Monday, 26 December 2022

थार रेगिस्तान: जैसलमेर के सम सैंड ड्यूंस में की कैंपिंग और सफारी

राजस्थान की स्वर्ण नगरी जैसलमेर में मेरा पहला दिन शानदार तरीके से बीता। मैंने जैसलमेर का सोनार किला, जैन मंदिर, पटवा हवेली और गड़ीसर लेक देखी। अब हमें जैसलमेर की कुछ और जगहों को एक्सप्लोर करना था। जैसलमेर राजस्थान की वो जगह है जहाँ चारों तरफ देखने के लिए कुछ ना कुछ है। जैसलमेर में दूसरे दिन हमने सभी जगहें तो नहीं लेकिन कुछ जगहों को तो देखने का मन बना ही लिया।

जैसलमेर से भारत-पाकिस्तान का बॉर्डर लगभग 150 किमी. की दूरी पर है। पहले मैंने बार्डर तक जाने का प्लान बनाया लेकिन वहाँ तक जाने के लिए स्कूटी का खर्चा कुछ ज्यादा ही आ रहा था इसलिए हमें सम सैंड ड्यूंस में कैंपिंग करने का तय किया। सम सैंड ड्यूंस जैसलमेर से 60 किमी. की दूरी पर है। यहाँ तक पहुँचने के दो रास्ते हैं, पहला कुलधरा और खाब किला होते हुए और दूसरा अमर सागर और लुद्रवा होते हुए। पिछली यात्रा में मैं कुलधरा और खाब किला होते हुए सम सैंड ड्यूंस गया था तो इस बार दूसरे रास्ते से सम गाँव तक जाने का प्लान बनाया।

बड़ा बाग

सबसे पहले हमने 600 रुपए में एक दिन के लिए स्कूटी किराए पर ली और चले पड़े बड़ा बाघ की ओर। बड़ा बाघ जैसलमेर शहर से 13 किमी. की दूरी पर है। कुछ ही देर में हम बड़ा बाग पहुँच गए। बड़ा बाग के अंदर जाने का टिकट 150 रुपए है। टिकट लेकर हम बड़ा बाग के गेट पर पहुँच गए। बड़ा बाग जैसलमेर का एक बहुत बड़ा पार्क है जो अपने शाही स्मारकों या छतरियों के लिए प्रसिद्ध है। बड़ा बाग राजा-रानियों का एक श्मशान घाट रहा है जहाँ बाद में छतरियों का निर्माण करवाया गया है।

बड़ा बाग में बहुत सारी छतरियाँ बनी हुई हैं लेकिन इस छतरियों की पहचान करना मुश्किल है क्योंकि छतरियों के आगे लिखा नहीं है कि ये किस राजा और रानी की छतरी है। अगर आप अपने साथ गाइड रखते हैं तो वो आपको हर छतरी के बारे में आराम से बता देंगे। मैंने भी कोई गाइड नहीं लिया इसलिए मुझे भी नहीं पता कि ये किस-किसकी छतरियाँ हैं। पीले पत्थर से बनी इन छतरियों की नक्काशी बहुत खूबसूरत है। कुछ छतरियाँ पहाड़ियों पर स्थित हैं और कुछ छतरियाँ नीचे बनी हुई हैं।

अमर सागर

बड़ा बाग को देखने के बाद हम अमर सागर की ओर निकल पड़े। बड़ा बाग से जैसलमेरी की तरफ जाने पर एक रास्ता दायीं ओर जाता है। कई गाँवों से होते हुए हम अमर सागर पहुँच गए। हमें ये देखकर बड़ा ताज्जुब हुआ कि अमर सागर में कोई पानी नहीं था। यहाँ सिर्फ खाली जमीन बंजर पड़ी हुई थी। अमर सागर के पास में एक जैन मंदिर था। मंदिर अंदर से बंद था तो हम मंदिर को देखे बिना सम सैंड ड्यूंस की तरफ चल पड़े। जैसलमेर की इन रास्तों में कई बार ऐसा मौका आता है जब आपको दूर-दूर तक कोई नहीं मिलता है।

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हम अब लुद्रवा गाँव के रास्ते पर चल रहे थे। लुद्रवा गाँव में एक बेहद प्राचीन मंदिर है। दूर-दूर तक हमें कोई नहीं दिखाई दे रहा था और रोड के दोनों तरफ बंजर था। मन में ऐसा ख्याल तो आ रहा था कि कहीं हम गलत रास्ते पर तो नहीं जा रहे हैं। बड़ी देर बाद रास्ते में एक व्यक्ति मिला तो तसल्ली हुई हम सही रास्ते पर जा रहे हैं। कुछ देर बाद लुद्रवा गाँव के जैन मंदिर के बाहर खड़े थे। जैन मंदिर को देखने का कोई टिकट नहीं है लेकिन फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी का टिकट 50 रुपए है। ये मंदिर जैसलमेर के जैन मंदिर के तरह ही बना हुआ लेकिन ये कुछ बड़ा है और नक्काशी तो देखने लायक है।

रेगिस्तान में कैंपिंग

लुद्रवा के जैन मंदिर को देखने के बाद हम फिर से सुनसान रास्ते पर चल पड़े। जैसलमेर के कई गाँवों से होते हुए हम सैंड ड्यूंस के मुख्य रोड पर पहुँच गए। कुछ देर बाद रोड किनारे डेजर्ट कैंप में ठहरने के बोर्ड दिखने शुरू हो गए। हमें भी ऐसे ही किसी एक कैंप में ठहरना था। रास्ते में हम कुछ ढाबे दिखाई दिए तो हम ऐसे ही किसी एक रेस्टोरेंट में खाना खाने के लिए रूक गए। मैंने यहाँ राजस्थानी थाली का जायका लिया। इस थाली में खाने का मात्रा भी कम थी और रेट भी महंगा था। पर्यटन वाली जगहों पर सामान्य वस्तुएं भी महंगी मिलती है, ये तो फिर भी राजस्थानी थाली है।

अब यहाँ से सम सैंड ड्यूंस 19 किमी. की दूरी पर है। स्कूटी उठाकर हम फिर से अपने रास्ते पर चल पड़े। कुछ दूरी चलने के बाद कैंप शुरू हो गए। रास्ते में कई स्थानीय लोग मिले जो सस्ते में टेंट दिलाने की बात करते हैं लेकिन ऐसा होता नहीं है। एक स्थानीय व्यक्ति तो अपनी बाइक के साथ हमारे पीछे चल पड़ा और काफी मना करने के बाद वापस गया। हमारी तो पहले से बुकिंग थी इसलिए हम तो सीधे अपने कैंप में पहुँचे। यहाँ हमें रेगिस्तान में एक लग्जरी टेंट मिला। पहले भी मैं कई जगहों पर ऐसों कैंपिंग में रह चुका हूं लेकिन ये टेंट वाकई में शानदार था।

शाम के समय हम सफारी करने वाले थे। साथ में कैमल राइड भी पैकेज में शामिल है। शाम होने में थोड़ा वक्त था तो हमने कुछ देर आराम किया और फिर सफारी पर निकल पड़ा। सफारी में हम हवा से बातें कर रहे थे। अगर हम कुछ ना पकड़ते तो हम जमीन पर गिर जाते। हम बहुत उछल रहे थे। गाड़ी इतनी तेज थी कि हम सही से खड़े भी नहीं हो पा रहे थे। रेत में काफी उछल कूद होने के बाद एक जगह गाड़ी रूकी। यहाँ मैंने कैमल सफारी भी की। इसके अलावा आप यहाँ पैराग्लाइडिंग भी कर सकते हैं लेकिन वो हमारे पैकेज में नहीं था तो हमने पैराग्लाइडिंग नहीं की।

सनसेट और रात

हम काफी देर तक रेत के टीलों पर पैदल चलते रहे। थार रेगिस्तान को अपनी आंखों से देखना वाकई में एक सुंदर पल है। यहाँ का सूर्यास्त का नजारा देखकर आप खुश हो उठेंगे। ऐसी सुंदर लालिमा बहुत कम जगहों पर देखने को मिलती है। इस नजारे को देखने के बाद कुछ देर और हम यहाँ रहे। हम जिस गाड़ी से आए थे, उसी गाड़ी से अपने कैंप की ओर चल पड़े। कैंप में रात में कई घंटों तक सांस्कृतिक कार्यक्रम हुआ। इस सांस्कृतिक कार्यक्रम में लोकल संगीत और स्थानीय नृत्य भी देखने को मिलता है। खाना खाने के बाद अब हमने टेंट में आ गए। बिस्तर पर लेटते ही हम नींद की आगोश में कब आ गए। हमें खुद पता नहीं चला।

अगले दिन सुबह उठकर हमें सनराइज देखना था लेकिन नींद नहीं खुली। जब उठे तो काफी देर हो चुकी थी। फिर करने को क्या ही था? तैयार हुए और नाश्ता किया। इस शानदार डेजर्ट कैंप को अलविदा कहकर जैसलमेर की ओर निकल पड़े। जैसलमेर की इस यात्रा ने हमारी राजस्थान यात्रा को और शानदार बना दिया। इस जगह पर आकर अनुभव होता है कि राजस्थान वाकई में वैभवता का एक प्रतीक है।


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Sunday, 18 December 2022

स्वर्ण नगरी जैसलमेर में मेरा पहला दिन: सोनार किला, पटवों की हवेली और गड़ीसर लेक

राजस्थान गौरवशाली इतिहास और वैभवता का प्रतीक है। यहाँ का हर शहर अपनी एक अलग खासियत और खूबसूरती लिए हुए है। मैं राजस्थान की एक लंबी यात्रा पर निकल चुका था। राजस्थान की राजधानी जयपुर से शुरू हुई ये यात्रा जोधपुर से होकर बीकानेर पहुँच गई। अब मुझे राजस्थान के एक और खूबसूरत शहर की ओर निकलना था। राजस्थान की इस जगह का नाम है, जैसलमेर।

बीकानेर में दो दिन घूमने के बाद रात को मैं बीकानेर में अपने होटल से सामान उठाकर रेलवे स्टेशन की तरफ निकल पड़ा। होटल से रेलवे स्टेशन पहुँचने में सिर्फ 5 मिनट का समय लगा। बीकानेर रेलवे स्टेशन पर ट्रेन अपने सही समय पर पहुँची। हमने अपनी सीट पकड़ ली और कुछ ही देर में ट्रेन चल पड़ी। रात के अंधेरे में कुछ बाहर का तो दिखना नहीं था इसलिए मैं नींद की आगोश में चला गया। सुबह के 4 बजे जब आंख खुली तो ट्रेन जैसलमेर रेलवे स्टेशन पर पहुँच चुकी थी।

जैसलमेर

मैं दूसरी बार राजस्थान के जैसलमेर की धरती पर कदम रख रहा था। मैं ट्रेन के अंदर अपना सामान समेट रहा था और लोग होटल के लिए अपना कार्ड लेकर अंदर आ रहे थे लेकिन मेरी होटल के लिए कहीं और बात हो चुकी थी। इसी तरह एक आदमी और अंदर आया और उसने भी सस्ते में कमरा दिलाने की बात कही। मैंने जब उसे बताया कि मेरी कहीं बात हो चुकी तो उसने कहा कि ठीक है, मैं वहाँ छोड़ देता हूं मेरे पास टैक्सी भी है। चलते-चलते उसने होटल का नाम और एड्रेस भी पता किया। इसके बाद मुझे बहलाने लगा कि मैं सस्ता और अच्छा होटल दूंगा। इसके अलावा वो फर्जी पैसा लगकर ठगी कर लेगा। मैंने जब मना कर दिया तो उसने कहा कि मेरी पास कोई टैक्सी नहीं है, दूसरी टैक्सी ले लो।

इसके बाद मैंने दूसरी ऑटो ली और होटल की तरफ चल पड़ा। हमारी ऑटो जैसलमेर की गलियों में चलती जा रही थी। कुछ देर में हमारी टैक्सी किले के पीछे पार्किंग में पहुँची। होटल का नाम है, डेजर्ट गोल्ड। मैंने एक सस्ता सा कमरा लिया जो रूकने के लिए बढ़िया है। अब कुछ देर मुझे आराम करना था। एक बार फिर से मैं नींद की आगोश में था। कुछ घंटे आराम करने के बाद सुबह 8 बजे उठा और फिर जैसलमेर को एक्सप्लोर करने के लिए तैयार हो गया।

सोनार किला

जैसलमेर की स्थापना राव जैसल ने की थी। उन्हीं के नाम पर इस जगह का नाम जैसलमेर रखा गया है। हम पैदल-पैदल किले की तरफ चल पड़े। किले के सामान एक ठेले पर हमने दाल-पकवान खाया। इस स्वादिष्ट दाल पकवान का स्वाद लेकर जैसलमेर की यात्रा एकदम शानदार तरीके से शुरू हो गई। जैसलमेर किले को घूमने के लिए हमने एक गाइड भी कर लिया। कुछ देर में हम किले के अंदर थे।

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जैसलमेर का किला दुनिया के सबसे विशालतम किलों में से एक है। 1156 में भाटी राजपूत शासक राव जैसल द्वारा बनवाया गया था। इस किले को सोने का किला भी कहा जाता है। जैसलमेर का किला एक विश्व विरासत स्थल है। सोनार किला जमीन से 250 फीट की ऊंचाई पर एक पहाड़ी पर स्थित है। ये किला 1500 फुट लंबा और 750 फीट चौड़ा है। किले के चार प्रवेश द्वार है। इस किले के अंदर 5000 से ज्यादा लोग रहते हैं। किले के अंदर लोगों के घर, दुकानें, होटल और हॉस्टल भी हैं।

जैन मंदिर

जैसलमेर किले के अंदर पहुँचने के बाद हम सबसे पहले राजा-रानी महल के पास पहुँचे लेकिन हमने पहले जैन मंदिर जाने का तय किया। किले की गलियों में कुछ देर चलने के बाद हम जैन मंदिर पहुँच गए। जैसलमेर किले के अंदर 8 जैन मंदिर है। जैन मंदिर में जाने का टिकट नहीं है लेकिन फोटो और वीडियोग्राफी का टिकट 50 रुपए है। हमने टिकट लिया और जैन मंदिर के अंदर चल पड़े। पार्श्वनाथ मंदिर के अंदर की नक्काशी बेहद शानदार है। इसी तरह हमने सभी जैन मंदिर को देखा। सभी जैन मंदिर वाकई में बेहद सुंदर और देखने लायक हैं।

जैन मंदिरों को देखने के बाद हम फिर से किले की गलियों से गुजर रहे थे। इन गलियों मे बहुत सारी दुकानें हैं जहाँ आप अपने लिए कुछ खरीद सकते हैं। कुछ देर हम राजा महल के अंदर पहुँचे। राजा-रानी महल हमने टिकट लिया। हमने टिकट काउंटर से 50 रुपए का टिकट लिया और फिर किले को देखने के लिए निकल पड़ा। किले के अंदर मैंने जैससेमर किले के अलग-अलग महलों को देखा। इसके अलावा जैसलमेर के राजाओं के बारे में जानकारी दी गई और उस समय के हथियारों को भी देखा। जैसलमेर किले को पूरा देखने में काफी समय लग गया। लगभग 2 घंटे बाद मैं किले से बाहर निकला।

पटवों की हवेली

जैसलमेर किले को देखने के बाद अब हमें पटवों की हवेली की ओर जाना था। हम पैदल-पैदल ही पटवों की हवेली पहुँच गए। पटवों की हवेली का निर्माण गुमान चंद पटवा ने किया था। पटवों की हवेली एक नहीं बल्कि पांच हवेलियों का एक समूह है। टिकट लेकर मैं कोठारी हवेली को देखने के लिए निकल पड़ा। इस समय ये हवेली भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अंतर्गत आती है। पटवों की हवेली के अंदर एक संग्रहालय है जिसमें आप समय के सामान, बर्तन, चित्रकारी और नक्काशी को देख सकते हैं।

पटवों की हवेली को देखने के बाद अब हमें कुछ और जगहों पर जाना था लेकिन सबसे पहले खाना खाना था। दाल पकवान के अलावा हमने कुछ नहीं खाया था। अब हम खाने की खोज में निकल पड़े। हम किले के पास में ही एक होटल में गए और हमने वहाँ शानदार खाना खाया। खाना खाने के बाद हम अपने कमरे में आ गए। अब हम कुछ घंटे आराम करने वाले थे। शाम को हम फिर से एक बार जैसलमेर की गलियों में थे।

गड़ीसर लेक

जैसलमेर की गलियों में चलते हुए हम रोड पर गए और फिर पहुँचे गडीसर लेक। गडीसर लेक रेगिस्तान में पानी का अथाह समुंदर है। गड़ीसर झील का निर्माण 13वीं शताब्दी में राव जैसल द्वारा करवाया गया था। इस लेक को क्षेत्र के सूखे को खत्म करने के लिए बनवाया गया था। बाद में जैसलमेर के मेहरावल गड़सी सिंह ने इस तालाब का जीर्णोद्धार करवाया। बाद में इस झील का नाम उन्हीं के नाम पर गड़ीसर लेक रखा गया।

गड़ीसर झील में आप बोटिंग कर सकते हैं। इसके अलावा शाम को सूर्यास्त के बाद जब बादल लाल हो जाता है तो ये झील और भी खूबसूरत हो जाती है। मैंने वो नजारा देखा तो लगा कि वक्त वहीं रूक जाए और ये नजारा ऐसे ही बना रहे। थोड़ी देर में एक जगह लोगों की भीड़ जमा हो गई। अंधेरा होने के बाद पहले फव्वारा चला और फिर उसी फव्वारे पर लाइट एंड साउंड शो शुरू हो गया। हम थोड़ी देर बाद एक रेस्टोरेंट में गए और वहाँ राजस्थानी थाली का स्वाद लिया। इस तरह मेरी जैसलमेर की यात्रा पूरी हुई। इस दिन जैसलमेर शहर की कई जगहों को मैंने अच्छे से देखा। अभी तो जैसलमेर के सबसे अच्छे दिन और अनुभव से गुजरना था।

Monday, 12 December 2022

राजस्थान के खूबसूरत शहर बीकानेर की दो दिन की यात्रा

राजस्थान में कुछ शहर ऐसे हैं जहाँ लोगों की भीड़ बनी रहती है तो कुछ शहर ऐसे भी हैं जहाँ कम लोग ही घूमने जाते हैं। राजस्थान का बीकानेर ऐसा ही शहर है जहाँ घूमने वाले कम लोग मिलेंगे। इस छोटे-से शहर की अपनी एक अलग कहानी और खूबी है। जोधपुर में दो दिन घूमने के बाद अगले दिन सुबह 7 बजे बीकानेर की ट्रेन ले ली और इस तरह से मेरी राजस्थान के एक और शहर की यात्रा शुरू हो गई।

ट्रेन अपनी रफ्तार से बढ़ रही थी। खिड़की से कभी खेत दिखते तो अपनी रेत भी दिखाई देते। ट्रेन से ऐसे नजारे पहली बार देख रहा था। लगभग 12 बजे ट्रेन बीकानेर पहुँची। हम अपना बैग उठाकर रेलवे स्टेशन से बाहर निकल आए। हमने रेलवे स्टेशन के पास में एक होटल ले लिया। मैं सुबह से कुछ खाया नहीं था तो पास में बने एक रेस्टोरेंट में कुछ खा लिया और फिर बीकानेर को एक्सप्लोर करने के लिए निकल पड़े।

बीकानेर

रेलवे स्टेशन से जूनागढ़ किला 2 किमी. की दूरी पर है। हम पैदल-पैदल ही जूनागढ़ किले की तरफ चल पड़े। बीकानेर का एक इतिहास भी है। जोधपुर के राजा राव जोधा के बेटे राव बीकाजी ने बीकानेर की स्थापना की। कहा जाता है कि अपने पिता से नाराज होकर राव बीकाजी चलते-चलते जांगल प्रदेश नाम की जगह पर पहुँचे। यहीं पर उन्होंने एक नए राज्य की स्थापना की, बीकानेर।

बीकानेर में चलते-चलते ये तो समझ आ रहा था कि शहर छोटा है लेकिन आसपास के क्षेत्र का पूरा बाजार यहीं पर लगता है। बड़ी संख्या में ग्रामीण लोग दिखाई दे रहे थे। थोड़ी देर में हम जूनागढ़ किले में पहुँच गए। कई ऊंचे-ऊंचे दरवाजों को पार करने के बाद हम उस जगह पर पहुँचे, जहाँ टिकट मिल रहा था। किले के परिसर में प्राचीना म्यूजियम भी है। हमने दोनों जगहों का टिकट ले लिया।
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जूनागढ़ किला

जूनागढ़ किले के निर्माण की शुरुआत 1478 में राव बीकाजी द्वार की गई। पहले यह चट्टान का बना एक किला हुआ करता था। कई राजाओं ने इस किले को बनवाया। आखिर में राजा राय सिंह ने 1589 में किले का निर्माण करवाया और 1594 में किला बनकर तैयार हुआ। पहले मुझे लगा कि किला छोटा-सा होगा लेकिन किला काफी सुंदर और बड़ा है। इस किले की वास्तुकला में राजपूत शैली, मुगल शैली और राजस्थान शैली का मिश्रण है।

जूनागढ़ किले के अंदर कई सारे महल हैं, करण महल, फूल महल, अनूप महल, चन्द्र महल, गंगा महल और बादल महल। कुछ महल के दरवाजों पर ताला भी लगा हुआ था। इन सभी महलों की वास्तुकला अलग-अलग है क्योंकि इन सभी को अलग-अलग राजाओं ने बनवाया था। किले को देखने के बाद हम प्राचीना म्यूजियम को देखने के लिए चल पड़े। इस म्यूजियम में बीकानेर के राजाओं के पोशाकें, बर्तन, तलवारें और उनके चित्र लगे हुए थे।

पहले दिन का खर्च: 1705 रुपए

ऑटो        :  230 रुपए

खाने का खर्च :  325 रुपए

होटल             :    800 रुपए

टिकट       :  350 रुपए

स्ट्रीट फूड

सुबह-सुबह जल्दी उठे थे और लंबी यात्रा के बाद बीकानेर पहुँचे थे। जूनागढ़ किले को घूमने के बाद काफी थकावट महसूस हो रही थी। किले को एक्सप्लोर करने के बाद हम कमरे पर आकर सो गए। उस दिन हम बीकानेर की किसी और जगह पर नहीं गए। अगले दिन सुबह उठे और एक नई जगह पर जाने के लिए तैयार हो गए। हमने एक किले के पास की एक दुकान से स्कूटी किराए पर ली और फिर बीकानेर की गलियों में चल पड़ा। हम सबसे पहले पहुँचा बड़ा बाजार।

हम बड़ा बाजार क्षेत्र में सबसे पहले जुनिया महाराज की दुकान पर पहुँचे। इस दुकान की कचौरी पकौड़ी बहुत मशहूर है। मुझे कचौड़ी इतनी अच्छी लगी कि मैं एक साथ दो प्लेर खा गया। उसके बाद बृज महाराज की दुकान पर गर्म-गर्म जलेबी खाई। इसके बाद हम देशनोक की तरफ निकल पड़े। बीकानेर से देशनोक की दूरी 30 किमी. है। हमारे गाड़ी हाइवे पर बढ़ती जा रही थी। लगभग पौने घंटे के बाद हम देशनोक पहुँच गए।

करणी माता मंदिर

देशनोक में काफी प्राचीन करणी माता मंदिर है। करणी माता मंदिर का निर्माण बीकानेर के राजा गंगा सिंह ने करवाया था। इस मंदिर की वास्तुकला में राजपुताना और मुगल शैली की झलक देखने को मिलती है। करणी माता मंदिर विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर है जिसमें चूहों की पूजा होती है। कहा जाता है कि चूहे करणी माता के वंशज हैं। इस मंदिर में 25 हजार से ज्यादा की संख्या में चूहे रहते हैं।

आप जब मंदिर को घूम रहे होंगे तो कदम-कदम पर चूहे देखने को मिलेंगे। यहाँ लोग चूहों को दूध पिलाते हैं और चने खिलाते हैं। मंदिर के अंदर करणी माता की मूर्ति है साथ में उनकी बहनों की भी मूर्ति स्थापित है। करणी माता को दुर्गा का साक्षात अवतार माना जाता है। मंदिर के सामने एक संग्रहालय भी है जिसका टिकट सिर्फ 5 रुपए है। इस म्यजियम में करणी माता का पूरा जीवन चित्रों के माध्यम से बताया गया है।

रामपुरिया हवेली

करणी माता मंदिर को देखने के बाद हम वापस बीकानेर लौट आए। बीकानेर में हम सबसे पहले रामपुरिया हवेली पहुँचे। रामपुरिया हवेली एक बड़ी-सी हवेली है जिसको हम और आप बाहर से ही देख सकते हैं। इस हवेली का इतिहास भी काफी दिलचस्प है। 1920 में महाराजा गंगा सिंह गंग नहर का निर्माण करवा रहे थे ताकि लोगों को खेती के लिए पानी मिल सके। नहर के निर्माण में काफी पैसा खर्च हो रहा था। तब उन्होंने भंवर लाल रामपुरिया नाम के उद्योगपति से पैसे मांगे और बदले में ये हवेली उनको दे दी।
1925 में ये हवेली बनकर तैयार हुई। आज हम उसी परिवार के नाम से इस हवेली को जानते हैं। लाल बलुआ पत्थर से बनी ये हवेली कला का उत्कृष्ट नमूना है। बीकानेर की इस हवेली का बीकानेर का गौरव भी कहा जाता है। हर घूमने वाला व्यक्ति बीकानेर की इस हवेली को देखने के लिए आता है। रामपुरिया हवेली को देखने के बाद हम चल पड़े लालगढ़ पैलेस की तरफ। लालगढ़ पैलेस और लक्ष्मी निवास पैलेस पास में ही स्थित हैं। जब उनके पास गए तो दोनों शानदार पैलेस को हेरिटेज होटल में तब्दील कर दिया है।

दूसरे दिन का खर्च: 2030 रुपए

स्कूटी           :  400 रुपए

पेट्रोल             : 250 रुपए

ऑटो               : 80 रुपए

खाने का खर्च   : 320 रुपए

टिकट               : 180 रुपए

होटल         :  800 रुपए

इस वजह से लालगढ़ पैलेस और लक्ष्मी निवास पैलेस को हम नहीं देख पाए। पैलेस के पास में एक म्यूजियम जरूर देखने को मिला। जिसको हमने शानदार तरीके से देखा। म्यूजियम छोटा था लेकिन जानकारियों से भरा रहा। इस तरह हमारी बीकानेर की छोटी-सी यात्रा पूरी हुई। हम बीकानेर की कुछ और जगहों को देखना चाहते थे लेकिन समय की कमी की वजह से उन जगहों पर नहीं जा पाए। कभी बीकानेर जाना हुआ तो उन जगहों पर जाया जाएगा। अब मुझे फिर से राजस्थान के एक खूबसूरत शहर की ओर निकलना था।

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