Monday, 12 December 2022

राजस्थान के खूबसूरत शहर बीकानेर की दो दिन की यात्रा

राजस्थान में कुछ शहर ऐसे हैं जहाँ लोगों की भीड़ बनी रहती है तो कुछ शहर ऐसे भी हैं जहाँ कम लोग ही घूमने जाते हैं। राजस्थान का बीकानेर ऐसा ही शहर है जहाँ घूमने वाले कम लोग मिलेंगे। इस छोटे-से शहर की अपनी एक अलग कहानी और खूबी है। जोधपुर में दो दिन घूमने के बाद अगले दिन सुबह 7 बजे बीकानेर की ट्रेन ले ली और इस तरह से मेरी राजस्थान के एक और शहर की यात्रा शुरू हो गई।

ट्रेन अपनी रफ्तार से बढ़ रही थी। खिड़की से कभी खेत दिखते तो अपनी रेत भी दिखाई देते। ट्रेन से ऐसे नजारे पहली बार देख रहा था। लगभग 12 बजे ट्रेन बीकानेर पहुँची। हम अपना बैग उठाकर रेलवे स्टेशन से बाहर निकल आए। हमने रेलवे स्टेशन के पास में एक होटल ले लिया। मैं सुबह से कुछ खाया नहीं था तो पास में बने एक रेस्टोरेंट में कुछ खा लिया और फिर बीकानेर को एक्सप्लोर करने के लिए निकल पड़े।

बीकानेर

रेलवे स्टेशन से जूनागढ़ किला 2 किमी. की दूरी पर है। हम पैदल-पैदल ही जूनागढ़ किले की तरफ चल पड़े। बीकानेर का एक इतिहास भी है। जोधपुर के राजा राव जोधा के बेटे राव बीकाजी ने बीकानेर की स्थापना की। कहा जाता है कि अपने पिता से नाराज होकर राव बीकाजी चलते-चलते जांगल प्रदेश नाम की जगह पर पहुँचे। यहीं पर उन्होंने एक नए राज्य की स्थापना की, बीकानेर।

बीकानेर में चलते-चलते ये तो समझ आ रहा था कि शहर छोटा है लेकिन आसपास के क्षेत्र का पूरा बाजार यहीं पर लगता है। बड़ी संख्या में ग्रामीण लोग दिखाई दे रहे थे। थोड़ी देर में हम जूनागढ़ किले में पहुँच गए। कई ऊंचे-ऊंचे दरवाजों को पार करने के बाद हम उस जगह पर पहुँचे, जहाँ टिकट मिल रहा था। किले के परिसर में प्राचीना म्यूजियम भी है। हमने दोनों जगहों का टिकट ले लिया।
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जूनागढ़ किला

जूनागढ़ किले के निर्माण की शुरुआत 1478 में राव बीकाजी द्वार की गई। पहले यह चट्टान का बना एक किला हुआ करता था। कई राजाओं ने इस किले को बनवाया। आखिर में राजा राय सिंह ने 1589 में किले का निर्माण करवाया और 1594 में किला बनकर तैयार हुआ। पहले मुझे लगा कि किला छोटा-सा होगा लेकिन किला काफी सुंदर और बड़ा है। इस किले की वास्तुकला में राजपूत शैली, मुगल शैली और राजस्थान शैली का मिश्रण है।

जूनागढ़ किले के अंदर कई सारे महल हैं, करण महल, फूल महल, अनूप महल, चन्द्र महल, गंगा महल और बादल महल। कुछ महल के दरवाजों पर ताला भी लगा हुआ था। इन सभी महलों की वास्तुकला अलग-अलग है क्योंकि इन सभी को अलग-अलग राजाओं ने बनवाया था। किले को देखने के बाद हम प्राचीना म्यूजियम को देखने के लिए चल पड़े। इस म्यूजियम में बीकानेर के राजाओं के पोशाकें, बर्तन, तलवारें और उनके चित्र लगे हुए थे।

पहले दिन का खर्च: 1705 रुपए

ऑटो        :  230 रुपए

खाने का खर्च :  325 रुपए

होटल             :    800 रुपए

टिकट       :  350 रुपए

स्ट्रीट फूड

सुबह-सुबह जल्दी उठे थे और लंबी यात्रा के बाद बीकानेर पहुँचे थे। जूनागढ़ किले को घूमने के बाद काफी थकावट महसूस हो रही थी। किले को एक्सप्लोर करने के बाद हम कमरे पर आकर सो गए। उस दिन हम बीकानेर की किसी और जगह पर नहीं गए। अगले दिन सुबह उठे और एक नई जगह पर जाने के लिए तैयार हो गए। हमने एक किले के पास की एक दुकान से स्कूटी किराए पर ली और फिर बीकानेर की गलियों में चल पड़ा। हम सबसे पहले पहुँचा बड़ा बाजार।

हम बड़ा बाजार क्षेत्र में सबसे पहले जुनिया महाराज की दुकान पर पहुँचे। इस दुकान की कचौरी पकौड़ी बहुत मशहूर है। मुझे कचौड़ी इतनी अच्छी लगी कि मैं एक साथ दो प्लेर खा गया। उसके बाद बृज महाराज की दुकान पर गर्म-गर्म जलेबी खाई। इसके बाद हम देशनोक की तरफ निकल पड़े। बीकानेर से देशनोक की दूरी 30 किमी. है। हमारे गाड़ी हाइवे पर बढ़ती जा रही थी। लगभग पौने घंटे के बाद हम देशनोक पहुँच गए।

करणी माता मंदिर

देशनोक में काफी प्राचीन करणी माता मंदिर है। करणी माता मंदिर का निर्माण बीकानेर के राजा गंगा सिंह ने करवाया था। इस मंदिर की वास्तुकला में राजपुताना और मुगल शैली की झलक देखने को मिलती है। करणी माता मंदिर विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर है जिसमें चूहों की पूजा होती है। कहा जाता है कि चूहे करणी माता के वंशज हैं। इस मंदिर में 25 हजार से ज्यादा की संख्या में चूहे रहते हैं।

आप जब मंदिर को घूम रहे होंगे तो कदम-कदम पर चूहे देखने को मिलेंगे। यहाँ लोग चूहों को दूध पिलाते हैं और चने खिलाते हैं। मंदिर के अंदर करणी माता की मूर्ति है साथ में उनकी बहनों की भी मूर्ति स्थापित है। करणी माता को दुर्गा का साक्षात अवतार माना जाता है। मंदिर के सामने एक संग्रहालय भी है जिसका टिकट सिर्फ 5 रुपए है। इस म्यजियम में करणी माता का पूरा जीवन चित्रों के माध्यम से बताया गया है।

रामपुरिया हवेली

करणी माता मंदिर को देखने के बाद हम वापस बीकानेर लौट आए। बीकानेर में हम सबसे पहले रामपुरिया हवेली पहुँचे। रामपुरिया हवेली एक बड़ी-सी हवेली है जिसको हम और आप बाहर से ही देख सकते हैं। इस हवेली का इतिहास भी काफी दिलचस्प है। 1920 में महाराजा गंगा सिंह गंग नहर का निर्माण करवा रहे थे ताकि लोगों को खेती के लिए पानी मिल सके। नहर के निर्माण में काफी पैसा खर्च हो रहा था। तब उन्होंने भंवर लाल रामपुरिया नाम के उद्योगपति से पैसे मांगे और बदले में ये हवेली उनको दे दी।
1925 में ये हवेली बनकर तैयार हुई। आज हम उसी परिवार के नाम से इस हवेली को जानते हैं। लाल बलुआ पत्थर से बनी ये हवेली कला का उत्कृष्ट नमूना है। बीकानेर की इस हवेली का बीकानेर का गौरव भी कहा जाता है। हर घूमने वाला व्यक्ति बीकानेर की इस हवेली को देखने के लिए आता है। रामपुरिया हवेली को देखने के बाद हम चल पड़े लालगढ़ पैलेस की तरफ। लालगढ़ पैलेस और लक्ष्मी निवास पैलेस पास में ही स्थित हैं। जब उनके पास गए तो दोनों शानदार पैलेस को हेरिटेज होटल में तब्दील कर दिया है।

दूसरे दिन का खर्च: 2030 रुपए

स्कूटी           :  400 रुपए

पेट्रोल             : 250 रुपए

ऑटो               : 80 रुपए

खाने का खर्च   : 320 रुपए

टिकट               : 180 रुपए

होटल         :  800 रुपए

इस वजह से लालगढ़ पैलेस और लक्ष्मी निवास पैलेस को हम नहीं देख पाए। पैलेस के पास में एक म्यूजियम जरूर देखने को मिला। जिसको हमने शानदार तरीके से देखा। म्यूजियम छोटा था लेकिन जानकारियों से भरा रहा। इस तरह हमारी बीकानेर की छोटी-सी यात्रा पूरी हुई। हम बीकानेर की कुछ और जगहों को देखना चाहते थे लेकिन समय की कमी की वजह से उन जगहों पर नहीं जा पाए। कभी बीकानेर जाना हुआ तो उन जगहों पर जाया जाएगा। अब मुझे फिर से राजस्थान के एक खूबसूरत शहर की ओर निकलना था।

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Saturday, 10 December 2022

जोधपुर और दो दिन: राजस्थान के खूबसूरत ब्लू सिटी की बजट ट्रिप

राजस्थान का हर शहर की अपनी अलग खासियत है। मैंने राजस्थान के कुछ शहरों को पहले एक्सप्लोर किया है लेकिन जोधपुर पहली बार आया हूं। जोधपुर रेलवे स्टेशन से बाहर निकलकर हमने ऑटो लिया और किले के पास मे स्थित एक होटल में पहुँच गए। यहाँ हमें 500 रुपए का कमरा मिल गया। अब हमें जोधपुर को एक्सप्लोर करने के लिए निकलना था।

हमारे होटल की छत से पीछे की तरफ मेहरानगढ़ किला दिखाई दिया और दूर-दूर तक जोधपुर शहर दिखाई दे रहा है। थोड़ी देर बाद हम तैयार होकर पैदल-पैदल किले की तरफ बढ़ चले। जोधपुर के मेहरानगढ़ किले का निर्माण 1460 में राव जोधा ने करवाया था। ये किला शहर से 410 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। इस किले के 7 बड़े-बड़े गेट हैं। कुछ देर में हम मेहरानगढ़ किले के गेट पर पहुँच गए। सबसे पहले हमारे बैग की चेकिंग हुई।

मेहरानगढ़ किला

सबसे पहले टिकट काउंटर मिला। एक भारतीय व्यक्ति का टिकट 200 रुपए का है। अगर आपके पास स्टूडेंट आईडी है तो टिकट 100 रुपए का पड़ेगा। टिकट को लेकर मैं किले के अंदर चलने लगा। किले की बड़ी-बड़ी दीवारें देखकर मैं अचंभित था। मेहरानगढ़ किला भारत के सबसे विशालतम किलों में से एक है। थोड़ी देर में हम किले के म्यूजियम में पहुँच गए।
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इस म्यूजियम के अलग-अलग कमरों में प्राचीन सामान रखे हुए हैं। जिसमें पोशाक, चित्र और पालकियां भी हैं। यहीं पर श्रृंगार चौक भी है जहाँ राजा का राजतिलक किया जाता था। म्यूजियम को देखने के बाद मैंने फूल महल, विलास महल, रंग महल और खूबसूरत शीश महल देखे। हर महल की नक्काशी देखने लायक है और आप हर जगह कुछ देर जरूर ठहरना चाहेंगे। वीकेंड का दिन होने वजह से काफी भीड़ थी और कई स्कूलों के ग्रुप भी भ्रमण के लिए आए थे जिससे भीड़ कुछ ज्यादा ही हो गई थी।

नौचुकिया

लगभग 2 घंटे किले को देखने के बाद हम किले के परिसर में आ गए। हम किले के पीछे वाले गेट से बाहर निकले। हम नौचुकिया की तरफ जा रहे हैं। जोधपुर को ब्लू सिटी के नाम से जाना जाता है लेकिन असल में पूरा शहर ब्लू नहीं है नौचुकिया वाले इलाके में आपको ज्यादातर घर और दीवारें नीले रंग की मिलेंगी। कुछ देर में हम नौचुकिया पहुँच गए। यहाँ मैं कुछ देर नीले गलियों को खोजता रहा और साथ में घूमता रहा।

नौचुकिया में ही मैंने मिर्ची पकौड़ा और कचौड़ी का स्वाद लिया। मिर्ची पकौड़ा तो एकदम लजीज रहा, ऐसा स्वादिष्ट मिर्ची पकौड़ा मैंने पहली बार खाया। पास में ही एक मिठाई की दुकान से मीठे का भी स्वाद लिया। इसके बाद ऑटो से जालौरी गेट तक आए। अब हमें यहाँ से जोधपुर के उम्मेद भवन पैलेस जाना है। मैंने काफी पता किया लेकिन कोई बस उम्मेद भवन की तरफ जा ही नहीं रही थी। अब हमें यहाँ से ऑटो बुक करके वहाँ तक जाना था जिसका खर्चा काफी ज्यादा आ गया। हमने एक ऑटो ली और चल पड़े उम्मेद भवन पैलेस की ओर।

उम्मेद भवन पैलेस

जोधपुर का उम्मेद भवन पैलेस अकाल को राहत देने के लिए बनवाया गया था। दरअसल जोधपुर में लगातार 3 साल तक सूखा पड़ा। जिससे लोग भुखमरी और बेरोजगार का शिकार होने लगे। तब लोगों ने तत्कालीन राजा से मदद मांगी। लोगों को रोजगार और मदद देने के लिए 1929 में महाराजा उम्मैद सिंह ने इस महल का निर्माण शुरू करवाया और 1943 में यह महल बनकर पूरा हुआ। इस पैलेस का का डिजाइन का काम हेनरी वॉन लानचेस्टर को सौंपा गया था।

थोड़ी देर में हम उम्मेद भवन पैलेस पहुँच गए। इसका सामान्य टिकट 60 रुपए का है। अगर पास स्टूडेंट आईडी है तो 30 रुपए का पड़ता। टिकट लेकर हम आगे बढ़ चले। उम्मेद भव पैलेस काफी बड़ा है लेकिन हम एक छोटा-सा हिस्सा ही घूम पाए क्योंकि ये पूरा तीन भागों में विभाजित है। रॉयल निवास, हेरिटेज होटल और संग्रहालय। रॉयल निवास, जहाँ महाराजा और उनका परिवार रहता है। हेरिटेज होटल में देश-विदेश से आए लोग किराया देकर यहाँ ठहरते हैं। म्यूजियम में आम लोग टिकट देकर घूम सकते हैं। इस म्यूजियम में काफी पुरानी-पुरानी पोशाकें, घड़ियां और चित्र प्रदर्शनी भी है।

घंटा घर

उम्मेद भवन पैलेस को देखने के बाद मैं वापस होटल लौट आया। कुछ देर कमरे पर आराम किया और रात में घंटा घर की तरफ निकल पड़ा। घंटा घर के आसपास सरदार मार्केट लगता है। यहाँ पर बड़ी संख्या में लोग बाजार करने के लिए आते हैं। यहीं पर श्री मिश्रीलाल नाम की एक दुकान है जो लगभग 90 साल से ज्यादा पुरानी है। यहाँ की मखनिया लस्सी काफी मशहूर है। मखनिया लस्सी के साथ हमने कचौड़ी भी खाई।

इसके बाद हम सरदार मार्केट से बाहर आ गए। यहाँ हमने एक ठेले से डोसा लिया और पास में एक दुकान से पत्ता कचौड़ी खाई। हम बाहर तो निकले थे खाना खाने के लिए लेकिन जोधपुर के स्ट्रीट फूड से हमारा पूरा पेट एकदम फुल हो गया। अब पेट में तो जगह नहीं थी तो हम कमरे की तरफ वापस चल पड़े। अब अगले दिन हमें जोधपुर की कुछ और जगहों को घूमना था।

जसवंत थड़ा



अगले दिन हम सुबह-सुबह तैयार हो गए। आज हमें सबसे पहले जसवंत थड़ा जाना था। जसवंत थड़ा किले के पास में ही है। हम जब किला देखने गए थे तब ही जसवंत थड़ा चले जाना चाहिए था लेकिन तब दिमाग में ही नहीं आया। तो पहले हम कल वाले रास्ते से किले के गेट तक पहुँचे और फिर किले के अंदर ना जाकर बाहर वाले रास्ते पर चलने लगे। कुछ देर बाद एक गेट आया और पहाड़ी पर एक मूर्ति देखने को मिली। ये मूर्ति जोधपुर की स्थापना करने वाले महाराजा राव जोधा की मूर्ति है।

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इस मूर्ति को देखने के बाद हम जसवंत थड़ा की तरफ बड़ गए। जसवंत थड़ा का टिकट 30 रुपए का है। टिकट लेने के बाद हम जसवंत थड़ा की ओर बढ़ चले। जसवंत थड़ा को मारवाड़ का ताजमहल भी कहा जाता है। जसवंत थड़ा में जोधपुर के राजपरिवारों के सदस्यों का अंतिम संस्कार होता है। यहाँ पर संगमरमरकी छतरियां और स्मारक बने हुए। जसवंत थड़ा को 1899 में महराज जसवंत सिंह द्वितीय की याद में महाराजा सरदार सिंह ने बनवाया था। जसवंत थड़ा के पास में ही एक सुंदर-सी झील है जो इस जगह की सुंदरता में चार चांद लगा देती है।

मंडोर गार्डन

इसके बाद अब हमें मंडोर गार्डन जाना था। मैंने फिर से ऑटो की और मंडोर गार्डन की तरफ चल पड़ा। मंडोर गार्डन जोधपुर से 9 किमी. की दूरी पर है। यहाँ पहुँचने में थोड़ा समय लगा। गार्डन के सामने एक होटल पर हमने कड़ी-कचौड़ी और मिर्ची पकौड़ा खाया और फिर मंडोर गार्डन को देखने के लिए निकल पड़े। पहले मंडोर ही इस इलाके की राजधानी हुआ करती थी। हजारों साल तक मारवाड़ों की राजधानी मंडोर रही। जोधपुर की स्थापना के बाद मंडोर से राजधानी जोधपुर पहुँच गई।

सबसे पहले हम देवल पहुँचे। यहाँ पर आकर मुझे लगा कि मैं खजुराहो के मंदिरों में आ गया। वैसे ही आकार में बने कई सारे स्मारक यहाँ पर हैं। सभी स्मारकों पर अलग-अलग राजाओं के बारे में लिखा भी है। देवल देखने के बाद आगे बढ़े तो थंबा महल देखने को मिला। आगे चलने पर हॉल ऑफ हीरोज, मंदिर और म्यूजियम भी। म्यूजियम का टिकट लेकर हम अंदर चले गए। मंडोर संग्रहालय बहुत बड़ा नहीं है तो कुछ ही समय में इसको घूम लिया। मंडोर गार्डन से निकलकर लोकल बस में बैठ गए। लगभग आधे घंटे बाद हम सरदार मार्केट के आसपास थे।

मैंने दो दिन में राजस्थान के जोधपुर की ज्यादातर जगहों को घूम चुका हूं। हर जगह की कुछ जगहें तो हमेशा छूट ही जाती हैं। ये जगहें ही वापस से इन शहरों में आने का मौका देती हैं। जोधपुर काफी सुंदर और वैभवता वाला शहर है। यहाँ के कण-कण में सुंदरता पसरी हुई है। इसके बावजूद एक बात तो है कि इस नीले शहर में सब कुछ नीला नहीं है। जोधपुर की यात्रा के बाद अब हमें राजस्थान एक और नए शहर की यात्रा पर निकलना था। 

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Saturday, 3 December 2022

मेरी 15 दिन की राजस्थान ट्रिप, इस तरह से शुरू हुई

राजस्थान की सुंदरता का अंदाजे-ए-बयां ही कुछ अलग है। यहाँ के किले, महल और हवेलियां में वैभवता और राजशाही झलकती है। इसी वैभवशाली राजस्थान के मैंने कई शहर एक्सप्लोर किए हुए हैं लेकिन एक लंबी यात्रा का प्लान दिमाग में चल रहा था। पहले वो प्लान कागज पर उतरा और फिर एक दिन मैं उस प्लान के तहत राजस्थान निकल पड़ा। 

18 नवंबर 2022 को मेरी यात्रा उत्तर प्रदेश के झांसी से शुरू हुई। दोपहर के 2 बजे मैंने जयपुर के लिए ट्रेन पकड़ी। दिन की यात्रा मुझे हमेशा खराब लगती है। रात की यात्रा सबसे बेहतरीन होती है। सीट पर सो जाओ और नींद खुलने पर आप अपने गंतव्य के आसपास ही कहीं होते हैं। लेकिन झांसी से जयपुर के लिए एक ही ट्रेन थी और वो भी दिन के समय। मैंने दिन में समय काटने के लिए स्टेशन से नवीन चौधरी की ढाई चाल किताब ले ली। मैंने इससे पहले उनकी जनता स्टोर किताब को पढ़ा है। थोड़ी देर में ट्रेन चल पड़ी।

रास्ते में घर का खाना

मेरी सीट ऊपर की थी लेकिन नीचे वाली सीट खाली थी तो मैं उसी पर बैठ गया। थोड़ी देर तक तो मैं बाहर देखता रहा फिर उसके बाद घर से लाया हुआ खाना निकाला और खाना शुरू कर दिया। घर से किसी यात्रा पर जाने का यही फायदा होता है कि आपको एक बार का स्वादिष्ट खाना तो मिल ही जाता है। आपको ट्रेन से कुछ लेने की जरूरत नहीं पड़ती है और ना ही किसी होटल में जाने का मसला होता है। 

जब खाना खत्म हो गया तो मैं किताब को पढ़ने लगा। एक बार किताब को पढ़ना शुरू किया तो बस पढ़ता ही रहा। लगभग 7-8 बजे इस शानदार किताब को पूरा पढ़ लिया। रास्ते के नजारों पर तो ज्यादा ध्यान नहीं दिया बस सूर्यास्त के समय जरूर खिड़की के बाहर देखता रहा था। रात होने के बाद तो अब बस जल्दी पहुँचने की जल्दी थी। रात के 11 बजे मेरी ट्रेन जयपुर पहुँच गई। मैं कुछ ही मिनटों में जयपुर रेलवे स्टेशन से बाहर निकल आया। 

जयपुर में इंतजार

मैं इससे पहले जयपुर दो बार आ चुका हूं। 2018 में मेरी पहली सोलो ट्रिप जयपुर की ही थी। उसके बाद 2021 में भी दो दिन के लिए जयपुर आया था। मैं दोनों बार में जयपुर को लगभग पूरा घूम चुका हूं। इस बार मैं जयपुर घूमने के लिए नहीं आया था। मुझे राजस्थान के अगले शहर में जाने के लिए जयपुर से रात के 2 बजे एक ट्रेन पकड़नी थी। मुझे यहाँ कुछ घंटे इंतजार करना था।

थोड़ी-थोड़ी भूख तो लग आई थी तो मैं रेलवे स्टेशन के सामने वाले होटल में पहुँच गया। वहाँ मैंने सेव टमाटर की सब्जी और रोटी खाकर पेट पूजा की। इसके बाद वापस रेलवे स्टेशन के वेटिंग रूम एरिया में आ गया। अब बस ट्रेन का इंतजार करना था। ट्रेन अपने समय पर स्टेशन पर आई और हम भी अपने समय पर अपने कोच और सीट पर पहुँच गए। कुछ देर में हमारी ट्रेन जयपुर से चल पड़ी। 

जोधपुर

इस ट्रेन में भी मेरी सीट ऊपर की थी लेकिन एक बार फिर से मैं नीचे वाली सीट पर लेटा लेकिन इस बार वजह अलग था। जिसकी सीट नीचे वाली थी वो मेरी सीट पर खर्राटे ले रहा था। टीटीई ने कहा कि उसकी सीट पर लेटना चाहते तो लेट लो नहीं तो मैं उसको जगाता हूं। मैंने टीटीई की बात मान ली और नीचे वाली सीट पर लेट गया। कुछ देर बाद नींद की आगोश में चला गया। जब नींद खुली तो सुबह हो चुकी थी। कुछ देर बाद हम अपने गंतव्य पर पहुँच गए। इस जगह का नाम है, जोधपुर।

जोधपुर पहुँचने पर हमारी ऑफिशियल राजस्थान की ट्रिप शुरू हो गई। मैं पहली बार इस शहर को एक्सप्लोर करने के लिए आया हूं। अब हमें सबसे पहले जोधपुर में रहने का ठिकाना खोजना था। उसी खोज को दिमाग में लेकर मैं जोधपुर रेलवे स्टेशन से बाहर निकल पड़ा। इस तरह हमारी राजस्थान की लंबी यात्रा शुरू हो गई। लगभग 15 दिन की राजस्थान यात्रा का पहला शहर है, जोधपुर।

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