Monday, 26 December 2022

मैंने राजस्थान यात्रा में देखा अनूठा स्कूल, 50 डिग्री तापमान में भी बिना AC के रहता है ठंडा

राजस्थान में घूमने के लिए कई सुंदर और सुनहरी जगहें हैं। वैभवता और राजशाही के प्रतीक राजस्थान में प्राचीन महल, क़िले और हवेलियाँ हैं। जिनको देखकर हर कोई आज भी वाह कह उठता है। आज मैं आपको राजस्थान की एक ऐसी जगह की यात्रा पर ले जाना चाहता हूँ, जहां हर व्यक्ति को एक बार ज़रूर जाना चाहिए। थार रेगिस्तान में गर्मियों के दिनों में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस पहुँच जाता है और दिन में चलने वाली हवाएँ किसी थपेड़े से कम नहीं होती हैं। उसी रेगिस्तान के बीचों बीच एक ऐसा स्कूल है जिसके अंदर ठंड का एहसास होता है। स्कूल के अंदर ना एसी लगी है और ना ही कूलर। इस स्कूल की संरचना कुछ इस प्रकार है कि अंदर ठंडी-ठंडी हवाएँ चलती हैं और बच्चे-हंसते खेलते हुए पढ़ते हैं।

मैं सम सैंड ड्यूंस कैंप में था तब मुझे इस स्कूल के बारे में पता चला। थार रेगिस्तान में बना इस स्कूल का नाम राजकुमारी रत्नावती गर्ल्स स्कूल है। कनोई गाँव में स्थित ये स्कूल सम सैंड ड्यूंस से सिर्फ़ 7 किमी. की दूरी पर है और जैसलमेर के 45 किमी. की दूरी पर है। मैंने स्कूटी उठाई और इस स्कूल को देखने के लिए निकल पड़ा। स्कूल तक पूरा रास्ता बना हुआ है लेकिन गूगल मैप की कृपा से हम कच्चे और रेतीले रास्ते से स्कूल तक पहुँचे। हम जब स्कूल के पास पहुँचे तो स्कूल बंद था। अंडाकार आकार का बना ये स्कूल देखने में वाक़ई शानदार है। मुझे लगा कि स्कूल तो बंद है इसलिए हम स्कूल को अंदर से देख नहीं पाएँगे। स्कूल के गेट पर एक नंबर लिखा हुआ था। मेरी जिनसे बात हुई तो उन्होंने बताया कि वो स्कूल रहे हैं।

राजकुमारी रत्नावती गर्ल्स स्कूल

शानदार वास्तुकला का उदाहरण राजकुमारी रत्नावती गर्ल्स स्कूल का डिज़ाइन न्यूयार्क की आर्किटेक्ट डायना केलॉग ने किया है। इस स्कूल को CITTA नाम की संस्था के संस्थापक माइकल डूबे की मदद से चलाया जा रहा है। इसके अलावा इस स्कूल के बच्चों की ड्रेस मशहूर डिज़ाइनर सब्यसाची मुखर्जी ने तैयार की है। सब्यसाची अभिनेत्री दीपिका पादुकोण और प्रियंका चोपड़ा की डिज़ाइनर रही हैं। लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देता है राजस्थान का ये स्कूल। इस स्कूल में लड़कियाँ पढ़ती हैं और उनकी शिक्षा बिल्कुल मुफ़्त है। छात्राओं को निःशुल्क शिक्षा के अलावा रोज़ाना मिड-डे मील भी दिया जाता है। इस स्कूल का नाम क्षेत्र की एक राजकुमारी के नाम पर रखा गया है।

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थोड़ी देर इंतज़ार करने के बाद एक स्कूल की बस गई जिसमें से बहुत सारी लड़कियाँ बस्ते पहनकर नीचे उतरीं। जिनसे हमारी फ़ोन पर बात हुई थी उन्होंने स्कूल का गेट खोला। उनका नाम राजेन्द्र भाटी है और वो स्कूल के सुपरवाइज़र हैं। उन्होंने हमें बताया कि स्कूल अंदर वीडियोग्राफी करना पूरी तरह से मना है, आप स्कूल के अंदर और बाहर फ़ोटो ले सकते हैं। उन्होंने बताया कि हमें 200 रुपए स्कूल के डोनेशन में देने होंगे जो लड़कियों की शिक्षा में इस्तेमाल किए जाएँगे। राजेन्द्र भाटी ने हमें पूरा स्कूल घुमाया। तब तक एक और स्कूली बस गई।

निःशुल्क शिक्षा

राजस्थान में साक्षरता दर बहुत कम है और लड़कियों को तो बेहद कम शिक्षा दे जाती है। ऐसे में राजस्थान के ग्रामीण इलाक़े में ऐसा स्कूल का बनना शिक्षा के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। इंटरनेट पर कई जगहों पर दिया गया है कि राजकुमारी रत्नावती गर्ल्स स्कूल में कक्षा 1 से 10 तक पढ़ाई होती है और 400 छात्राएँ इसमें पढ़ती हैं। स्कूल के सुपरवाइज़र राजेन्द्र भाटी ने बताया कि वर्तमान में इस स्कूल में कक्षा 1 से कक्षा 4 तक पढ़ाई होती है और स्कूल में कुल छात्राओं की संख्या 120 है। शिक्षा पूरी तरह से अंग्रेज़ी माध्यम में होती है और स्कूल में 4 शिक्षक पढ़ाते हैं। इसके अलावा गेस्ट टीचर भी आते-रहते हैं। उन्होंने बताया कि इस स्कूल के 15 किमी. के दायरे में जो गाँव आते हैं, वहाँ की लड़कियाँ इस स्कूल में पढ़ने आती हैं। हर रोज़ स्कूल की बस छात्राओं को लेने जाती है और छोड़ने भी जाती है।

राजकुमारी रत्नावती गर्ल्स स्कूल अंडाकार आकार का बना है। पूरा स्कूल सौर ऊर्जा से संचालित है। स्कूल की छत पर सोलर पैनल भी लगे हुए हैं। इसके अलावा यहाँ का पानी भी बहुत मीठा है। मैंने इस स्कूल के नल का पानी पिया तो यक़ीन नहीं हुआ कि इतना मीठा पानी रेगिस्तान में कैसे हो सकता है? हमने स्कूल की कक्षाएँ और कार्यालय भी दिखाया। राजेंद्र भाटी जी ने हमें स्कूल की यूनिफार्म और आसपास बनने वाली इमारतों का डिज़ाइन दिखाया। उन्होंने बताया कि इसी स्कूल के पास में दो और इमारतें प्रस्तावित हैं। स्कूल के अंडाकार आकार में ही दोनों इमारतें बनेंगी। कुल मिलाकर इस जगह पर अंडाकार आकार की तीन इमारतें हो जाएँगी। इसमें से एक इमारत में तो स्कूल चलेगा, एक इमारत में क्षेत्र की महिलाएं अपने हाथ से सामान बनाएँगी और तीसरी इमारत में बाज़ार लगेगा। जिसमें महिलाएं अपने बनाए हुए सामान को बेच सकेंगी। कुल मिलाकर ये जगह शिक्षा और रोज़गार का केन्द्र बन जाएगी।


राजकुमारी रत्नावती गर्ल्स स्कूल राजस्थान में लड़कियों की शिक्षा के लिए एक अच्छी पहल है। अगर ऐसे ही स्कूल राजस्थान के कई सारे ग्रामीण इलाक़ों में बन जाएँ तो राजस्थान शिक्षा में काफ़ी बढ़िया करेगा। इसके अलावा इस स्कूल की वास्तुकला तो देखने लायक़ है ही। दूर-दूर से सैलानी इस स्कूल को देखने के लिए आते हैं। अगर आप राजस्थान के जैसलमेर जाते हैं तो इस स्कूल को देखना ना भूलें।


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थार रेगिस्तान: जैसलमेर के सम सैंड ड्यूंस में की कैंपिंग और सफारी

राजस्थान की स्वर्ण नगरी जैसलमेर में मेरा पहला दिन शानदार तरीके से बीता। मैंने जैसलमेर का सोनार किला, जैन मंदिर, पटवा हवेली और गड़ीसर लेक देखी। अब हमें जैसलमेर की कुछ और जगहों को एक्सप्लोर करना था। जैसलमेर राजस्थान की वो जगह है जहाँ चारों तरफ देखने के लिए कुछ ना कुछ है। जैसलमेर में दूसरे दिन हमने सभी जगहें तो नहीं लेकिन कुछ जगहों को तो देखने का मन बना ही लिया।

जैसलमेर से भारत-पाकिस्तान का बॉर्डर लगभग 150 किमी. की दूरी पर है। पहले मैंने बार्डर तक जाने का प्लान बनाया लेकिन वहाँ तक जाने के लिए स्कूटी का खर्चा कुछ ज्यादा ही आ रहा था इसलिए हमें सम सैंड ड्यूंस में कैंपिंग करने का तय किया। सम सैंड ड्यूंस जैसलमेर से 60 किमी. की दूरी पर है। यहाँ तक पहुँचने के दो रास्ते हैं, पहला कुलधरा और खाब किला होते हुए और दूसरा अमर सागर और लुद्रवा होते हुए। पिछली यात्रा में मैं कुलधरा और खाब किला होते हुए सम सैंड ड्यूंस गया था तो इस बार दूसरे रास्ते से सम गाँव तक जाने का प्लान बनाया।

बड़ा बाग

सबसे पहले हमने 600 रुपए में एक दिन के लिए स्कूटी किराए पर ली और चले पड़े बड़ा बाघ की ओर। बड़ा बाघ जैसलमेर शहर से 13 किमी. की दूरी पर है। कुछ ही देर में हम बड़ा बाग पहुँच गए। बड़ा बाग के अंदर जाने का टिकट 150 रुपए है। टिकट लेकर हम बड़ा बाग के गेट पर पहुँच गए। बड़ा बाग जैसलमेर का एक बहुत बड़ा पार्क है जो अपने शाही स्मारकों या छतरियों के लिए प्रसिद्ध है। बड़ा बाग राजा-रानियों का एक श्मशान घाट रहा है जहाँ बाद में छतरियों का निर्माण करवाया गया है।

बड़ा बाग में बहुत सारी छतरियाँ बनी हुई हैं लेकिन इस छतरियों की पहचान करना मुश्किल है क्योंकि छतरियों के आगे लिखा नहीं है कि ये किस राजा और रानी की छतरी है। अगर आप अपने साथ गाइड रखते हैं तो वो आपको हर छतरी के बारे में आराम से बता देंगे। मैंने भी कोई गाइड नहीं लिया इसलिए मुझे भी नहीं पता कि ये किस-किसकी छतरियाँ हैं। पीले पत्थर से बनी इन छतरियों की नक्काशी बहुत खूबसूरत है। कुछ छतरियाँ पहाड़ियों पर स्थित हैं और कुछ छतरियाँ नीचे बनी हुई हैं।

अमर सागर

बड़ा बाग को देखने के बाद हम अमर सागर की ओर निकल पड़े। बड़ा बाग से जैसलमेरी की तरफ जाने पर एक रास्ता दायीं ओर जाता है। कई गाँवों से होते हुए हम अमर सागर पहुँच गए। हमें ये देखकर बड़ा ताज्जुब हुआ कि अमर सागर में कोई पानी नहीं था। यहाँ सिर्फ खाली जमीन बंजर पड़ी हुई थी। अमर सागर के पास में एक जैन मंदिर था। मंदिर अंदर से बंद था तो हम मंदिर को देखे बिना सम सैंड ड्यूंस की तरफ चल पड़े। जैसलमेर की इन रास्तों में कई बार ऐसा मौका आता है जब आपको दूर-दूर तक कोई नहीं मिलता है।

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हम अब लुद्रवा गाँव के रास्ते पर चल रहे थे। लुद्रवा गाँव में एक बेहद प्राचीन मंदिर है। दूर-दूर तक हमें कोई नहीं दिखाई दे रहा था और रोड के दोनों तरफ बंजर था। मन में ऐसा ख्याल तो आ रहा था कि कहीं हम गलत रास्ते पर तो नहीं जा रहे हैं। बड़ी देर बाद रास्ते में एक व्यक्ति मिला तो तसल्ली हुई हम सही रास्ते पर जा रहे हैं। कुछ देर बाद लुद्रवा गाँव के जैन मंदिर के बाहर खड़े थे। जैन मंदिर को देखने का कोई टिकट नहीं है लेकिन फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी का टिकट 50 रुपए है। ये मंदिर जैसलमेर के जैन मंदिर के तरह ही बना हुआ लेकिन ये कुछ बड़ा है और नक्काशी तो देखने लायक है।

रेगिस्तान में कैंपिंग

लुद्रवा के जैन मंदिर को देखने के बाद हम फिर से सुनसान रास्ते पर चल पड़े। जैसलमेर के कई गाँवों से होते हुए हम सैंड ड्यूंस के मुख्य रोड पर पहुँच गए। कुछ देर बाद रोड किनारे डेजर्ट कैंप में ठहरने के बोर्ड दिखने शुरू हो गए। हमें भी ऐसे ही किसी एक कैंप में ठहरना था। रास्ते में हम कुछ ढाबे दिखाई दिए तो हम ऐसे ही किसी एक रेस्टोरेंट में खाना खाने के लिए रूक गए। मैंने यहाँ राजस्थानी थाली का जायका लिया। इस थाली में खाने का मात्रा भी कम थी और रेट भी महंगा था। पर्यटन वाली जगहों पर सामान्य वस्तुएं भी महंगी मिलती है, ये तो फिर भी राजस्थानी थाली है।

अब यहाँ से सम सैंड ड्यूंस 19 किमी. की दूरी पर है। स्कूटी उठाकर हम फिर से अपने रास्ते पर चल पड़े। कुछ दूरी चलने के बाद कैंप शुरू हो गए। रास्ते में कई स्थानीय लोग मिले जो सस्ते में टेंट दिलाने की बात करते हैं लेकिन ऐसा होता नहीं है। एक स्थानीय व्यक्ति तो अपनी बाइक के साथ हमारे पीछे चल पड़ा और काफी मना करने के बाद वापस गया। हमारी तो पहले से बुकिंग थी इसलिए हम तो सीधे अपने कैंप में पहुँचे। यहाँ हमें रेगिस्तान में एक लग्जरी टेंट मिला। पहले भी मैं कई जगहों पर ऐसों कैंपिंग में रह चुका हूं लेकिन ये टेंट वाकई में शानदार था।

शाम के समय हम सफारी करने वाले थे। साथ में कैमल राइड भी पैकेज में शामिल है। शाम होने में थोड़ा वक्त था तो हमने कुछ देर आराम किया और फिर सफारी पर निकल पड़ा। सफारी में हम हवा से बातें कर रहे थे। अगर हम कुछ ना पकड़ते तो हम जमीन पर गिर जाते। हम बहुत उछल रहे थे। गाड़ी इतनी तेज थी कि हम सही से खड़े भी नहीं हो पा रहे थे। रेत में काफी उछल कूद होने के बाद एक जगह गाड़ी रूकी। यहाँ मैंने कैमल सफारी भी की। इसके अलावा आप यहाँ पैराग्लाइडिंग भी कर सकते हैं लेकिन वो हमारे पैकेज में नहीं था तो हमने पैराग्लाइडिंग नहीं की।

सनसेट और रात

हम काफी देर तक रेत के टीलों पर पैदल चलते रहे। थार रेगिस्तान को अपनी आंखों से देखना वाकई में एक सुंदर पल है। यहाँ का सूर्यास्त का नजारा देखकर आप खुश हो उठेंगे। ऐसी सुंदर लालिमा बहुत कम जगहों पर देखने को मिलती है। इस नजारे को देखने के बाद कुछ देर और हम यहाँ रहे। हम जिस गाड़ी से आए थे, उसी गाड़ी से अपने कैंप की ओर चल पड़े। कैंप में रात में कई घंटों तक सांस्कृतिक कार्यक्रम हुआ। इस सांस्कृतिक कार्यक्रम में लोकल संगीत और स्थानीय नृत्य भी देखने को मिलता है। खाना खाने के बाद अब हमने टेंट में आ गए। बिस्तर पर लेटते ही हम नींद की आगोश में कब आ गए। हमें खुद पता नहीं चला।

अगले दिन सुबह उठकर हमें सनराइज देखना था लेकिन नींद नहीं खुली। जब उठे तो काफी देर हो चुकी थी। फिर करने को क्या ही था? तैयार हुए और नाश्ता किया। इस शानदार डेजर्ट कैंप को अलविदा कहकर जैसलमेर की ओर निकल पड़े। जैसलमेर की इस यात्रा ने हमारी राजस्थान यात्रा को और शानदार बना दिया। इस जगह पर आकर अनुभव होता है कि राजस्थान वाकई में वैभवता का एक प्रतीक है।


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Sunday, 18 December 2022

स्वर्ण नगरी जैसलमेर में मेरा पहला दिन: सोनार किला, पटवों की हवेली और गड़ीसर लेक

राजस्थान गौरवशाली इतिहास और वैभवता का प्रतीक है। यहाँ का हर शहर अपनी एक अलग खासियत और खूबसूरती लिए हुए है। मैं राजस्थान की एक लंबी यात्रा पर निकल चुका था। राजस्थान की राजधानी जयपुर से शुरू हुई ये यात्रा जोधपुर से होकर बीकानेर पहुँच गई। अब मुझे राजस्थान के एक और खूबसूरत शहर की ओर निकलना था। राजस्थान की इस जगह का नाम है, जैसलमेर।

बीकानेर में दो दिन घूमने के बाद रात को मैं बीकानेर में अपने होटल से सामान उठाकर रेलवे स्टेशन की तरफ निकल पड़ा। होटल से रेलवे स्टेशन पहुँचने में सिर्फ 5 मिनट का समय लगा। बीकानेर रेलवे स्टेशन पर ट्रेन अपने सही समय पर पहुँची। हमने अपनी सीट पकड़ ली और कुछ ही देर में ट्रेन चल पड़ी। रात के अंधेरे में कुछ बाहर का तो दिखना नहीं था इसलिए मैं नींद की आगोश में चला गया। सुबह के 4 बजे जब आंख खुली तो ट्रेन जैसलमेर रेलवे स्टेशन पर पहुँच चुकी थी।

जैसलमेर

मैं दूसरी बार राजस्थान के जैसलमेर की धरती पर कदम रख रहा था। मैं ट्रेन के अंदर अपना सामान समेट रहा था और लोग होटल के लिए अपना कार्ड लेकर अंदर आ रहे थे लेकिन मेरी होटल के लिए कहीं और बात हो चुकी थी। इसी तरह एक आदमी और अंदर आया और उसने भी सस्ते में कमरा दिलाने की बात कही। मैंने जब उसे बताया कि मेरी कहीं बात हो चुकी तो उसने कहा कि ठीक है, मैं वहाँ छोड़ देता हूं मेरे पास टैक्सी भी है। चलते-चलते उसने होटल का नाम और एड्रेस भी पता किया। इसके बाद मुझे बहलाने लगा कि मैं सस्ता और अच्छा होटल दूंगा। इसके अलावा वो फर्जी पैसा लगकर ठगी कर लेगा। मैंने जब मना कर दिया तो उसने कहा कि मेरी पास कोई टैक्सी नहीं है, दूसरी टैक्सी ले लो।

इसके बाद मैंने दूसरी ऑटो ली और होटल की तरफ चल पड़ा। हमारी ऑटो जैसलमेर की गलियों में चलती जा रही थी। कुछ देर में हमारी टैक्सी किले के पीछे पार्किंग में पहुँची। होटल का नाम है, डेजर्ट गोल्ड। मैंने एक सस्ता सा कमरा लिया जो रूकने के लिए बढ़िया है। अब कुछ देर मुझे आराम करना था। एक बार फिर से मैं नींद की आगोश में था। कुछ घंटे आराम करने के बाद सुबह 8 बजे उठा और फिर जैसलमेर को एक्सप्लोर करने के लिए तैयार हो गया।

सोनार किला

जैसलमेर की स्थापना राव जैसल ने की थी। उन्हीं के नाम पर इस जगह का नाम जैसलमेर रखा गया है। हम पैदल-पैदल किले की तरफ चल पड़े। किले के सामान एक ठेले पर हमने दाल-पकवान खाया। इस स्वादिष्ट दाल पकवान का स्वाद लेकर जैसलमेर की यात्रा एकदम शानदार तरीके से शुरू हो गई। जैसलमेर किले को घूमने के लिए हमने एक गाइड भी कर लिया। कुछ देर में हम किले के अंदर थे।

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जैसलमेर का किला दुनिया के सबसे विशालतम किलों में से एक है। 1156 में भाटी राजपूत शासक राव जैसल द्वारा बनवाया गया था। इस किले को सोने का किला भी कहा जाता है। जैसलमेर का किला एक विश्व विरासत स्थल है। सोनार किला जमीन से 250 फीट की ऊंचाई पर एक पहाड़ी पर स्थित है। ये किला 1500 फुट लंबा और 750 फीट चौड़ा है। किले के चार प्रवेश द्वार है। इस किले के अंदर 5000 से ज्यादा लोग रहते हैं। किले के अंदर लोगों के घर, दुकानें, होटल और हॉस्टल भी हैं।

जैन मंदिर

जैसलमेर किले के अंदर पहुँचने के बाद हम सबसे पहले राजा-रानी महल के पास पहुँचे लेकिन हमने पहले जैन मंदिर जाने का तय किया। किले की गलियों में कुछ देर चलने के बाद हम जैन मंदिर पहुँच गए। जैसलमेर किले के अंदर 8 जैन मंदिर है। जैन मंदिर में जाने का टिकट नहीं है लेकिन फोटो और वीडियोग्राफी का टिकट 50 रुपए है। हमने टिकट लिया और जैन मंदिर के अंदर चल पड़े। पार्श्वनाथ मंदिर के अंदर की नक्काशी बेहद शानदार है। इसी तरह हमने सभी जैन मंदिर को देखा। सभी जैन मंदिर वाकई में बेहद सुंदर और देखने लायक हैं।

जैन मंदिरों को देखने के बाद हम फिर से किले की गलियों से गुजर रहे थे। इन गलियों मे बहुत सारी दुकानें हैं जहाँ आप अपने लिए कुछ खरीद सकते हैं। कुछ देर हम राजा महल के अंदर पहुँचे। राजा-रानी महल हमने टिकट लिया। हमने टिकट काउंटर से 50 रुपए का टिकट लिया और फिर किले को देखने के लिए निकल पड़ा। किले के अंदर मैंने जैससेमर किले के अलग-अलग महलों को देखा। इसके अलावा जैसलमेर के राजाओं के बारे में जानकारी दी गई और उस समय के हथियारों को भी देखा। जैसलमेर किले को पूरा देखने में काफी समय लग गया। लगभग 2 घंटे बाद मैं किले से बाहर निकला।

पटवों की हवेली

जैसलमेर किले को देखने के बाद अब हमें पटवों की हवेली की ओर जाना था। हम पैदल-पैदल ही पटवों की हवेली पहुँच गए। पटवों की हवेली का निर्माण गुमान चंद पटवा ने किया था। पटवों की हवेली एक नहीं बल्कि पांच हवेलियों का एक समूह है। टिकट लेकर मैं कोठारी हवेली को देखने के लिए निकल पड़ा। इस समय ये हवेली भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अंतर्गत आती है। पटवों की हवेली के अंदर एक संग्रहालय है जिसमें आप समय के सामान, बर्तन, चित्रकारी और नक्काशी को देख सकते हैं।

पटवों की हवेली को देखने के बाद अब हमें कुछ और जगहों पर जाना था लेकिन सबसे पहले खाना खाना था। दाल पकवान के अलावा हमने कुछ नहीं खाया था। अब हम खाने की खोज में निकल पड़े। हम किले के पास में ही एक होटल में गए और हमने वहाँ शानदार खाना खाया। खाना खाने के बाद हम अपने कमरे में आ गए। अब हम कुछ घंटे आराम करने वाले थे। शाम को हम फिर से एक बार जैसलमेर की गलियों में थे।

गड़ीसर लेक

जैसलमेर की गलियों में चलते हुए हम रोड पर गए और फिर पहुँचे गडीसर लेक। गडीसर लेक रेगिस्तान में पानी का अथाह समुंदर है। गड़ीसर झील का निर्माण 13वीं शताब्दी में राव जैसल द्वारा करवाया गया था। इस लेक को क्षेत्र के सूखे को खत्म करने के लिए बनवाया गया था। बाद में जैसलमेर के मेहरावल गड़सी सिंह ने इस तालाब का जीर्णोद्धार करवाया। बाद में इस झील का नाम उन्हीं के नाम पर गड़ीसर लेक रखा गया।

गड़ीसर झील में आप बोटिंग कर सकते हैं। इसके अलावा शाम को सूर्यास्त के बाद जब बादल लाल हो जाता है तो ये झील और भी खूबसूरत हो जाती है। मैंने वो नजारा देखा तो लगा कि वक्त वहीं रूक जाए और ये नजारा ऐसे ही बना रहे। थोड़ी देर में एक जगह लोगों की भीड़ जमा हो गई। अंधेरा होने के बाद पहले फव्वारा चला और फिर उसी फव्वारे पर लाइट एंड साउंड शो शुरू हो गया। हम थोड़ी देर बाद एक रेस्टोरेंट में गए और वहाँ राजस्थानी थाली का स्वाद लिया। इस तरह मेरी जैसलमेर की यात्रा पूरी हुई। इस दिन जैसलमेर शहर की कई जगहों को मैंने अच्छे से देखा। अभी तो जैसलमेर के सबसे अच्छे दिन और अनुभव से गुजरना था।