग नहीं थी। जगत सिंह ने अपने जंगल को एक मिश्रित जंगल के रूप में बनाया है जहां हर प्रकार के पेड़ हैं। यहां पर हमें जैतून, ब्रह्मकमल, बुरांश, अश्वगंधा और एलोवेरा जैसे पेड़ मिलते हैं, जो जंगल के लिए उपयोगी भी हैं और ये आग के प्रतिकूल भी होते हैं, जो जल्दी आग नहीं पकड़ते। जगत सिंह जंगली का यह भी कहना है कि उत्तराखण्ड के जंगलों में गार-गदेरे भी नदियों में एक प्रकार से सहायक नदी के रूप में कार्य करते हैं। हम सोचते हैं कि नदियों में पानी ग्लेशियर के माध्यम से आता है लेकिन जगत सिंह जी का कहना है कि ग्लेशियर हमेशा नहीं पिघलते, नदियों में पानी को बढ़ाने के लिए गार-गदेरे भी अपनी भूमिका निभाते हैं। गार-गदेरों पर कोई ध्यान नहीं देता है जबकि हमें नदियों को बचाने के लिए गार-गदेरों को भी बचाना पड़ेगा।
जगत सिंह जंगली जी का कहना है कि पहाड़ों में मिश्रित वनों के लगाने से जंगल से मृदा अपरदन को तो बचाया ही था, साथ साथ इसने नदी के जल स्रोत को भी बढ़ाने में सहायता की है। जगत सिंह को ऐसे कार्यों के लिए अब तक छोटे-बड़े 36 अवाॅर्ड मिल चुके हैं, लेकिन वह अपना सबसे बड़ा अवाॅर्ड ‘जंगली’ की उपाधि को मानते हैं जो उन्हें एक छोटे स्कूल में मिली थी। जगत सिंह जी का कहना है कि वह अपने काम से खुश हैं, उनके अपने काम पर आज खुशी होती है कि उनके इस माॅडल को आज हर कोई अपना रहा है। अलग-अलग विश्वविद्यालय के बच्चे और शोधार्थी उनके पास इस जंगल को देखने आते हैं। जगत सिंह ‘जंगली’ जी का कहना है कि हमने तो देश को जलवायु परिवर्तन का समाधान दे दिया है। लेकिन अब हमारी सरकार का काम है वह पर्यावरण के लिए एक ठोस नीति बनाए और उसको सही से लागू करे। क्योंकि हमारी राजनीति की एक ऐसी विडंबना है कि हमारी सरकार एक तो सोचती बहुत है और दूसरी यह नीति तो जल्दी बना देती से लेकिन इसको ठोस तरीके से कैसे करवाया जाए? ऐसा कम ही देखने को मिलता है।
जंगली जी का मानना है कि अगर सरकार इस मिश्रित वन के माॅडल को उत्तराखण्ड सहित पूरे देश में लागू करे तो पर्यावरण संरक्षण के साथ वनों को और अधिक उत्पादक बनाने में एक क्रांतिकारी कदम होगा। जगतजी का मानना है कि जंगल हमें स्वरोजगार करनेद का माध्यम देता है लेकिन हम स्वयं इसे ठुकरा देते हैं। उनका कहना है कि आज का मनुष्य बीमारियों से घिरा हुआ है, जबकि बूढ़े-पुराने लोग अधिक उम्र होने पर भी पूर्ण तरीके से स्वस्थ रहते हैं क्योंकि वे लोग प्रकृति-जंगल से जुड़े हुए हैंै। उन्हें कोई आवश्यकता नहीं है महँगी-महँगी दवाईयों की, उन्हें तो जंगल की घास मिल जाएं उसी से ठीक हो जाते हैं। इसलिए आज हमें भी जंगली जैसे बनने की आवश्यकता है जो एक बार ठान लें तो करक ही दम लेते हैं। हमने कागजी कार्य तो बहुत देख लिए लेकिन जमीन पर जो कार्य उतार सके उसे ही जंगली जैसी उपाधि दी जाती हैं। हमें इस माॅडल को ऐसे फैलाना है जो सिर्फ किताबों में ना रह जाए बल्कि यह लोगों के द्वारा कार्यों में शुमार हो जाए। इसके लिए हमें एक सोच की आवश्यकता है, जो हमें हौसला देती है, कार्य को अंजाम तक पहुँचाने तक दृढ़ शक्ति देती है। जंगली जी ने हम सबको बता दिया कि प्रकृति से बड़ा कोई शिक्षक नहींे। इसलिए हमें प्रकृति से दूर नहीं, प्रकृति से जुड़े रहना चाहिए।
भाषा में बहुत त्रुटियाँ हैं। लेख कितना भी अच्छा हो परंतु भाषायी त्रुटि उसको ऐसे ही खराब कर देती है जैसे कई लीटर दूध को एक बूंद नीबू का रस। लेख लिखने के बाद उसका पुनरावलोकन करना इसी वजह से करना समीचीन होता है।
ReplyDeleteजगत सिंह जंगली संज्ञा शब्द है। लेख की शुरुआत में संज्ञा शब्द अच्छे लगते हैं परंतु इनकी बार बार पुनरावृत्ति से गद्य-सौन्दर्य बिगड़ता है। अतः किसी के नाम की जगह सर्वनाम शब्द का प्रयोग करना अच्छा रहता है। शुभाशीष।
त्रुटियां बताने के लिए धन्यवाद!! त्रुटियों को सही करने का भरसक प्रयास करूंगा।
Delete।। जंगली जी के जीवन से बहुत कुछ सीखा जा सकता है ।।
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