राजस्थान की स्वर्ण नगरी जैसलमेर में मेरा पहला दिन शानदार तरीके से बीता। मैंने जैसलमेर का सोनार किला, जैन मंदिर, पटवा हवेली और गड़ीसर लेक देखी। अब हमें जैसलमेर की कुछ और जगहों को एक्सप्लोर करना था। जैसलमेर राजस्थान की वो जगह है जहाँ चारों तरफ देखने के लिए कुछ ना कुछ है। जैसलमेर में दूसरे दिन हमने सभी जगहें तो नहीं लेकिन कुछ जगहों को तो देखने का मन बना ही लिया।
जैसलमेर से भारत-पाकिस्तान का बॉर्डर लगभग 150 किमी. की दूरी पर है। पहले मैंने बार्डर तक जाने का प्लान बनाया लेकिन वहाँ तक जाने के लिए स्कूटी का खर्चा कुछ ज्यादा ही आ रहा था इसलिए हमें सम सैंड ड्यूंस में कैंपिंग करने का तय किया। सम सैंड ड्यूंस जैसलमेर से 60 किमी. की दूरी पर है। यहाँ तक पहुँचने के दो रास्ते हैं, पहला कुलधरा और खाब किला होते हुए और दूसरा अमर सागर और लुद्रवा होते हुए। पिछली यात्रा में मैं कुलधरा और खाब किला होते हुए सम सैंड ड्यूंस गया था तो इस बार दूसरे रास्ते से सम गाँव तक जाने का प्लान बनाया।बड़ा बाग
बड़ा बाग में बहुत सारी छतरियाँ बनी हुई हैं लेकिन इस छतरियों की पहचान करना मुश्किल है क्योंकि छतरियों के आगे लिखा नहीं है कि ये किस राजा और रानी की छतरी है। अगर आप अपने साथ गाइड रखते हैं तो वो आपको हर छतरी के बारे में आराम से बता देंगे। मैंने भी कोई गाइड नहीं लिया इसलिए मुझे भी नहीं पता कि ये किस-किसकी छतरियाँ हैं। पीले पत्थर से बनी इन छतरियों की नक्काशी बहुत खूबसूरत है। कुछ छतरियाँ पहाड़ियों पर स्थित हैं और कुछ छतरियाँ नीचे बनी हुई हैं।
अमर सागर
हम अब लुद्रवा गाँव के रास्ते पर चल रहे थे। लुद्रवा गाँव में एक बेहद प्राचीन मंदिर है। दूर-दूर तक हमें कोई नहीं दिखाई दे रहा था और रोड के दोनों तरफ बंजर था। मन में ऐसा ख्याल तो आ रहा था कि कहीं हम गलत रास्ते पर तो नहीं जा रहे हैं। बड़ी देर बाद रास्ते में एक व्यक्ति मिला तो तसल्ली हुई हम सही रास्ते पर जा रहे हैं। कुछ देर बाद लुद्रवा गाँव के जैन मंदिर के बाहर खड़े थे। जैन मंदिर को देखने का कोई टिकट नहीं है लेकिन फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी का टिकट 50 रुपए है। ये मंदिर जैसलमेर के जैन मंदिर के तरह ही बना हुआ लेकिन ये कुछ बड़ा है और नक्काशी तो देखने लायक है।
रेगिस्तान में कैंपिंग
शाम के समय हम सफारी करने वाले थे। साथ में कैमल राइड भी पैकेज में शामिल है। शाम होने में थोड़ा वक्त था तो हमने कुछ देर आराम किया और फिर सफारी पर निकल पड़ा। सफारी में हम हवा से बातें कर रहे थे। अगर हम कुछ ना पकड़ते तो हम जमीन पर गिर जाते। हम बहुत उछल रहे थे। गाड़ी इतनी तेज थी कि हम सही से खड़े भी नहीं हो पा रहे थे। रेत में काफी उछल कूद होने के बाद एक जगह गाड़ी रूकी। यहाँ मैंने कैमल सफारी भी की। इसके अलावा आप यहाँ पैराग्लाइडिंग भी कर सकते हैं लेकिन वो हमारे पैकेज में नहीं था तो हमने पैराग्लाइडिंग नहीं की।
सनसेट और रात
अगले दिन सुबह उठकर हमें सनराइज देखना था लेकिन नींद नहीं खुली। जब उठे तो काफी देर हो चुकी थी। फिर करने को क्या ही था? तैयार हुए और नाश्ता किया। इस शानदार डेजर्ट कैंप को अलविदा कहकर जैसलमेर की ओर निकल पड़े। जैसलमेर की इस यात्रा ने हमारी राजस्थान यात्रा को और शानदार बना दिया। इस जगह पर आकर अनुभव होता है कि राजस्थान वाकई में वैभवता का एक प्रतीक है।
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